सर्दियों में उपयोगी है लेकिन इसकी औषधीय महत्ता आयुर्वेद में
साल भर मानी गई है। ----यह वेदनानाशक, वातशामक और
कृमिनाशक है।
स्नायविक संस्थान के लिए उपयोगी होता है। यकृत को सक्रिय
करने वाला औरसुपाच्य होने से पाचन संस्थान के लिए
उपयोगी होता है।
--अनिद्रा, खांसी, सांस, हिचकी, शीघ्रपतन और
नपुंसकता आदि व्याधियां दूर करने में उपयोगी होता है। इसके चूर्ण
और तेल को उपयोग में लिया जाता है।
नपुंसकता :
--जायफल को घिस कर दूध में मिलाकर हफ्ते में तीन दिन पीने से
नपुंसकता की बीमारी दूर होती है। यौन शक्ति बढ़ाने के लिए
भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके चूर्ण और तेल
को शीघ्रपतन दूर करने में उपयोग में लिया जाता है।
--पत्थर पर पानी के साथ जायफल को घिसें और लेप तैयार कर लें।
इस लेप को नेत्रों की पलकों पर और नेत्रों के चारों तरफ लगाने से
नेत्र ज्योति बढ़ती है, चेहरे की त्वचा की झाइयां और धब्बे
आदि दूर होते हैं। लगातार कुछ दिनों तक लेप लगाना चाहिए।
--शिशु का दूध छुड़ाकर ऊपर का दूध पिलाने पर यदि दूध पचता न
हो तो दूध में आधा पानी मिलाकर, इसमें एक जायफल डालकर
उबालें। इस दूध को थोडा ठण्डा करके कुनकुना गर्म, चम्मच
कटोरी से शिशु को पिलाएं, यह दूध शिशु को हजम हो जाएगा।
--शरीर के जोड़ों में दर्द होना गठिया यानी सन्धिवात रोग
का लक्षण होता है। गठिया के अलावा चोट, मोच और
पुरानी सूजन के लिए जायफल और सरसों के तेल के मिलाकर
मालिश करने से आराम होता है। इसकी मालिश से शरीर में
गर्मी आती है, चुस्ती फुर्ती आती है और पसीने के रूप में विकार
निकल जाता है।
--पेट में दर्द :
पेट में दर्द हो, आद्यमान हो तो जायफल के तेल की 2-3 बूंद शकर में
या बताशे में टपकाकर खाने से फौरन आराम होता है।
--इसी तरह दांत में दर्द होने पर जायफल के तेल में रूई
का फाहा डुबोकर इसे दांत-दाढ़ के कोचर में रखने से कीड़े मर जाते
हैं और दर्द दूर हो जाता है।
--इस तेल में वेदना स्थापना करने का गुण होता है, इसलिए यह तेल
उस अंग को थोड़े समय के लिए संज्ञाशून्य कर देता है और दर्द
का अनुभव होना बंद हो जाता है।
साल भर मानी गई है। ----यह वेदनानाशक, वातशामक और
कृमिनाशक है।
स्नायविक संस्थान के लिए उपयोगी होता है। यकृत को सक्रिय
करने वाला औरसुपाच्य होने से पाचन संस्थान के लिए
उपयोगी होता है।
--अनिद्रा, खांसी, सांस, हिचकी, शीघ्रपतन और
नपुंसकता आदि व्याधियां दूर करने में उपयोगी होता है। इसके चूर्ण
और तेल को उपयोग में लिया जाता है।
नपुंसकता :
--जायफल को घिस कर दूध में मिलाकर हफ्ते में तीन दिन पीने से
नपुंसकता की बीमारी दूर होती है। यौन शक्ति बढ़ाने के लिए
भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके चूर्ण और तेल
को शीघ्रपतन दूर करने में उपयोग में लिया जाता है।
--पत्थर पर पानी के साथ जायफल को घिसें और लेप तैयार कर लें।
इस लेप को नेत्रों की पलकों पर और नेत्रों के चारों तरफ लगाने से
नेत्र ज्योति बढ़ती है, चेहरे की त्वचा की झाइयां और धब्बे
आदि दूर होते हैं। लगातार कुछ दिनों तक लेप लगाना चाहिए।
--शिशु का दूध छुड़ाकर ऊपर का दूध पिलाने पर यदि दूध पचता न
हो तो दूध में आधा पानी मिलाकर, इसमें एक जायफल डालकर
उबालें। इस दूध को थोडा ठण्डा करके कुनकुना गर्म, चम्मच
कटोरी से शिशु को पिलाएं, यह दूध शिशु को हजम हो जाएगा।
--शरीर के जोड़ों में दर्द होना गठिया यानी सन्धिवात रोग
का लक्षण होता है। गठिया के अलावा चोट, मोच और
पुरानी सूजन के लिए जायफल और सरसों के तेल के मिलाकर
मालिश करने से आराम होता है। इसकी मालिश से शरीर में
गर्मी आती है, चुस्ती फुर्ती आती है और पसीने के रूप में विकार
निकल जाता है।
--पेट में दर्द :
पेट में दर्द हो, आद्यमान हो तो जायफल के तेल की 2-3 बूंद शकर में
या बताशे में टपकाकर खाने से फौरन आराम होता है।
--इसी तरह दांत में दर्द होने पर जायफल के तेल में रूई
का फाहा डुबोकर इसे दांत-दाढ़ के कोचर में रखने से कीड़े मर जाते
हैं और दर्द दूर हो जाता है।
--इस तेल में वेदना स्थापना करने का गुण होता है, इसलिए यह तेल
उस अंग को थोड़े समय के लिए संज्ञाशून्य कर देता है और दर्द
का अनुभव होना बंद हो जाता है।
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