* पेठा या कुम्हडा व्रत में भी लिया जा सकता है .
* आयुर्वेद ग्रंथों में पेठे को बहुत
उपयोगी माना गया है। यह पुष्टिकारक, वीर्यवर्ध्दक,
भारी, रक्तदोष तथा वात-पित्त को नष्ट करने वाला है।
* कच्चा पेठा पित्त को समाप्त करता है लेकिन
जो पेठा अधिक कच्चा भी न हो और अधिक पका भी न हो,
वह कफ पैदा करता है किन्तु पका हुआ पेठा बहुत ठंडा,
ग्राही, स्वाद खारी, अग्नि बढ़ाने वाला, हल्का,
मूत्राशय को शुध्द करने वाला तथा शरीर के सारे दोष दूर
करता है।
* यह मानसिक रोगों में जैसे मिरगी, पागलपन आदि में
तो बहुत लाभ पहुंचाता है। मानसिक कमजोरी-मानसिक
विकारों में विशेषकर याद्दाश्त की कमजोरी में
पेठा बहुत उपयोगी रहता है। ऐसे रोगी को 10-20 ग्राम
गूदा खाना चाहिए अथवा पेठे का रस पीना चाहिए।
* शरीर में जलन-पेठे के गूदे
तथा पत्तों की लुगदी बनाकर लेप करें। साथ-साथ
बीजों को पीसकर ठंडाई बनाकर प्रयोग करें। इससे बहुत
लाभ होगा।
* नकसीर फूटना- पेठे का रस पीएं या गूदा खाएं। सिर पर
इसके बीजों का तेल लगाएं। बहुत लाभ होगा।
* दमा रोग – दमे के रोगियों को पेठा अवश्य खिलाएं।
इससे फेफड़ों को शांति मिलती है।
खांसी तथा बुखार- पेठा खाने से खांसी तथा बुखार
रोग भी ठीक होते हैं।
* पेशाब के रोग- पेठे का गूदा तथा बीज मूत्र
विकारों में बहुत उपयोगी है। यदि मूत्र रूक-रूककर
आता हो अथवा पथरी बन गई हो तो पेठा तथा उसके बीज
दोनों का प्रयोग करें। लाभ होगा।
* वीर्य का कमी- इस रोग में पेठे का सेवन
अति उपयोगी है।
* कब्ज तथा बवासीर-पेठे के सेवन से कब्ज दूर होती है।
इसी कारण बवासीर के रोगियों के लिए यह बहुत
लाभकारी है। इससे बवासीर में रक्त निकलना भी बंद
हो जाता है।
भूख न लगना- जिन लोगों की आंतों में सूजन आ गई है,
भूख नहीं लगती, वे सुबह दो कप पेठे का रस पीएं। भूख
लगने लगेगी और आंतों की सूजन भी ठीक हो जाएगी।
* खाली पेट पेठा खाने से शारीर में लचीलापन और
स्फूर्ति बनी रहती है .
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