सोमवार, 8 दिसंबर 2014

गौमूत्र रोगों पर कैसे विजयी होता है?

गौमूत्र रोगों पर कैसे विजयी होता है?



1. गौमूत्र में किसी भी प्रकार के कीटाणु नष्ट
करने की चमत्कारी शक्ति है।
सभी कीटाणुजन्य व्याधियाँ नष्ट होती हैं।
2. गौमूत्र दोषों (त्रिदोष) को समान बनाता है। अतएव रोग नष्ट हो जाते हैं।
3. गौमूत्र शरीर में यकृत (लिवर) को सही कर स्वच्छ
खून बनाकर किसी भी रोग का विरोध करने
की शक्ति प्रदान करता है।
4. गौमूत्र में सभी तत्त्व ऐसे हैं, जो हमारे शरीर के
आरोग्यदायक तत्त्वों की कमी की पूर्ति करते
हैं।
5. गौमूत्र में कई खनिज, खासकर ताम्र होता है, जिसकी पूर्ति से
शरीर के खनिज तत्त्व पूर्ण हो जाते हैं। स्वर्ण क्षार
भी होने से रोगों से बचने की यह शक्ति देता है।
6. मानसिक क्षोभ से स्नायु तंत्र (नर्वस सिस्टम) को आघात होता है। गौमूत्र
को मेध्य और हृद्य कहा गया है। यानी मस्तिष्क एवं हृदय
को शक्ति प्रदान करता है। अतएव मानसिक कारणों से होने वाले आघात से हृदय
की रक्षा करता है और इन अंगों को होने वाले रोगों से बचाता है।
7. किसी भी प्रकार
की औषधियों की मात्रा का अतिप्रयोग हो जाने से जो तत्त्व
शरीर में रहकर किसी प्रकार से उपद्रव पैदा करते हैं
उनको गौमूत्र अपनी विषनाशक शक्ति से नष्ट कर
रोगी को निरोग करता है।
8. विद्युत तरंगें हमारे शरीर को स्वस्थ रखती हैं। ये
वातावरण में
विद्यमान हैं। सूक्ष्मातिसूक्ष्म रूप से तरंगंे हमारे शरीर में गौमूत्र से
प्राप्त ताम्र के रहने से ताम्र के अपने विद्युतीय आकर्षक गुण के
कारण शरीर से आकर्षित होकर स्वास्थ्य प्रदान
करती हैं।
9. गौमूत्र रसायन है। यह बुढ़ापा रोकता है। व्याधियों को नष्ट करता है।
10. आहार में जो पोषक तत्त्व कम प्राप्त होते हैं
उनकी पूर्ति गौमूत्र में विद्यमान तत्त्वों से होकर स्वास्थ्य लाभ
होता है।
11. आत्मा के विरुद्ध कर्म करने से हृ्रदय और मस्तिष्क संकुचित होता है,
जिससे शरीर में क्रिया कलापों पर प्रभाव पड़कर रोग हो जाते हैं। गौमूत्र
सात्विक बुद्धि प्रदान कर, सही कार्य कराकर इस तरह के रोगों से
बचाता है।
12. शास्त्रों में पूर्व कर्मज
व्याधियाँ भी कही गयी हैं जो हमें
भुगतनी पड़ती हैं। गौमूत्र में गंगा ने निवास किया है।
गंगा पाप नाशिनी है, अतएव गौमूत्र पान से पूर्व जन्म के पाप क्षय
होकर इस प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं।
13. शास्त्रों के अनुसार भूतों के शरीर प्रवेश के कारण होने वाले
रोगों पर गौमूत्र इसलिए प्रभाव करता है कि भूतों के अधिपति भगवान शंकर हैं।
शंकर के शीश पर गंगा है। गौमूत्र में गंगा है, अतएव गौमूत्र पान से
भूतगण अपने अधिपति के मस्तक पर गंगा के दर्शन कर, शान्त हो जाते हैं। और
इस शरीर को नहंीं सताते हैं। इस तरह भूताभिष्यंगता रोग
नहीं होता है।
14. जो रोगी वंश परंपरा से रोगी हो, रोग के पहले
ही गोमूत्र कुछ समय पान करने से रोगी के
शरीर में
इतनी विरोधी शक्ति हो जाती है कि रोग नष्ट
हो जाते हैं।
15. विषों के द्वारा रोग होने के कारणों पर गौमूत्र विषनाशक होने के चमत्कार के
कारण ही रोग नाश करता है। बड़ी-
बड़ी विषैली औषधियाँ गौमूत्र से शुद्ध
होती हैं। गौमूत्र, मानव शरीर की रोग
प्रतिरोधनी शक्ति को बढ़ाकर, रोगों को नाश करने
की क्षमता देता है। प्उउनदपजल च्वूमत देता है। निर्विष होते हुए
यह विषनाशक है।

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