सोमवार, 22 दिसंबर 2014

मनुष्य का सौभाग्य और दुर्भाग्य

आयुर्वेद जैसा अत्यधिक उपयोगी शास्त्र संसार में दूसरा कोई
नहीं है । ऐसे अद्भुत, अद्वितीय, अमूल्य और दिव्य शास्त्र
का उपयोग करके मनुष्य को अपने स्वास्थ्य
की रक्षा तथा सौभाग्य की वृद्धि करनी चाहिए । मनुष्य
का यह परम सौभाग्य है
कि परमपिता परमात्मा द्वारा प्रदत्त ज्ञान वेदों का उपवेद
आयुर्वेद जैसा परम कल्याणकारी, अत्यधिक
उपयोगी तथा अथाह ज्ञान का भंडार इसे उपलब्ध है । इस
शास्त्र को योगी, तपस्वी और दिव्य ज्ञानी ऋषि-
मुनियों ने निस्वार्थ भावना तथा जगत कल्याण
की कामना से अपने अनुभव के आधार पर युक्ति और
प्रमाणों सहित प्रस्तुत किया था ।
यदि मनुष्य आयुर्वेद जैसे उपयोगी और महान शास्त्र के होते हुए
भी इससे लाभ न उठाए तथा इसके अनुसार व्यवहार न करे,
तो दुखी और रोगी नहीं होगा तो क्या होगा ? आयुर्वेद के
ज्ञान से वंचित रहना मनुष्य का दुुर्भाग्य है । ज्ञान हो परन्तु
उसके अनुसार आचरण न हो, तो यह परम दुर्भाग्य है । आयुर्वेद में इसे
प्रज्ञापराध कहा गया है कि जानबूझकर भी गलत आहार-
विहार तथा आचरण किया जाए। प्रज्ञापराध ही सब
रोगों का मूल कारण है । सोए हुए
को तो जगाया जा सकता है । परन्तु जागता हुआ
व्यक्ति यदि सोने का नाटक कर रहा हो,
तो उसका क्या किया जा सकता है !

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