आयुर्वेद प्राचीन भारतीय पद्धती की प्राकृतिक और संपूर्ण
औषधि है| जब आयुर्वेद का संस्कृत से अनुवाद करें तो उसका अर्थ
होता है "जीवन का विज्ञान" (संस्कृत में मूल शब्द आयुर
का अर्थ होता है "दीर्घ आयु" या आयु और वेद का अर्थ होता है
"विज्ञान"|
एलोपैथी औषधि (विषम चिकित्सा) रोग के प्रबंधन पर केंद्रित
होती है, जबकि आयुर्वेद रोग की रोकथाम, और यदि रोग
उत्पन्न हुआ तो कैसे उसके मूल कारण को निष्काषित
किया जाये, उसका ज्ञान प्रदान करती है|
मूल सिद्धांत
आयुर्वद का ज्ञान भारत के ऋषि मुनियों के वंशो से मौखिक
रूप से आगे बढ़ता गया जब तक उसे पांच हजार वर्ष पूर्व एकत्रित
करके उसका लेखन किया गया| आयुर्वेद पर सबसे पुराने ग्रन्थ चरक
संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय हैं| यह ग्रंथ अंतरिक्ष
तंत्र में पाये जाने वाले पाँच तत्व-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और
आकाश, जो हमारे व्यतिगत तंत्र पर प्रभाव डालते हैं उसके बारे में
बताते हैं| यह स्वस्थ और आनंदमय जीवन के लिए इन पाँच
तत्वों को संतुलित रखने के महत्व को समझते हैं|
आयुर्वेद के अनुसार हर व्यक्ति दूसरों के तुलना में कुछ तत्वों से
अधिक प्रभावित होता है| यह उनकी प्रकृति या प्राकृतिक
संरचना के कारण होता है| आयुर्वेद विभिन्न शारीरिक
संरचनाओं को तीन विभिन्न दोषों में सुनिश्चित करता है|
. वात दोष, जिसमे वायु और आकाश तत्व प्रबल होते हैं|
. पित्त दोष, जिसमे अग्नि दोष प्रबल होता है|
. कफ दोष, जिसमे पृथ्वी और जल तत्व प्रबल होते हैं|
दोष सिर्फ किसी के शरीर के स्वरुप पर ही प्रभाव
नहीं डालता परंतु वह शारीरिक प्रवृतियाँ (जैसे भोजन
का चुनाव और पाचन) और किसी के मन का स्वभाव और
उसकी भावनाओं पर भी प्रभाव डालता है| उदहारण के लिए
जिन लोगो मे पृथ्वी तत्व और कफ दोष होने से उनका शरीर
मजबूत और हट्टा कट्टा होता है| उनमे धीरे धीरे से पाचन होने
की प्रवृति, गहन स्मरण शक्ति और भावनात्मक
स्थिरता होती है| अधिकांश लोगों में प्रकृति दो दोषों के
मिश्रण से बनी हुई होती है| उदहारण के लिए जिन लोगों में
पित्त कफ दोष होता है, उनमें पित्त दोष और कफ दोष
दोनों की ही प्रवृत्तियाँ होती हैं परन्तु पित्त दोष प्रबल
होता है| हमारे प्राकृतिक संरचना के गुण की समझ होने से हम
वो सब अच्छे से कर सकते हैं जिससे हम अपने आप को संतुलित रख
सकें|
आयुर्वेदिक जीवन शैली
आयुर्वेद किसी के पथ्य या जीवन शैली (भोजन की आदतें और
दैनिक जीवनचर्या) पर विशेष महत्त्व देता है| मौसम में बदलाव के
आधार पर जीवनशैली को कैसे अनुकूल बनाया जाये इस पर
भी आयुर्वेद मार्गदर्शन देता है|
औषधि है| जब आयुर्वेद का संस्कृत से अनुवाद करें तो उसका अर्थ
होता है "जीवन का विज्ञान" (संस्कृत में मूल शब्द आयुर
का अर्थ होता है "दीर्घ आयु" या आयु और वेद का अर्थ होता है
"विज्ञान"|
एलोपैथी औषधि (विषम चिकित्सा) रोग के प्रबंधन पर केंद्रित
होती है, जबकि आयुर्वेद रोग की रोकथाम, और यदि रोग
उत्पन्न हुआ तो कैसे उसके मूल कारण को निष्काषित
किया जाये, उसका ज्ञान प्रदान करती है|
मूल सिद्धांत
आयुर्वद का ज्ञान भारत के ऋषि मुनियों के वंशो से मौखिक
रूप से आगे बढ़ता गया जब तक उसे पांच हजार वर्ष पूर्व एकत्रित
करके उसका लेखन किया गया| आयुर्वेद पर सबसे पुराने ग्रन्थ चरक
संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय हैं| यह ग्रंथ अंतरिक्ष
तंत्र में पाये जाने वाले पाँच तत्व-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और
आकाश, जो हमारे व्यतिगत तंत्र पर प्रभाव डालते हैं उसके बारे में
बताते हैं| यह स्वस्थ और आनंदमय जीवन के लिए इन पाँच
तत्वों को संतुलित रखने के महत्व को समझते हैं|
आयुर्वेद के अनुसार हर व्यक्ति दूसरों के तुलना में कुछ तत्वों से
अधिक प्रभावित होता है| यह उनकी प्रकृति या प्राकृतिक
संरचना के कारण होता है| आयुर्वेद विभिन्न शारीरिक
संरचनाओं को तीन विभिन्न दोषों में सुनिश्चित करता है|
. वात दोष, जिसमे वायु और आकाश तत्व प्रबल होते हैं|
. पित्त दोष, जिसमे अग्नि दोष प्रबल होता है|
. कफ दोष, जिसमे पृथ्वी और जल तत्व प्रबल होते हैं|
दोष सिर्फ किसी के शरीर के स्वरुप पर ही प्रभाव
नहीं डालता परंतु वह शारीरिक प्रवृतियाँ (जैसे भोजन
का चुनाव और पाचन) और किसी के मन का स्वभाव और
उसकी भावनाओं पर भी प्रभाव डालता है| उदहारण के लिए
जिन लोगो मे पृथ्वी तत्व और कफ दोष होने से उनका शरीर
मजबूत और हट्टा कट्टा होता है| उनमे धीरे धीरे से पाचन होने
की प्रवृति, गहन स्मरण शक्ति और भावनात्मक
स्थिरता होती है| अधिकांश लोगों में प्रकृति दो दोषों के
मिश्रण से बनी हुई होती है| उदहारण के लिए जिन लोगों में
पित्त कफ दोष होता है, उनमें पित्त दोष और कफ दोष
दोनों की ही प्रवृत्तियाँ होती हैं परन्तु पित्त दोष प्रबल
होता है| हमारे प्राकृतिक संरचना के गुण की समझ होने से हम
वो सब अच्छे से कर सकते हैं जिससे हम अपने आप को संतुलित रख
सकें|
आयुर्वेदिक जीवन शैली
आयुर्वेद किसी के पथ्य या जीवन शैली (भोजन की आदतें और
दैनिक जीवनचर्या) पर विशेष महत्त्व देता है| मौसम में बदलाव के
आधार पर जीवनशैली को कैसे अनुकूल बनाया जाये इस पर
भी आयुर्वेद मार्गदर्शन देता है|
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