^ !!! पंचगव्य !!!
गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का पानी को सामूहिक
रूप से पंचगव्य कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे औषधि की मान्यता है।
हिन्दुओं के कोई भी मांगलिक कार्य इनके बिना पूरे नहीं होते।
पंचगव्य का चिकित्सकीय महत्व
पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर के
द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर के रोगनिरोधक
क्षमता को बढाकर रोगों को दूर किया जाता है। गोमूत्र में
प्रति ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से
बचाया जा सकता है। गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय
महत्व सर्वविदित है। दही एवं घी के पोषण मान की उच्चता से
सभी परिचित हैं। दूध का प्रयोग विभिन्न प्रकार से भारतीय
संस्कृति में पुरातन काल से होता आ रहा है। घी का प्रयोग शरीर
की क्षमता को बढ़ाने एवं मानसिक विकास के लिए
किया जाता है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु
होते हैं जो क्षुधा को बढ़ाने में सहायता करते हैं। पंचगव्य
का निर्माण देसी मुक्त वन विचरण करने वाली गायों से प्राप्त
उत्पादों द्वारा ही करना चाहिए।
पंचगव्य निर्माण
सूर्य नाड़ी वाली गायें ही पंचगव्य के निर्माण के लिए उपयुक्त
होती हैं। देसी गायें इसी श्रेणी में आती हैं। इनके उत्पादों में मानव
के लिए जरूरी सभी तत्त्व पाये जाते हैं। महर्षि चरक के अनुसार
गोमूत्र कटु तीक्ष्ण एवं कषाय होता है। इसके गुणों में उष्णता,
राष्युकता, अग्निदीपक प्रमुख हैं। गोमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फुर,
अमोनिया, कॉपर, लौह तत्त्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फास्फेट,
सोडियम, पोटेसियम, मैंगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सिअम,
नमक, विटामिन बी, ऐ, डी, ई; एंजाइम, लैक्टोज, हिप्पुरिक अम्ल,
कृएतिनिन, आरम हाइद्रक्साइद मुख्य रूप से पाये जाते हैं।
यूरिया मूत्रल, कीटाणु नाशक है। पोटैसियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप
नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं
तंत्रिका शक्ति का नियमन करता है। मेगनीसियम एवं कैल्सियम
हृदयगति का नियमन करते हैं।
भारत में गाय को माता कहा जाता है। विश्व के दूसरे देशों में
गाय को पूजनीय नहीं माना जाता। भारतीय गोवंश मानव
का पोषण करता रहा है, जिसका दूध, गोमूत्र और गोबर अतुलनीय
है। सुख, समृद्धि की प्रतीक रही भारतीय गाय आज गोशालाओं में
भी उपेक्षित है। अधिक दूध के लिए
विदेशी गायों को पाला जा रहा है जबकि भारतीय नस्ल
की गायें आज भी सर्वाधिक दूध देती हैं। गोशाला में देशी गोवंश
के संरक्षण, संवर्धन की परम्परा भी खत्म हो रही है।
हमारी गोशालाएं ‘डेयरी फार्म’ बन चुकी हैं, जहां दूध
का ही व्यवसाय हो रहा है और सरकार भी इसी को अनुदान
देती है। वैसे गोशाला में दान देने वाले
व्यक्तियों की भी कमी नहीं है। हमें देशी गाय के महत्व और उसके
साथ सहजीवन को समझना जरुरी है। आज भारतीय गोशालाओं से
भारतीय गोवंश सिमटता जा रहा है।
गाय की उत्पत्ति स्थल भी भारत ही है। गाय का उद्भव बास
प्लैनिफ्रन्स के रूप में प्लाईस्टोसीन के प्रथम चरण (15 लाख वर्ष
पूर्व) में हुआ। इस प्रकार इसका सर्वप्रथम विकास एशिया में हुआ।
इसके बाद प्लाईस्टोसीन के अंतिम दौर (12 लाख वर्ष पूर्व) गाय
अफ्रीका और यूरोप में फैली। विश्व के अन्य क्षेत्र उत्तरी व
दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में तो 19वीं सदी में
गोधन गया। गायों का विकास दुनिया के पर्यावरण,
वहां की आबोहवा के साथ उनके भौतिक स्वरूप व अन्य गुणों में
परिवर्तित हुआ। भारतीय ऋषि-मुनियों ने गाय को कामधेनु
माना, जो समस्त भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाली है। गाय
का दूध अनमोल पेय रहा है। गोबर से ऊर्जा के लिए कंडे व कृषि के
लिए उत्तम खाद तैयार होती है। गोमूत्र तो एक रामबाण दवा है,
जिसका अब पेटेंट का हो चुका है।
विदेशी नस्ल की गाय को भारतीय संस्कृति की दृष्टि से
गोमाता नहीं कहा जा सकता। जर्सी, होलस्टीन, फ्रिजियन,
आस्ट्रियन आदि नस्ल की तुलना भारतीय गोवंश से
नहीं हो सकती। आधुनिक गोधन जिनेटिकली इंजीनियर्ड है। इन्हें
मांस व दूध उत्पादन अधिक देने के लिए सुअर के जींस से
विलगाया गया है।
भारतीय नस्ल की गायें सर्वाधिक दूध देती थीं और आज
भी देती हैं। ब्राजील में भारतीय गोवंश की नस्लें सर्वाधिक दूध दे
रही हैं। अंग्रेजों ने भारतीयों की आर्थिक समृद्धि को कमजोर
करने के लिए षडयंत्र रचा था। कामनवेल्थ लाइब्रेरी में ऐसे दस्तावेज
आज भी रखे हैं। आजादी बचाओ आंदोलन के प्रणेता प्रो. धर्मपाल
ने इन दस्तावेजों का अध्ययन कर सच्चाई सामने रखी है। खाद्य और
कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट में कहा गया है-‘ब्राजील
भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है।
वहां भारतीय नस्ल की गायें होलस्टीन, फ्रिजीयन (एचएफ) और
जर्सी गाय के बराबर दूध देती हैं।
हमारे गोवंश की शारीरिक संरचना अदभुत है। इसलिए गोपालन के
साथ वास्तु शास्त्र में भी गाय को विशेष महत्व दिया गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भारतीय गोवंश की रीढ़ में सूर्य केतु
नामक एक विशेष नाड़ी होती है। जब इस पर सूर्य की किरणें
पड़ती हैं, तब यह नाड़ी सूर्य किरणों के तालमेल से सूक्ष्म स्वर्ण
कणों का निर्माण करती है। यही कारण है कि देशी नस्ल
की गायों का दूध पीलापन लिए होता है। इस दूध में विशेष गुण
होता है। विदेशी नस्ल की गायों का दूध त्याज्य है। ध्यान दें
कि अनेक पालतू पशु दूध देते हैं, पर गाय का दूध को उसके विशेष गुण
के कारण सर्वोपरी पेय कहा गया है। गाय के दूध, गोबर व मूत्र में
अदभुत गुण हैं, जो मानव जीवन के पोषण के लिए सर्वोपरि हैं।
देशी गाय का गोबर व गोमूत्र शक्तिशाली है। रासायनिक
विश्लेषण में देखें कि खेती के लिए जरुरी 23 प्रकार के प्रमुख तत्व
गोमूत्र में पाए जाते हैं। इन तत्वों में कई महत्वपूर्ण मिनरल, लवण,
विटामिन, एसिड्स, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह
रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। हिंदुओं के हर धार्मिक
कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गोबर से
बने पूजा स्थल में रखा जाता है। गौरी-गणेश के बाद
ही पूजा कार्य होता है। गोबर में खेती के लिए
लाभकारी जीवाणु, बैक्टीरिया, फंगल आदि बड़ी संख्या में रहते
हैं। गोबर खाद से अन्न उत्पादन व गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
गाय मानव जीवन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राणी है।
भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति और परम्परा में गाय को इसीलिए
पूज्यनीय ही माना जाता है। हम भारतीय गोवंश को अपनाकर
उन्हें गोशाला में संरक्षित, संवर्धित कर सकते हैं,
जिसका सर्वाधिक लाभ भी हमें ही मिलेगा। देशी गौवंश
को हमारी गोशालाओं से हटाने की साजिश भी सफल
हो रही है, जिस पर समय रहते ध्यान देना जरुरी है।
गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का पानी को सामूहिक
रूप से पंचगव्य कहा जाता है। आयुर्वेद में इसे औषधि की मान्यता है।
हिन्दुओं के कोई भी मांगलिक कार्य इनके बिना पूरे नहीं होते।
पंचगव्य का चिकित्सकीय महत्व
पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर के
द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर के रोगनिरोधक
क्षमता को बढाकर रोगों को दूर किया जाता है। गोमूत्र में
प्रति ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से
बचाया जा सकता है। गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय
महत्व सर्वविदित है। दही एवं घी के पोषण मान की उच्चता से
सभी परिचित हैं। दूध का प्रयोग विभिन्न प्रकार से भारतीय
संस्कृति में पुरातन काल से होता आ रहा है। घी का प्रयोग शरीर
की क्षमता को बढ़ाने एवं मानसिक विकास के लिए
किया जाता है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु
होते हैं जो क्षुधा को बढ़ाने में सहायता करते हैं। पंचगव्य
का निर्माण देसी मुक्त वन विचरण करने वाली गायों से प्राप्त
उत्पादों द्वारा ही करना चाहिए।
पंचगव्य निर्माण
सूर्य नाड़ी वाली गायें ही पंचगव्य के निर्माण के लिए उपयुक्त
होती हैं। देसी गायें इसी श्रेणी में आती हैं। इनके उत्पादों में मानव
के लिए जरूरी सभी तत्त्व पाये जाते हैं। महर्षि चरक के अनुसार
गोमूत्र कटु तीक्ष्ण एवं कषाय होता है। इसके गुणों में उष्णता,
राष्युकता, अग्निदीपक प्रमुख हैं। गोमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फुर,
अमोनिया, कॉपर, लौह तत्त्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फास्फेट,
सोडियम, पोटेसियम, मैंगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सिअम,
नमक, विटामिन बी, ऐ, डी, ई; एंजाइम, लैक्टोज, हिप्पुरिक अम्ल,
कृएतिनिन, आरम हाइद्रक्साइद मुख्य रूप से पाये जाते हैं।
यूरिया मूत्रल, कीटाणु नाशक है। पोटैसियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप
नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं
तंत्रिका शक्ति का नियमन करता है। मेगनीसियम एवं कैल्सियम
हृदयगति का नियमन करते हैं।
भारत में गाय को माता कहा जाता है। विश्व के दूसरे देशों में
गाय को पूजनीय नहीं माना जाता। भारतीय गोवंश मानव
का पोषण करता रहा है, जिसका दूध, गोमूत्र और गोबर अतुलनीय
है। सुख, समृद्धि की प्रतीक रही भारतीय गाय आज गोशालाओं में
भी उपेक्षित है। अधिक दूध के लिए
विदेशी गायों को पाला जा रहा है जबकि भारतीय नस्ल
की गायें आज भी सर्वाधिक दूध देती हैं। गोशाला में देशी गोवंश
के संरक्षण, संवर्धन की परम्परा भी खत्म हो रही है।
हमारी गोशालाएं ‘डेयरी फार्म’ बन चुकी हैं, जहां दूध
का ही व्यवसाय हो रहा है और सरकार भी इसी को अनुदान
देती है। वैसे गोशाला में दान देने वाले
व्यक्तियों की भी कमी नहीं है। हमें देशी गाय के महत्व और उसके
साथ सहजीवन को समझना जरुरी है। आज भारतीय गोशालाओं से
भारतीय गोवंश सिमटता जा रहा है।
गाय की उत्पत्ति स्थल भी भारत ही है। गाय का उद्भव बास
प्लैनिफ्रन्स के रूप में प्लाईस्टोसीन के प्रथम चरण (15 लाख वर्ष
पूर्व) में हुआ। इस प्रकार इसका सर्वप्रथम विकास एशिया में हुआ।
इसके बाद प्लाईस्टोसीन के अंतिम दौर (12 लाख वर्ष पूर्व) गाय
अफ्रीका और यूरोप में फैली। विश्व के अन्य क्षेत्र उत्तरी व
दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में तो 19वीं सदी में
गोधन गया। गायों का विकास दुनिया के पर्यावरण,
वहां की आबोहवा के साथ उनके भौतिक स्वरूप व अन्य गुणों में
परिवर्तित हुआ। भारतीय ऋषि-मुनियों ने गाय को कामधेनु
माना, जो समस्त भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाली है। गाय
का दूध अनमोल पेय रहा है। गोबर से ऊर्जा के लिए कंडे व कृषि के
लिए उत्तम खाद तैयार होती है। गोमूत्र तो एक रामबाण दवा है,
जिसका अब पेटेंट का हो चुका है।
विदेशी नस्ल की गाय को भारतीय संस्कृति की दृष्टि से
गोमाता नहीं कहा जा सकता। जर्सी, होलस्टीन, फ्रिजियन,
आस्ट्रियन आदि नस्ल की तुलना भारतीय गोवंश से
नहीं हो सकती। आधुनिक गोधन जिनेटिकली इंजीनियर्ड है। इन्हें
मांस व दूध उत्पादन अधिक देने के लिए सुअर के जींस से
विलगाया गया है।
भारतीय नस्ल की गायें सर्वाधिक दूध देती थीं और आज
भी देती हैं। ब्राजील में भारतीय गोवंश की नस्लें सर्वाधिक दूध दे
रही हैं। अंग्रेजों ने भारतीयों की आर्थिक समृद्धि को कमजोर
करने के लिए षडयंत्र रचा था। कामनवेल्थ लाइब्रेरी में ऐसे दस्तावेज
आज भी रखे हैं। आजादी बचाओ आंदोलन के प्रणेता प्रो. धर्मपाल
ने इन दस्तावेजों का अध्ययन कर सच्चाई सामने रखी है। खाद्य और
कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट में कहा गया है-‘ब्राजील
भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है।
वहां भारतीय नस्ल की गायें होलस्टीन, फ्रिजीयन (एचएफ) और
जर्सी गाय के बराबर दूध देती हैं।
हमारे गोवंश की शारीरिक संरचना अदभुत है। इसलिए गोपालन के
साथ वास्तु शास्त्र में भी गाय को विशेष महत्व दिया गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भारतीय गोवंश की रीढ़ में सूर्य केतु
नामक एक विशेष नाड़ी होती है। जब इस पर सूर्य की किरणें
पड़ती हैं, तब यह नाड़ी सूर्य किरणों के तालमेल से सूक्ष्म स्वर्ण
कणों का निर्माण करती है। यही कारण है कि देशी नस्ल
की गायों का दूध पीलापन लिए होता है। इस दूध में विशेष गुण
होता है। विदेशी नस्ल की गायों का दूध त्याज्य है। ध्यान दें
कि अनेक पालतू पशु दूध देते हैं, पर गाय का दूध को उसके विशेष गुण
के कारण सर्वोपरी पेय कहा गया है। गाय के दूध, गोबर व मूत्र में
अदभुत गुण हैं, जो मानव जीवन के पोषण के लिए सर्वोपरि हैं।
देशी गाय का गोबर व गोमूत्र शक्तिशाली है। रासायनिक
विश्लेषण में देखें कि खेती के लिए जरुरी 23 प्रकार के प्रमुख तत्व
गोमूत्र में पाए जाते हैं। इन तत्वों में कई महत्वपूर्ण मिनरल, लवण,
विटामिन, एसिड्स, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह
रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। हिंदुओं के हर धार्मिक
कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गोबर से
बने पूजा स्थल में रखा जाता है। गौरी-गणेश के बाद
ही पूजा कार्य होता है। गोबर में खेती के लिए
लाभकारी जीवाणु, बैक्टीरिया, फंगल आदि बड़ी संख्या में रहते
हैं। गोबर खाद से अन्न उत्पादन व गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
गाय मानव जीवन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राणी है।
भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति और परम्परा में गाय को इसीलिए
पूज्यनीय ही माना जाता है। हम भारतीय गोवंश को अपनाकर
उन्हें गोशाला में संरक्षित, संवर्धित कर सकते हैं,
जिसका सर्वाधिक लाभ भी हमें ही मिलेगा। देशी गौवंश
को हमारी गोशालाओं से हटाने की साजिश भी सफल
हो रही है, जिस पर समय रहते ध्यान देना जरुरी है।
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