आयुर्वेद लगभग, 5000 वर्ष पुराना चिकित्सा विज्ञान है। इसे
भारतवर्ष के विद्वानों नें भारत की जलवायु, भौगालिक
परिस्थितियों, भारतीय दर्शन, भारतीय ज्ञान-विज्ञान के
द्ष्टकोण को ध्यान में रखते हुये विकसित किया है। वतर्मान में
स्वतंत्रता के पश्चात आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान ने बहुत
प्रगति की है। भारत सरकार द्वारा स्थापित संस्था ‘’केन्द्रीय
आयुर्वेद एवं सिद्ध अनुसंधान परिषद’’ (Central council for
research in Ayurveda and Siddha, CCRAS) नई दिल्ली, भारत,
आयुर्वेद में किये जा रहे अनुसन्धान कार्यों को समस्त देश में फैले
हुये शोध सन्स्थानों में सम्पन्न कराता है। बहुत से एन0जी0ओ0
और प्राइवेट सन्स्थान तथा अस्पताल और व्यतिगत आयुर्वेदिक
चिकित्सक शोध कार्यों में लगे हुये है। इनमें से प्रमुख शोध
त्रिफला , अश्वगंधा आदि औषधियों, इलेक्ट्रानिक
उपकरणों द्वारा आयुर्वेदिक ढंग से रोगों की पहचान और
निदान में सहायता से संबंधित हैं।
जड़ी बूटियों पर खोज
आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर विश्व के कई
वैज्ञानिक संस्थाओं में शोध कार्य किये गये हैं।
भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर , ट्राम्बे , गुरू नानक देव
विश्वविद्यालय, अमृतसर और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय
में त्रिफला पर रिसर्च करने के पश्चात यह निष्कर्ष
निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेलों को बढ़ने से
रोकता है। ब्रिटेन के चिकित्सा विज्ञानियों ने जानवरों पर
भारतीय जड़ी-बूटी अश्वगंधा का अध्ययन करने के पश्चात यह
निष्कर्ष निकाला है कि अश्वगंधा से अल्झाइमर रोग पर
नियंत्रण होता है। क्षार सूत्र चिकित्साको बवासीर और
भगन्दर में उपयोगी पाया गया है। शास्त्रोक्त क्षार सूत्र
चिकित्सा से बवासीर और भगन्दर जैसे रोग जड़ से आरोग्य होते
हैं, इस तथ्य की सत्यता पर
अमेरिकी चिकित्सा विज्ञानियो ने मुहर लगा दी है।
स्वचालित मशीनों पर शोध
आयुर्वेद के पंचकर्म में प्रयोग करने के लिए मशीनों का निर्माण
करते हुए आई0आई0टी0 (Indian Institute of Technology IIT),
नयी दिल्ली और के0आ0सि0अ0प0 (CCRAS), नई दिल्ली ने
संयुक्त प्रयास करके चिकित्सा को आधुनिक रूप देनें के लिये एक
आटोमेटिक मशीन का निर्माण किया है। यह मशीन केन्द्रीय
आयुर्वेद अनुसन्धान संस्थान, रोड नम्बर 66, पंजाबी बाग –वेस्ट-,
नई दिल्ली, भारत मे प्रयोग की जा रही है।
नई आयुर्वेदिक औषधियों का विकास
एक आयुर्वेदिक चिकित्सक ने मरीजों के रक्त से आयुर्वेदिक
औषधि निदान करनें की विधि विकसित की है। इसे ‘’ब्लड
सिरम फ्लाकुलेशन टेस्ट’’[Blood serum flocculation test]
का नाम दिया गया है। बीमार व्यक्तियों का रक्त लेकर
आयुर्वेदिक दवाओं का निदान करने की एक विधि केन्द्रीय
आयुर्वेद अनुसन्धान संस्थान Central Research Institute of
Ayurveda-CRIA, नई दिल्ली में विकसित की गयी है, इस
विधि पर परीक्षण कार्य किये जा रहे हैं।
शंखद्राव आधारित औषधियां
आयुर्वेद के ग्रंथ ‘’रसतरंगिणी’’ मे वर्णित शंखद्राव
औषधि को आधार बनाकर आयुर्वेद के एक चिकित्सक नें धातुओं
और जडी-बूटिओं और जीव जन्तुओं के सार भाग से फास्फेट,
सल्फेट, म्यूरियेट, नाइट्रेट, नाइट्रोम्यूरियेट तैयार किये हैं।
‘ ’शंखद्राव आधारित आयुर्वेदिक औषधियां’’ इस शोध कार्य
की सराहना नेशनल इनोवेशन फाउन्डेशन, अहमदाबाद, भारत
द्वारा की जा चुकी है। इस विधि से सर्पगन्धा नाइट्रेट,
सर्पगन्धा म्यूरियेट, सर्पगन्धा सल्फेट, सर्पगन्धा फास्फेट,
सर्पगन्धा नाइट्रोम्यूरियेट के अलावा लगभग 70 से अधिक
औषधियो का र्निमाण तथा परीक्षण किये जा चुके हैं।
विदेशों में आयुर्वेद पर शोध कार्य
भारत के अलावा अन्य देशों में यथा अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी,
जापान, नेपाल, म्यानमार, श्री लंका आदि देशों में आयुर्वेद
की औषधियों पर शोध कार्य किये जा रहे हैं।
इलेक्ट्रोत्रिदोषग्राम (ई.टी.जी.)
इलेक्ट्रोत्रिदोषग्राम (ई.टी.जी.) नाडी-विज्ञान
का आधुनिक स्वरूप है जिसके द्वारा आयुर्वेद के
सिद्धान्तों की साक्ष्य आधारित प्रस्तुति की जाती है।
सम्पूर्ण आयुर्वेद त्रिदोष के सिद्धान्तों पर आधरित है। त्रिदोष
सिद़धान्त यथा वात , पित्त , कफ तीन दोष शरीर में रोग
पैदा करते हैं। इन दोषों का ज्ञान करनें का एकमात्र उपाय
नाडी परीक्षण है, जिसे प्राप्त करना बहुत आसान कार्य
नही है / नाडी परीक्षण के
परिणामों को देखा नहीं जा सकता है कि शरीर में प्रत्येक दोष
का कितना असर है और ये दोष कितनीं मात्रा मे उपस्थित हैं।
केवल मात्र नाडी परीक्षण अनुमान पर आधारित है। वात,
पित्त, कफ दोष का ‘’स्टेटस क्वान्टीफाइ’’ करना कठिन काम
अवश्य है। इससे अधिक कठिन काम वातादि दोषों के पांच पांच
यानी पंद्रह भेंदों को इनकी उपस्थिति के अनुसार ज्ञान कर
लेना। इसके पश्चात ‘’सप्त धातुओं’’ का उपस्थिति आंकलन
करना भी आसान काम नहीं है। तीन प्रकार के मल, ओज, सम्पूर्ण
ओज का आंकलन करना दुरूह कार्य अवश्य है।
एक भारतीय, कानपुर शहर, उत्तर प्रदेश राज्य निवासी,
आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ॰ देश बन्धु बाजपेयी ने ऐसी तकनीक
का विकास किया है, जिससे आयुर्वेद के मौलिक
सिद़धांतों का शरीर में कितना प्रभाव और असर है, यह सब
ज्ञात किया जा सकता है। इस तकनीक को ‘’इलेक्ट्रो-
त्रिदोष-ग्राम/ग्राफ/ग्राफी’’ अथवा संक्षिप्त में
‘’ई0टी0जी0’’ के नाम से जाना जाता है।
ई0टी0जी0 तकनीक से आयुर्वेद के निदानात्मक
दृष्टिकोणों को निम्न स्वरूपों में प्राप्त करते हैं।
(1) त्रिदोष यथा वात , पित्त , कफ का ज्ञान
(2) त्रिदोष के प्रत्येक के पांच भेद का ज्ञान,
(3) सप्त धातु का आंकलन, दोष आधारित सप्त धातु
(4) मल का आंकलन यथा पुरीष , मूत्र , स्वेद
(5) अग्नि बल, ओज , सम्पूर्ण ओज आदि का आंकलन
इन मौलिक सिद्धान्तों के अलावा ई0 टी0 जी0 तकनीक से
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के नैदानिक द्रष्टिकोण
को ध्यान में रखते हुये शरीर में व्याप्त बीमारियों का निदान
सटीक तरीके से किया जा सकता है। चूंकि इस विधि से
सम्पूर्ण शरीर का परीक्षण करते हैं अत: सम्पूर्ण शरीर के
समान्य अथवा असामान्य कार्य करनें वाले
अंगों या हिस्सों का पता लग जाता है। जिससे इलाज करने मे
आसानी हो जाती है !
ई0टी0जी0 मशीन की सहायता से सम्पूर्ण शरीर के 21
हिस्सों से ट्रेस रिकार्ड करते हैं। यह ट्रेस रिकार्ड ई0टी0जी0
मशीन द्वारा एक कागज की पटटी पर रिकार्ड करते हैं, कम्प्यूटर
साफ़टवेयर की मदद से आयुर्वेद के मौलिक
सिदधान्तों का आंकलन करते हैं। इस तकनीक की मदद लेकर
आयुर्वेद के विकास की असीम सम्भावनायें हैं।
वर्तमान में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के द्वारा प्राय:
शरीर की जांच के लिये सभी परीक्षण किये जा रहे हैं ! आयुर्वेद
के 5000 साल के इतिहास में यह पहली साक्ष्य आधारित
अकेली परीक्षण विधि का आविष्कार वर्तमान काल मे हुआ है।
सन २००४ से लेकर सन २००७ तक आयुष विभाग, स्वास्थय एवं
परिवार कल्याण मन्त्रालय, भारत सरकार और केन्द्रीय आयुर्वेद
एवं सिद्ध अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली द्वारा ई०टी०जी०
तकनीक का बहुत कड़ाई के साथ परीक्षण करने के पश्चात इसे
मान्यता दे दी गयी है।
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