बुधवार, 24 दिसंबर 2014

आम के औषधीय प्रयोग

गर्मियां आ जाने पर अपने साथ सौगात लाती है मौसमी तरबूज ,
खरबूज , खीरा , ककड़ी , बेल फल , लीची . लेकिन सबसे
ज़्यादा संतुष्टि और स्वाद देने वाला फल है
फलों का राजा आम . ऐसा कोई बिरला ही मिलेगा जिसे आम
पसंद ना हो . आम आते ही घर में आम के अलावा कोई फल
नहीं भाता . सभी आम खाना चाहते है क्योंकि १-२ महीने में
ही आम चला जाएगा . आम अनन्य विशेषता एवं दैवी स्वभाव के
कारण से देवफल माना जाता है । भारतीय जनस्थल आमराई के
बिना सूने ही लगेंगे । आम हमारे लिए और प्राकृतिक पर्यावरण के
लिए उपयोगी एवं कल्याणकारी है । हमारे यहां आम को एक
पवित्र वृक्ष माना जाता है तथा धार्मिक
अनुष्ठानों तथा मांगलिक अवसरों पर इसके पत्तों और शुष्क
टहनियों का उपयोग होता है पत्तियों के तोरण बनाये जाते हैं
तथा टहनियों का प्रयोग यज्ञों में किया जाता है | भारत
फलों के बादशाह आम का घर है। विश्व में आम की उपज का 60
प्रतिशत से अधिक यहां पैदा होता है। भारत में ताजे फलों के
निर्यात में 20 प्रतिशत हिस्सा आम का है। भारत से लगभग 50 से
भी अधिक देशों को आम निर्यात किया जाता है। आम के फल
के अलावा आम रस, आम का जैम, आम के पापड़ आदि विदेशों में
भेजे जाते हैं।भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद खोज बताती है
कि भारत में आम की एक हजार से भी अधिक किस्में प्रचलित हैं
किन्तु उत्तम गुणों और अच्छी पैदवार की दृष्टि से विभिन्न
क्षेत्रों में अनेक किस्में प्रचलित हैं, उन्हीं के अनुसार इसके असंख्य
नाम हैं। आमों की किस्मों का नामकरण उसके रूप, रंग, स्वाद व
गंध आदि के आधार पर किया जाता है :
उत्तरी भारत : लंगड़ा, चौसा, दशहरी, बाम्बे, ग्रीन
फजली ,केसर , तोतापरी , नीलम
पूर्वी भारत : हिम सागर, लंगड़ा, गुलाब, खास फजली
पश्चिम भारत : अलकास्ते, पैरी, राजापुरी, जमादार, गोवा
दक्षिणी भारत : नीलम, बंगलोरी, रोमानी, स्वर्ण रेखा,
बेगमपल्ली, बादाम-रसपुरी, मलगोवा , हापूस ,रत्नागिरी.
पायरी इत्यादि।
आम की ज्यादातर किस्मों में यह विशेषता रहती है कि एक
साल तो पेड़ बहुत फल देता है दूसरे वर्ष कम देता है, तीसरे वर्ष पुन:
भरपूर फल प्रदान करता है।
-- आम में जल 86.1 प्रतिशत, प्रोटीन, 6.6 प्रतिशत, वसा 0.1
प्रतिशत, खनिज लवण 0.3 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 11.8
प्रतिशत, रेशा 1.1 प्रतिशत, कैल्शियम 0.01 प्रतिशत,
फास्फोरस 0.02 प्रतिशत। 100 ग्राम आम में 5 मिलीग्राम
लोहतत्व पाया जाता है। पके आम के प्रति 100 ग्राम में 50 से
80 कैलोरी ऊर्जा तथा 4500 आइ.यू.विटामिन ‘ए’
पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन बी,
सी तथा डी भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। सोडियम,
पोटेशियम, ताम्र, गंधक, मैग्नीशियम, क्लोरीन तथा नियासीन
भी पके आम में पाए जाते हैं।
- आम में उपस्थित शक्कर को पचाने के लिये
जीवनी शक्ति का अपव्यय नहीं करना पड़ता है अपितु वह स्वयं
पच जाती है।
- आम में सभी फलों से अधिक केरोटीन होता है जिससे शरीर में
विटामिन ए बनता है। यह फल नेत्र-ज्योति तथा शरीर की रोग
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिय वरदान है। एक
व्यक्ति को प्रतिदिन 5000 अन्तर्राष्ट्रीय ईकाई ए चाहिये
जो केवल 100 ग्राम आम से प्राप्त की जा सकती है अत:
प्रतिदिन 100 ग्राम आम के प्रयोग से
नेत्रों की ज्योति बढ़ती है- रतौंधी में रसीला और चूसने
वाला फल अधिक लाभदायक साबित होता है।
- आम के रस को दूध में मिलाने से इसके गुणों में और
वृध्दि हो जाती है। दूध के साथ खाया आम वात, पित्त नाशक,
रूचिकर, वीयवर्ध्दक, वर्ण को उत्तम करने वाला, मधुर,
आभारी और शीतल होता है। आम का रस चूस कर दूध पीने से
आंतों को बल मिलता है तथा कब्ज दूर होती है।
- आम खाने से मांस बढ़ता है, खून की मात्रा बढ़ती है और शरीर
की थकावट दूर होती है। पका हुआ आम एक अच्छी खुराक है और
एक बलदायक भोज्य पदार्थ माना गया है।
- यदि शरीर में कोई घाव नहीं भर रहा हो तो आम खाने से वह
शीघ्र भर जाता है।
- एक कप आम का रस 50 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने
से क्षय रोग में काफी लाभ होता है।
- इसमें मौजूद पोटेशियम और मैग्नेशियम से ब्लड प्रेशर नियंत्रित
रहता है .
- इसमें पेक्टिन होता है जो कोलेस्ट्रोल कम करता है .
- पेक्टिन से केंसर की सम्भावना विशेषकर प्रोस्ट्रेट और आहार
नाली के केंसर की संभावना कम होती है .
- ये वजन बढाने में सहायता करता है . गर्भावस्था में रोज़ एक
आम खाना अच्छा होता है .
- बुढापे को रोकता है , ब्रेन की मदद करता है और रोग
प्रतिरोधक शक्ति बढाता है .
- आम के रस में शहद मिलाकर सेवन करने से
प्लीहा वृद्धि की विकृति मिटती होती है।
- आम का रस 200 ग्राम, अदरक का रस 10 ग्राम और दूध 250
ग्राम मिलाकर पीने से शारीरिक व मानसिक निर्बलता नष्ट
होती है। स्मरण शक्ति तीव्र होती है।
- आम के बीज को धो कर सुखा कर उसे भून लेते है . उसे फोड़कर
उसके अन्दर की गिरी मुखवास में इस्तेमाल की जाती है . यह
बहुत पोषक होती है और पेट के लिए बहुत अच्छी होती है
- आम की गुठली के भीतरी की गिरी और हरड़ के बराबर
मात्रा में दूध के साथ पीसकर मस्तक पर लेप करने से सिरदर्द नष्ट
होता है।
- आम की गुठली के भीतरी गिरी को सुखाकर बारीक चूर्ण
बनाकर जल के साथ सेवन करने से स्त्रियों का प्रदर रोग दूर
होता है।
- आम वृक्ष पर लगे बौर को एरण्ड के तेल में देर तक पकाएं, जब बौर
जल जाएं तो तेल को छानकर बूंद-बूंद कान में डालने से कान
का दर्द ठीक होता है।

* चेहरे के काले धब्बों पर सेम की पत्ती का रस लगाये ....!

* सेम एक लता है। इसमें फलियां लगती हैं। फलियों की सब्जी खाई
जाती है। इसकी पत्तियां चारे के रूप में प्रयोग की जा सकती हैं।
* ललौसी नामक त्वचा रोग सेम की पत्ती को संक्रमित स्थान
पर रगड़ने मात्र से ठीक हो जाता है।
* चेहरे के काले धब्बों पर सेम की पत्ती का रस लगाने से लाभ
होता है.
* वैद्यक में सेम मधुर, शीतल, भारी, बलकारी, वातकारक, दाहजनक,
दीपन तथा पित्त और कफ का नाश करने वाली कही गई हैं।
* वात कारक होने से इसे अजवाइन , हिंग , अदरक , मेथी पावडर और
गरम मसाले के साथ फिल्टर्ड या कच्ची घानी के तेल में बनाए.
सब्जी में गाजर मिलाने से भी वात नहीं बनता.
* इसमें लौह तत्व , केल्शियम ,मेग्नेशियम , फोस्फोरस विटामिन ए
आदि होते है.
* इसके बीज भी शाक के रूप में खाए जाते हैं। इसकी दाल
भी होती है। बीज में प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त रहती है।
उसी कारण इसमें पौष्टिकता आ जाती है।
* सेम और इसकी पत्तियों का साग कब्ज़ दूर करता है.
* सेम रक्तशोधक है, फुर्ती लाती है, शरीर मोटा करती है।
* नाक के मस्सों पर सेम फली रगड़ कर फली को पानी में रखे. जैसे
जैसे फली पानी में गलेगी , मस्से भी कम होते जाएंगे.
* सेम की सब्जी खून साफ़ करती है और इससे होने वाले त्वचा के
रोग ठीक करती है.
* बिच्छु के डंक पर सेम की पत्ती का रस लगाने से ज़हर फैलता नहीं.
* सेम के पत्तों का रस तलवों पर लगाने से बच्चों का बुखार
उतरता है.

* दांतों की करे बेहतर देखभाल करे ......!

* अगर आप अपने दाँतो की अच्छे से देखभाल नहीं करते
तो दाँतो एवं मसूडों में होने वाली बीमारियाँ आपके
दाँतो को समय से पहले खत्म कर सकते हैं | कुछ बहुत ही साधारण से
तरीकों से आपके दाँत आपके साथ बहुत लंबे समय तक रह सकते हैं |
* हम सबके मुंह में हमेशा लाखों बैक्टीरिया रहते हैं जिनका कि एक
ही लक्ष्य होता है कि किसी तरह से कोई कड़ी सतह मिल जाए
तो उस पर जाकर चिपक जाएँ और फिर एक बड़ा समूह बना लें| यह
प्रक्रिया साल के ३६५ दिन, और चौबीसों घंटे हमारे मुंह में
होती रहती है | इस
प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता क्योंकि ये
बैक्टीरिया हमारे शरीर का एक हिस्सा हैं | जब ये
बेक्टीरिया कड़ी सतह यानी हमारे दाँतो पर चिपकते हैं तो एक
अदृश्य सतह, जिसको कि प्लेक कहते हैं, हमारे दांतों के चारों ओर
बना देते हैं | आपने शायद सुबह को उठकर अपने दाँतो पर जीभ
फिराते हुए कभी उस प्लेक को महसूस भी किया हो |
दाँतो की देखभाल करने का मुख्य उद्देश्य ब्रश या फ्लोस
की सहायता से इसी प्लेक को साफ़ करना होता है |
* अपने दाँतो को दिन में कम से कम दो बार लगभग दो मिनट
या इससे ज्यादा ब्रश करना चाहिए | ब्रश सभी दांतों के आगे
पीछे सभी जगह करना चाहिए और जीभ को भी साफ़
रखना चाहिए | सोने से पहले ब्रश करना सबसे ज्यादा फायदेमंद
रहता है | दिन में मुँह में रहने वाली राल भी हमारे
दांतों को बचाती है जबकि रात में हमारा मुह सूखा रहता है और
फंसा हुआ खाना उनको नुक्सान पहुंचाता है | अगर किसी कारण
कभी आप रात में ब्रश न कर पाए तो आपको पानी से जोरदार
कुल्ला जरूर करना चाहिए |
* हमारे दाँतो की सभी सतहो तक ब्रश नहीं पहुँच पाता |
दो दांतों के बाच की जगह में फंसा खाना दांतों को बहुत
ही नुक्सान पहुंचाता है इसको निकालने के लिए बहुत ही पतले
धागे का इस्तेमाल किया जाता है जिसको फ्लोस करना कहते हैं
| पुराने ज़माने में लोग खाना खाने के बाद दांत
को कुरेदना अच्छा मानते थे | ऐसा करना दांतों के साथ
मसूडो को भी बहुत फायदा पहुंचाता है |
* मुँह को स्वस्थ रखने के लिए जीभ को साफ़ करना भी उसी तरह
जरूरी है जैसे दाँतो को साफ़ करना जबकि हम अक्सर जीभ
की तरफ ध्यान नहीं देते | मुँह में बदबू, मसूडों या जीभ पर जमी मैल के
कारण ही होती है | आपकी साफ़ जीभ आपके दाँतो और
मसूडो को तो स्वस्थ रखती ही है साथ ही साथ ये आपकी साँस
को भी ताजगी प्रदान करती है |
* स्नैकस खाने से जितना बच सकें बचना चाहिए क्यूंकि स्नैक्स में
प्रयुक्त मसाले बहुत जल्दी ही दांतों में प्लेक को बनने में मदद करते हैं
जिससे जल्दी ही दाँतो में कैविटी हो जाती है |
चॉकलेट खाने से बचना चाहिए | चीज़ और दूध स्वस्थ दांतों के
लिए अच्छे होते हैं | मीठा कम खाना चाहिए |
हरी सब्जियाँ खानी चाहियें | सोडा या जूस के स्थान पर
पानी पीना चाहिए क्योंकि फलों के जूस में भी एसिड्स और
शुगर होते हैं जोकि दांतों को नुक्सान पहुंचाते हैं |
* करीब 90 फीसदी लोगों को दांतों से जुड़ी कोईन कोई
बीमारी या परेशानी होती है , लेकिन ज्यादातरलोग बहुत
ज्यादा दिक्कत होने पर ही डेंटिस्ट के पास जाना पसंद करते हैं।
इससे कई बार छोटी बीमारी सीरियस बनजाती है। अगर सही ढंग
से साफ - सफाई के अलावा हर 6 महीने में रेग्युलर चेकअप कराते रहें
तो दांतों कीज्यादातर बीमारियों को काफी हद तक सीरियस
बनने रोका जा सकता है।
* दांतों में ठंडा - गरम लगना , कीड़ा लगना ( कैविटी ) ,
पायरिया ( मसूड़ों से खून आना ) , मुंह से बदबू आना और
दांतों का बदरंग होना जैसी बीमारियां सबसे कॉमन हैं।
* ठंडा - गरम लगना
वजह :- दांत के टूटने , नींद में किटकिटाने , घिसने के बाद ,
मसूड़ों की जड़ें दिखने और दांतों में कीड़ा लगने पर ठंडा - गरम लगने
लगता है। कई बार बेहद दबाव के साथ ब्रश करने से भी दांत घिस
जाते हैं और दांत संवेदनशील बन जाते हैं।
बचाव :- ज्यादा दबाव से ब्रश न करें और दांत पीसने से बचें।
इलाज :- इलाज वजह के मुताबिक होता है। फिर भी आमतौर पर
डॉक्टर इसके लिए मेडिकेटेड टूथपेस्ट की सलाह देते हैं , जैसे
कि सेंसोडाइन , थर्मोसील रैपिड एक्शन , सेंसोफॉर्म , कोलगेटिव
सेंसटिव आदि। बिना डॉक्टर की सलाह लिए भी इन्हें इस्तेमाल
कर सकते हैं। लेकिन दो - तीन महीने के बाद भी समस्या बनी रहे
तो डॉक्टर को दिखाएं।
* दांत में कीड़ा लगना :-
वजह : -दांत में सूराख होने की वजह होती है , मुंह में
बननेवाला एसिड। हमारे मुंह में आम तौर पर बैक्टीरिया रहते हैं। जब
हम खाना खाते हैं तो खाने के बाद अगर हम कुल्ला या ब्रश न करें
तो खाने के कुछ कण मुंह में रह जाते हैं। ऐसी सूरत में खाना खा चुकने
के 20 मिनटों के अंदर ही बैक्टीरिया खाने के कणों खासकर
मीठी या स्टार्च वाली चीजों को एसिड में बदल देते हैं।
बैक्टीरिया वाला यह एसिड और मुंह की लार मिलकर एक
चिपचिपा पदार्थ ( प्लाक ) बनाते हैं। यह कुछ दांतों पर चिपक
जाता है। अगर काफी दिनों तक उन दांतों की ढंग से सफाई न
हो तो यह प्लाक सख्त होकर टारटर बन जाता है और दांतों व
मसूड़ों को खराब करने लगता है। प्लाक का बैक्टीरिया जब
दांतों में सूराख ( कैविटी ) कर देता है तो इसे
ही कीड़ा लगना ( कैरीज ) कहते हैं।
बचाव :- कीड़ा लगने से बचने का सबसे सही तरीका है कि रात
को ब्रश करके सोएं। मीठी और स्टार्च आदि की चीजें कम खाएं
और बार - बार न खाएं। मीठी चीजें खाने के बाद कुल्ला करें
या ब्रश करें। दांतों की अच्छी तरह सफाई करें।
कैसे पहचानें :- अगर दांतों पर काले - भूरे धब्बे नजर आने लगें ,
खाना किसी दांत में फंसने लगे और ठंडा - गरम लगने लगे
तो कैविटी हो सकती है। इस हालत में तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।
शुरुआत में ही ध्यान देने पर कैविटी बढ़ने से रुक जाती है।
* तुरंत राहत के लिए :- अगर दांत में दर्द
हो रहा हो तो पैरासिटामोल , एस्प्रिन , इबो - प्रोफिन
आदि ले सकते हैं। दवा न होने पर लौंग दाढ़ पर दबा सकते हैं या लौंग
का तेल भी लगा सकते हैं। यह मसूड़ों के दर्द से राहत दिलाता है।
इसके बाद डॉक्टर के पास जाकर फिलिंग कराएं।
फिलिंग क्यों जरूरी :-
फिलिंग न कराएं तो दांत में ठंडा - गरम और खट्टा -
मीठा लगता रहेगा। फिर दांत में दर्द होने लगता है और पस बन
जाती है। आगे जाकर रूट कनाल ट्रीटमंट की नौबत आ जाती है।
यानी जितनी जल्दी फिलिंग कराएं , उतना अच्छा है।
फिलिंग कौन - कौन सी
टेंपरेरी फिलिंग :- यह उस वक्त करते हैं , जब दांत में
काफी गहरी कैविटी हो। बाद में दर्द या सेंसटिविटी नहीं होने
पर परमानेंट फिलिंग कर देते हैं। अगर दिक्कत होती है तो रूट कनाल
या फिर दांत निकाला जाता है।
सिल्वर फिलिंग :- इसे एमैल्गम भी कहते हैं। इसमें सिल्वर , टिन ,
कॉपर को मरकरी के साथ मिलाकर मिक्सचर तैयार
किया जाता है।
तरीका :- सबसे पहले कीड़े की सफाई और कैविटी कटिंग
की जाती है। इसके बाद जिंक फॉस्फेट सीमेंट की लेयर लगाई
जाती है ताकि फिलिंग में इस्तेमाल होनेवाली मरकरी जड़ तक
पहुंचकर नुकसान न पहुंचाए। इसके बाद एमैल्गम भरा जाता है।
फिलिंग कराने के एक घंटे बाद तक कुछ न खाएं। बाद में फिलिंग
वाली दाढ़ के दूसरी तरफ से खा सकते हैं। 24 घंटे बाद फिलिंग वाले
दांत से खा सकते हैं।
फायदे :- यह दूसरी फिलिंग्स से सस्ती और ज्यादा मजबूत
होती है।
नुकसान :- यह ग्रे / ब्लैक होती है। देखने में खराब लगती है। इसे
मरकरी से मिक्स किया जाता है। नॉर्वे और स्वीडन में इस अमैलगम
पर बैन है। साथ ही , लीकेज होने के खतरे के अलावा कई बार इसमें
जंग भी लग जाती है।
कंपोजिट फिलिंग :- इसे कॉस्मेटिक या टूथ कलर फिलिंग
भी कहते हैं। इसे बॉन्डिंग टेक्निक और लाइट क्योर मैथड से तैयार
किया जाता है।
*तरीका :- पहले कैविटी कटिंग की जाती है , फिर सरफेस
को फॉस्फेरिक एसिड के साथ खुरदुरा किया जाता है। इससे
सरफेस एरिया बढ़ने के अलावा मटीरियल अच्छी तरह सेट
हो जाता है। इसके बाद मटीरियल भरा जाता है। छोटी -
छोटी मात्रा में कई बार मटीरियल भरा जाता है। हर बार करीब
30 सेकंड तक एलईडी लाइट गन की नीली रोशनी से उसे
पक्का किया जाता है। इसके बाद उभरी सतह को घिसकर शेप
दी जाती है और पॉलिशिंग होती है। फिलिंग कराने के तुरंत बाद
खा सकते हैं।
फायदे :- यह टूथ कलर की होती है। देखने में
पता भी नहीं चलता कि फिलिंग की गई है। यह ज्यादा टिकाऊ
होती है। अब नैनो तकनीक का मटीरियल आने से यह फिलिंग और
भी बेहतर हो गई है।
नुकसान :- फिलिंग कराते हुए दांत सूखा होना चाहिए ,
वरना मटीरियल निकलने का डर होता है। बच्चों में यह फिलिंग
नहीं की जाती। आमतौर पर उन्हीं दांतों में की जाती है , जिनसे
खाना चबाते हैं।
जीआईसी फिलिंग :- इसका पूरा नाम ग्लास इनोमर सीमेंट
फिलिंग है। यह ज्यादातर बच्चों में या बड़ों में कुछ सेंसेटिव
दांतों में की जाती है। इसमें सिलिका होता है। यह
हल्की होती है , इसलिए चबाने वाले दांतों में यह फिलिंग
नहीं की जाती। फिलिंग कराने के एक घंटे बाद तक कुछ न
खाना बेहतर रहता है।
तरीका :- यह सेल्फ क्योर और लाइट क्योर , दोनों तरीकों से
लगाई जाती है।
फायदे :- इसमें मौजूद फ्लोराइड आगे कीड़ा लगने से रोकता है ,
इसलिए इसे प्रिवेंटिव फिलिंग भी कहा जाता है।
नुकसान :- यह होती तो सफेद ही है , पर दांतों के रंग से मैच न करने
से देखने में अच्छी नहीं लगती और सभी दांतों में इसे
नहीं भरा जाता। चबाने वाले और सामने वाले दांतों में इसके
इस्तेमाल से बचा जाता है क्योंकि यह ज्यादा मजबूत नहीं होती।
वैसे , अब जीआईसी फिलिंग में भी दांतों के रंग के शेड आने लगे हैं।
* कब निकल जाती है फिलिंग :-
जब कैविटी की शेप और साइज ठीक न हो
जब कैविटी काफी बड़ी हो
जब फिलिंग को पूरा सपोर्ट न मिला हो
जब सही मटीरियल और तकनीक इस्तेमाल न की गई हो
जब फिलिंग कराते हुए दांत सूखा न रहा हो , उसमें लार आ गई हो
जब दांत और फिलिंग के बीच गैप आने से माइक्रो लीकेज हो जाए
फिलिंग से जुड़े दो और जरूरी पहलू
1. फिलिंग कराने के बाद कई बार दांत में सेंसिटिविटी आ
जाती है यानी उस दांत पर ठंडा या गर्म महसूस होने लगता है।
लेकिन यह कुछ दिनों में ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएं।
2. फिलिंग कराने के बाद कीड़ा बढ़ता नहीं है लेकिन कई बार
थोड़ी - बहुत लीकेज हो सकती है तो कई बार फिलिंग के नीचे
ही कीड़ा लग जाता है। ऐसे में अगर फिलिंग पुरानी हो गई है
तो हर 6 महीने में चेक करानी चाहिए।
रूट कनाल :-
* जब कीड़ा काफी बढ़ जाता है , दांत में गहरा सूराख कर देता है
और जड़ों तक इंफेक्शन फैल जाता है तो रूट कनाल किया जाता है।
जिन टिश्यूज में इंफेक्शन हो गया है , उन्हें स्टरलाइज्ड करके दांत में
एक मटीरियल भर दिया जाता है , ताकि वह बरकरार रहे।
यानी दांत ऊपर से पहले जैसा ही रहता है और काम करता है ,
जबकि दांत की ब्लड सप्लाई काट देते हैं। इससे कोई नुकसान
नहीं होता। हां , दांत में इंफेक्शन या किसी और
बीमारी की आशंका खत्म हो जाती है। इस प्रक्रिया में अक्सर
दांत के टूटने की आशंका बढ़ जाती है , इसलिए जरूरी है कि दांत
पर क्राउन लगाया जाए। इससे दांत का फ्रेक्चर भी रुकता है , लुक
भी पहले जैसा बना रहता है। कभी - कभी रूट कनाल फेल
भी हो जाती है। उसमें पस पड़ जाती है , तब डॉक्टर तय करता है
दांत निकालें या नहीं। ऐसी स्थिति में फिर से इलाज
किया जाता है। इस पूरे प्रॉसेस में चार - पांच सिटिंग लगती हैं।
* सांस में बदबू :-
* 95 फीसदी मामलों में मसूड़ों और दांतों की ढंग से सफाई न होने
और उनमें सड़न व बीमारी होने पर मुंह से बदबू आती है। कुछ
मामलों में पेट खराब होना या मुंह की लार
का गाढ़ा होना भी इसकी वजह होती है। प्याज और लहसुन
आदि खाने से भी मुंह से बदबू आने लगती है।
इलाज :- लौंग , इलायची चबाने से इससे छुटकारा मिल जाता है।
थोड़ी देर तक शुगर - फ्री च्यूइंगगम चबाने से मुंह की बदबू के
अलावा दांतों में फंसा कचरा निकल जाता है और मसाज
भी हो जाती है। इसके लिए बाजार में माउथवॉश भी मिलते हैं।
पायरिया :-
* मुंह से बदबू आने लगे , मसूड़ों में सूजन और खून निकलने लगे और चबाते
हुए दर्द होने लगे तो पायरिया हो सकता है। पायरिया होने पर
दांत के पीछे सफेद - पीले रंग की परत बन जाती है। कई बार
हड्डी गल जाती है और दांत हिलने लगता है।पायरिया की मूल
वजह दांतों की ढंग से सफाई न करना है।
इलाज -: पायरिया का सर्जिकल और नॉन सर्जिकल दोनों तरह
से इलाज होता है। शुरू में इलाज कराने से सर्जरी की नौबत
नहीं आती। क्लीनिंग , डीप क्लीनिंग ( मसूड़ों के नीचे ) और फ्लैप
सर्जरी से पायरिया का ट्रीटमंट होता है।
दांत निकालना कब जरूरी :-
* दांत अगर पूरा खोखला हो गया हो , भयंकर इन्फेक्शन
हो गया हो , मसूड़ों की बीमारी से दांत हिल गए
हों या बीमारी दांतों की जड़ तक पहुंच गई हो तो दांत
निकालना जरूरी हो जाता है।
ब्रश करने का सही तरीका :-
* यों तो हर बार खाने के बाद ब्रश करना चाहिए लेकिन
ऐसा हो नहीं पाता। ऐसे में दिन में कम - से - कम दो बार ब्रश जरूर
करें और हर बार खाने के बाद कुल्ला करें। दांतों को तीन - चार
मिनट ब्रश करना चाहिए। कई लोग दांतों को बर्तन की तरह
मांजते हैं , जोकि गलत है। इससे दांत घिस जाते हैं। आमतौर पर लोग
जिस तरह दांत साफ करते हैं , उससे 60-70 फीसदी ही सफाई
हो पाती है।
* दांतों को हमेशा सॉफ्ट ब्रश से हल्के दबाव से धीरे - धीरे साफ
करें। मुंह में एक तरफ से ब्रशिंग शुरू कर दूसरी तरफ जाएं। बारी -
बारी से हर दांत को साफ करें। ऊपर के दांतों को नीचे की ओर
और नीचे के दांतों को ऊपर की ओर ब्रश करें। दांतों के बीच में फंसे
कणों को फ्लॉस ( प्लास्टिक का धागा ) से निकालें। इसमें 7-8
मिनट लगते हैं और यह अपने देश में ज्यादा कॉमन नहीं है। दांतों और
मसूड़ों के जोड़ों की सफाई भी ढंग से करें। उंगली या ब्रश से धीरे -
धीरे मसूड़ों की मालिश करने से वे मजबूत होते हैं।
जीभ की सफाई जरूरी :- जीभ को टंग क्लीनर और ब्रश , दोनों से
साफ किया जा सकता है। टंग क्लीनर का इस्तेमाल इस तरह करें
कि खून न निकले।
कैसा ब्रश सही :- ब्रश सॉफ्ट और आगे से पतला होना चाहिए।
करीब दो - तीन महीने में या फिर जब ब्रसल्स फैल जाएं , तो ब्रश
बदल देना चाहिए।
टूथपेस्ट की भूमिका :- दांतों की सफाई में टूथपेस्ट
की ज्यादा भूमिका नहीं होती। यह एक मीडियम है ,
जो लुब्रिकेशन , फॉमिंग और फ्रेशनिंग का काम करता है।
असली एक्शन ब्रश करता है। लेकिन फिर भी अगर टूथपेस्ट
का इस्तेमाल करें , तो उसमें फ्लॉराइड होना चाहिए। यह दांतों में
कीड़ा लगने से बचाता है। पिपरमिंट वगैरह से ताजगी का अहसास
होता है। टूथपेस्ट मटर के दाने जितना लेना काफी होता है।
पाउडर और मंजन :- टूथपाउडर और मंजन के इस्तेमाल से बचें।
टूथपाउडर बेशक महीन दिखता है लेकिन काफी खुरदुरा होता है।
टूथपाउडर करें तो उंगली से नहीं , बल्कि ब्रश से। मंजन इनेमल
को घिस देता है।
दातुन -: नीम के दातुन में बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है
लेकिन यह दांतों को पूरी तरह साफ नहीं कर पाता। बेहतर विकल्प
ब्रश ही है। दातुन करनी ही हो तो पहले उसे अच्छी तरह चबाते रहें।
जब दातुन का अगला हिस्सा नरम हो जाए तो फिर उसमें दांत
धीरे - धीरे साफ करें। सख्त दातुन दांतों पर जोर - जोर से रगड़ने से
दांत घिस जाते हैं।
माउथवॉश :- मुंह में अच्छी खुशबू का अहसास कराता है। हाइजीन
के लिहाज से अच्छा है लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल
नहीं करना चाहिए।
* नींद में दांत पीसना :-
वजह :- गुस्सा , तनाव और आदत की वजह से कई लोग नींद में दांत
पीसते हैं। इससे आगे जाकर दांत घिस जाते हैं।
बचाव :- नाइटगार्ड यूज करना चाहिए।
स्केलिंग और पॉलिशिंग :-
* दांतों पर जमा गंदगी को साफ करने के लिए स्केलिंग और फिर
पॉलिशिंग की जाती है। यह हाथ और अल्ट्रासाउंड मशीन
दोनों तरीकों से की जाती है। चाय - कॉफी , पान और तंबाकू
आदि खाने से बदरंग हुए दांतों को सफेद करने के लिए ब्लीचिंग
की जाती है। दांतों की सफेदी करीब डेढ़ - दो साल टिकती है
और उसके बाद दोबारा ब्लीचिंग की जरूरत पड़ सकती है।
चेकअप कब कराएं :-
* अगर कोई परेशानी नहीं है तो कैविटी के लिए अलग से चेकअप
कराने की जरूरत नहीं है लेकिन हर छह महीने में एक बार
दांतों की पूरी जांच करानी चाहिए।
मुस्कुराते रहें :-
* मुस्कराहट और अच्छे व खूबसूरत दांतों के बीच दोतरफा संबंध है।
सुंदर दांतों से जहां मुस्कराहट अच्छी होती है , वहीं मुस्कराहट से
दांत अच्छे बनते हैं। तनाव दांत पीसने की वजह बनता है , जिससे
दांत बिगड़ जाते हैं। तनाव से एसिड भी बनता है ,
जो दांतों को नुकसान पहुंचाता है।
बच्चों के दांतों की देखभाल
छोटे बच्चों के मुंह में दूध की बोतल लगाकर न सुलाएं।
चॉकलेट और च्यूइंगम न खिलाएं। खाएं भी तो तुरंत कुल्ला करें।
बच्चे को अंगूठा न चूसने दें। इससे दांत टेढ़े - मेढ़े हो जाते हैं।
डेढ़ साल की उम्र से ही अच्छी तरह ब्रशिंग की आदत डालें।
छह साल से कम उम्र के बच्चों को फ्लोराइड वाला टूथपेस्ट न दें।

* टमाटर खाइए, डिप्रेशन से छुट्टी पाए ....!

* टमाटर हर सब्जी को जायकेदार बनाता है, यह तो सब जानते हैं
लेकिन एक नए अध्ययन में इसके एक अन्य गुण का पता चला है कि यह
डिप्रेशन से दूर रखने में भी सहायक है।
* अनुसंधानकर्ताओं ने इसके लिए 70 अथवा उससे अधिक उम्र के
करीब 1000 पुरुष और महिलाओं के भोजन की आदत और उनके
मानसिक स्वास्थ्य का विश्लेषण किया। उन्होंने
पाया कि जो लोग एक हफ्ते में दो से छह बार टमाटर खाते हैं उन्हें
उन लोगों की तुलना में डिप्रेशन से पीडि़त होने का खतरा 46
प्रतिशत कम होता है जो हफ्ते में केवल एक बार टमाटर खाते हैं
अथवा नहीं खाते।
* चीन और जापान के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन
में पाया गया कि अन्य फलों और सब्जियों के सेवन से यह लाभ
नहीं मिलता। मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में गोभी, गाजर, प्याज
और कद्दू बहुत कम लाभदायक हैं या बिल्कुल भी फायदेमंद नहीं हैं।
टमाटर में एंटीआक्सीडेंट रसायन काफी होता है जो कुछ
बीमारियों से बचाने में मददगार होता है। अध्ययन एफेक्टिव
डिसऑर्डर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। —

गठिया के घरेलू उपचार


आज कल हमारी दिनचर्या हमारे खान -पान से गठिया का रोग
45 -50 वर्ष के बाद बहुत से लोगो में पाया जा रहा है । गठिया में
हमारे शरीर के जोडों में दर्द होता है, गठिया के पीछे यूरिक
एसीड की बड़ी भूमिका रहती है। इसमें हमारे शरीर मे यूरिक एसीड
की मात्रा बढ जाती है। यूरिक एसीड के कण घुटनों व अन्य
जोडों में जमा हो जाते हैं। जोडों में दर्द से रोगी का बुरा हाल
रहता है। इस रोग में रात को जोडों का दर्द बढता है और सुबह
अकडन मेहसूस होती है। इसकी पहचान होने पर
इसका जल्दी ही इलाज करना चाहिए
अन्यथा जोडों को बड़ा नुकसान हो सकता है।हम यहाँ पर
गठिया के अचूक घरेलू उपाय बता रहे है.......
*दो बडे चम्मच शहद और एक छोटा चम्मच दालचीनी का पावडर
सुबह और शाम एक गिलास मामूली गर्म जल से लें। एक शोध में
कहा है कि चिकित्सकों ने नाश्ते से पूर्व एक बडा चम्मच शहद और
आधा छोटा चम्मच दालचीनी के पावडर का मिश्रण गरम
पानी के साथ दिया। इस प्रयोग से केवल एक हफ़्ते में ३० प्रतिशत
रोगी गठिया के दर्द से मुक्त हो गये। एक महीने के प्रयोग से
जो रोगी गठिया की वजह से चलने फ़िरने में असमर्थ हो गये थे वे
भी चलने फ़िरने लायक हो गये।
*लहसुन की 10 कलियों को 100 ग्राम पानी एवं 100 ग्राम दूध में
मिलाकर पकाकर उसे पीने से दर्द में शीघ्र ही लाभ होता है।
*सुबह के समय सूर्य नमस्कार और प्राणायाम करने से भी जोड़ों के
दर्द से स्थाई रूप से छुटकारा मिलता है।
*एक चम्मच मैथी बीज रात भर साफ़ पानी में गलने दें। सुबह
पानी निकाल दें और मैथी के बीज अच्छी तरह चबाकर खाएं।
मैथी बीज की गर्म तासीर मानी गयी है। यह गुण जोड़ों के दर्द दूर
करने में मदद करता है।
*गठिया के रोगी 4-6 लीटर पानी पीने की आदत डालें। इससे
ज्यादा पेशाब होगा और अधिक से अधिक विजातीय पदार्थ और
यूरिक एसीड बाहर निकलते रहेंगे।
*एक बड़ा चम्मच सरसों के तेल में लहसुन की 3-4 कुली पीसकर डाल
दें, इसे इतना गरम करें कि लहसुन भली प्रकार पक जाए, फिर इसे
आच से उतारकर मामूली गरम हालत में इससे जोड़ों की मालिश
करने से दर्द में तुरंत राहत मिल जाती है।
*प्रतिदिन नारियल की गिरी के सेवन से भी जोड़ो को ताकत
मिलती है।
*आलू का रस 100 ग्राम प्रतिदिन भोजन के पूर्व लेना बहुत हितकर
है।
*प्रात: खाली पेट एक लहसन कली, दही के साथ दो महीने तक
लगातार लेने से जोड़ो के दर्द में आशातीत लाभ प्राप्त होता है।
*250 ग्राम दूध एवं उतने ही पानी में दो लहसुन की कलियाँ, 1-1
चम्मच सोंठ और हरड़ तथा 1-1 दालचीनी और
छोटी इलायची डालकर उसे अच्छी तरह से धीमी आँच में पकायें।
पानी जल जाने पर उस दूध को पीयें, शीघ्र लाभ प्राप्त होगा ।
*संतरे के रस में १15 ग्राम कार्ड लिवर आईल मिलाकर सोने से पूर्व
लेने से गठिया में बहुत लाभ मिलता है।
*अमरूद की 4-5 नई कोमल पत्तियों को पीसकर उसमें
थोड़ा सा काला नमक मिलाकर रोजाना खाने से से जोड़ो के
दर्द में काफी राहत मिलती है।
*काली मिर्च को तिल के तेल में जलने तक गर्म करें। उसके बाद
ठंडा होने पर उस तेल को मांसपेशियों पर लगाएं, दर्द में तुरंत आराम
मिलेगा।
*दो तीन दिन के अंतर से खाली पेट अरण्डी का 10 ग्राम तेल
पियें। इस दौरान चाय-कॉफी कुछ भी न लें
जल्दी ही फायदा होगा।
*दर्दवाले स्थान पर अरण्डी का तेल लगाकर, उबाले हुए बेल के
पत्तों को गर्म-गर्म बाँधे इससे भी तुरंत लाभ मिलता है।
*गाजर को पीस कर इसमें थोड़ा सा नीम्बू का रस मिलाकर
रोजाना सेवन करें । यह जोड़ो के लिगामेंट्स का पोषण कर दर्द से
राहत दिलाता है।
*हर सिंगार के ताजे 4-5 पत्ती को पानी के साथ पीस ले,
इसका सुबह-शाम सेवन करें , अति शीघ्र स्थाई लाभ प्राप्त
होगा ।
*गठिया रोगी को अपनी क्षमतानुसार हल्का व्यायाम अवश्य
ही करना चाहिए क्योंकि इनके लिये अधिक परिश्रम
करना या अधिक बैठे रहना दोनों ही नुकसान दायक हैं।
*100 ग्राम लहसुन की कलियां लें।इसे सैंधा नमक,जीरा,हींग,प
ीपल,काली मिर्च व सौंठ 5-5 ग्राम के साथ पीस कर मिला लें।
फिर इसे अरंड के तेल में भून कर शीशी में भर लें। इसे एक चम्मच
पानी के साथ दिन में दो बार लेने से गठिया में आशातीत लाभ
होता है।
*जेतुन के तैल से मालिश करने से भी गठिया में बहुत लाभ मिलता है।
*सौंठ का एक चम्मच पावडर का नित्य सेवन गठिया में बहुत
लाभप्रद है।
*गठिया रोग में हरी साग सब्जी का इस्तेमाल बेहद फ़ायदेमंद
रहता है। पत्तेदार सब्जियो का रस भी बहुत लाभदायक रहता है।
*गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल
को खूब उबालकर इसका लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम
मिलता है।

सोमवार, 22 दिसंबर 2014

बहुत व्यापक है आयुर्वेद

आयुर्वेद इस भूमण्डल में स्वास्थ्य एवं रोग निवारण के ज्ञान
का सर्वप्रथम स्रोत है। वैसे तो यह ज्ञान प्रकृति की उत्पत्ति के
साथ ही उत्पन्न हुआ, लेकिन इसका नामकरण भगवान
धन्वन्तरि जी द्वारा किया गया। भगवान धन्वन्तरि ने
चिकित्सा को दो भागों में विभक्त किया-
औषधि चिकित्सा और शल्य चिकित्सा। आयुर्वेद का ज्ञान
बहुत ही विशाल है। इसमें ही ऐसी प्रणाली का ज्ञान है,
जो मानव को निरोगी रहते हुए स्वस्थ लम्बी आयु तक जीवित
रहने की लिये मार्ग प्रशस्त कराता है,
ताकि प्राणी सारी उम्र सुख शान्ति व निरोगी रहकर लम्बे
समय तक अपना जीवन यापन कर सके। मानव हित व अहित किसमें
है,अायुर्वेद इसका ज्ञान कराता है। यह पांचवां वेद है।
पांचों वेदों में सर्वप्रथम यही है, जो प्राणी के स्वास्थ्य
की रक्षा करने की कला का ज्ञान कराता है। आयुर्वेद में
जड़ी-बूटी-भस्म, तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र, ज्योतिष
आदि को दर्शाया गया है। ये इसके ही अंग-प्रत्यंग हैं। ऐसा कोई
रोग नहीं है, जिसको आयुर्वेद ने न दर्शाया हो। यहां तक
कि कैन्सर एवं एड्स जैसे भयानक रोगों के लक्षण एवं उनके उपचार
की प्रक्रिया को भी आयुर्वेद में बताया गया है। मिरगी दौरे
जैसे असामान्य माने जाने वाले रोग की इसमें सफल
चिकित्सा का ज्ञान कराया गया है।
आयुः कामयमानेन धर्मार्थ सुखसाधनम्
आयुर्वेदो देशेषु विधेय परमादरः।।
अर्थात धर्म, अर्थ एंव काम नामक पुरुषार्थों का साधन आयु
ही है। अतः आयु की कामना करने वाले को आयुर्वेद के
प्रति सत्य निष्ठा रखते हुए इसके उपदेशों का पालन
करना नितान्त आवश्यक है।
इस पृथ्वी की रचना के साथ ही ब्रह्मा जी ने प्राणियों के
स्वास्थ्य की रक्षा के लिये जड़ी-बूटियों के रूप में आयुर्वेद के
ज्ञान को प्रसारित किया। ताकि उनके बनाये प्राणि स्वस्थ
बने रहें। वैसे तो चारों वेद अनन्त काल से हैं, लेकिन
मेरा मानना यह है कि इन चारों वेदों से भी पूर्व आयुर्वेद
स्थापित हुआ और कुछ समय पश्चात आवश्यकता के अनुसार
प्रकाण्ड विद्वानों ने अपने-अपने अनुसन्धान के माध्यम से
आयुर्वेद को आठ भागों मे विभक्त कर दिया। जैसे- काय
चिकित्सा, बाल तन्त्र, भूत विद्या, शल्य चिकित्सा, स्पर्श
चिकित्सा, मंत्र चिकित्सा,रसायन तंत्र (आयुवर्धक एवं
निरोगी शरीर का ज्ञान) और बाजीकरण चिकित्सा।
वास्तव में जितनी भी पाश्चात्य चिकित्साएं हैं, ये
सारी की सारी निकली इसी से हैं।
सभी चिकित्सा पद्धतियों की जननी आयुर्वेद ही है।
नाड़ी ज्ञान केवल आयुर्वेद की ही देन है। इसमें वैद्य
रोगी की नाड़ी को पकड़ कर ही उसके शरीर के अन्दर व्याप्त
रोगों का वर्णन कर देता है। चिकित्सा का प्रयोजन
रोगी को रोग से शान्ति दिलाना है। परन्तु आयुर्वेद कहता है
कि रोगी को रोग से शान्ति तो होनी ही चाहिये साथ
ही प्राणी के स्वास्थ्य की रक्षा कैसे की जाये, इसका ज्ञान
भी आयुर्वेद कराता है। ताकि प्राणी जीवनपर्यन्त निरोगी रह
कर आनन्द पूर्व जीवन बिता सके।
यह बात अवश्य ध्यान में लावें
कि जितनी भी चिकित्सा पद्धतियां हैं, उन सभी में केवल
आयुर्वेद ही यह ज्ञान देता है कि यदि आयु है तो उसकी रक्षा,
संवर्धन, संरक्षण करते हुए कैसे आनन्दपूर्वक जीवन बिताया जाये।
इसीलिये आयुर्वेद का ज्ञान तथा आयुर्वेद दवाओं
की उपयोगिता अति आवश्यक है। 

नीम्बू के औषधीय गुण व् प्रयोग

नींबू एक रसीला फल है जो आता तो फल की श्रेणी में है लेकिन
काम करता है सब्जियों में। नींबू के रस से
किसी भी सब्जी का स्वाद और ज्यादा बढ़ जाता है। यह फल
स्वादिष्ट होने के साथ -साथ विटामिन सी से भरपूर भी है।
नींबू में और भी कई तत्व पाए जाते हैं जिनकी वजह से नींबू कई
रोगों में दवा की तरह भी काम करता है। खासतौर से पेट से
संबंधित परेशानियों के लिए नींबू का प्रयोग कई तरीकों से
किया जाता है। तो आईये जानते हैं नींबू के ऐसे ही कुछ
फायदों के बारे में -
१- एक गिलास पानी में एक नींबू निचोड़कर रात को सोते
समय पीने से पेट साफ़ हो जाता है |
२- एक गिलास गुनगुने पानी में एक नींबू का रस व एक चम्मच शहद
मिलाकर पीने से कब्ज दूर होती है और शरीर का वजन घटने
लगता है |
३- नींबू के रस के सेवन से पेट के कीड़े मर जाते हैं |
४- नींबू के रस में जैतून का तेल मिलाकर चहरे पर मलने से दाग-
धब्बे,मुहांसे तथा झाईयां समाप्त होती हैं |
५- हैजा के रोग में नींबू का पानी ज्यादा से
ज्यादा पीना चाहिए, इसकी वजह से शरीर में
पानी की कमी नहीं होती |
६- लगभग आधा कप गाजर के रस में नींबू का रस मिलकर पीने से
शरीर में खून की कमी दूर होती है |
७- यदि किसी को खांसी-जुक़ाम अधिक परेशान
करता हो तो आधे नींबू के रस को दो चम्मच शहद के साथ
मिलकर पीने से लाभ होता है |
८- आधे नींबू का रस व थोड़ा सा सेंधा नमक १०० मिलीलीटर
पानी में डालकर पीने से पेट दर्द में आराम मिलता है |

अंकुरित गेहूं खाने से होते हैं ये जबरदस्त फायदे, दूर होती है ये प्रॉब्लम्स


स्वस्थ रहने के लिए अधिकतर लोग भोजन में सलाद भी शामिल
करते हैं क्योंकि माना जाता है कि खीरा, ककड़ी, टमाटर,
मूली, चुकन्दर, गोभी आदि खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत
अच्छा है। लेकिन अगर पत्तेदार सब्जी व सलाद के साथ
ही भोजन में अंकुरित अनाज को शामिल किया जाए तो यह
बहुत फायदेमंद होता है, क्योंकि बीजों के अंकुरित होने के
बाद इनमें पाया जाने वाला स्टार्च- ग्लूकोज, फ्रक्टोज एवं
माल्टोज में बदल जाता है जिससे न सिर्फ इनके स्वाद में
वृद्धि होती है बल्कि इनके पाचक एवं पोषक गुणों में
भी वृद्धि हो जाती है। वैसे तो अंकुरित दाल व अनाज
खाना लाभदायक होता है ये तो सभी जानते हैं लेकिन आज हम
बताते हैं इन्हें खाने के कुछ खास फायदे जिन्हें आप शायद
ही जानते होंगे....
- अंकुर उगे हुए गेहूं में विटामिन-ई भरपूर मात्रा में होता है। शरीर
की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन-ई एक आवश्यक
पोषक तत्व है। यही नहीं, इस तरह के गेहूं के सेवन से त्वचा और बाल
भी चमकदार बने रहते हैं। किडनी, ग्रंथियों, तंत्रिका तंत्र
की मजबूत तथा नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी इससे
मदद मिलती है। अंकुरित गेहूं में मौजूद तत्व शरीर से अतिरिक्त
वसा का भी शोषण कर लेते हैं।
- अंकुरित गेहूं में उपस्थित फाइबर के कारण इसके नियमित सेवन से
पाचन क्रिया भी सुचारु रहती है। अत: जिन लोगों को पाचन
संबंधी समस्याएं हो उनके लिए भी अंकुरित गेहूं का सेवन
फायदेमंद है। अंकुरित खाने में एंटीआक्सीडेंट, विटामिन ए, बी,
सी, ई पाया जाता है। इससे कैल्शियम, फॉस्फोरस,
मैग्नीशियम, आयरन और जिंक मिलता है। रेशे से भरपूर अंकुरित
अनाज पाचन तंत्र को सुदृढ बनाते हैं।
- अंकुरित भोजन शरीर का मेटाबॉलिज्म रेट बढ़ता है। यह
शरीर में बनने वाले विषैले तत्वों को बेअसर कर, रक्त को शुध्द
करता है। अंकुरित गेहूं के दानों को चबाकर खाने से शरीर
की कोशिकाएं शुध्द होती हैं और इससे नई कोशिकाओं के
निर्माण में भी मदद मिलती है।
- अंकुरित भोज्य पदार्थ में मौजूद विटामिन और प्रोटीन
होते हैं तो शरीर को फिट रखते हैं और कैल्शियम
हड्डियों को मजबूत बनाता है।
- अंकुरित मूंग, चना, मसूर, मूंगफली के दानें आदि शरीर
की शक्ति बढ़ाते हैं।अंकुरित दालें थकान, प्रदूषण व बाहर के
खाने से उत्पन्न होने वाले ऐसिड्स को बेअसर कर देतीं हैं और साथ
ही ये ऊर्जा के स्तर को भी बढ़ा देती हैं।]

सेंधा नमक खाए और स्वस्थ रहिए :-

सेंधा नमक कितना फायदेमंद है जानिए –
प्राकृतिक नमक हमारे शरीर के लिये बहुत जरूरी है। इसके बावजूद
हम सब घटिया किस्म का आयोडिन मिला हुआ समुद्री नमक
खाते है। यह शायद आश्चर्यजनक लगे , पर यह एक हकीकत है ।
नमक विशेषज्ञ का कहना है कि भारत मे अधिकांश लोग समुद्र
से बना नमक खाते है जो की शरीर के लिए हानिकारक और
जहर के समान है । समुद्री नमक तो अपने आप मे बहुत खतरनाक है
लेकिन उसमे आयोडिन नमक मिलाकर उसे और
जहरीला बना दिया जाता है , आयोडिन की शरीर मे मे
अधिक मात्र जाने से नपुंसकता जैसा गंभीर रोग
हो जाना मामूली बात है।
उत्तम प्रकार का नमक सेंधा नमक है, जो पहाडी नमक है । आयुर्वेद
की बहुत सी दवाईयों मे सेंधा नमक का उपयोग होता है।आम
तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च
रक्तचाप ,डाइबिटीज़,लकवा आदि गंभीर
बीमारियो का भय रहता है । इसके विपरीत सेंधा नमक के
उपयोग से रक्तचाप पर नियन्त्रण रहता है । इसकी शुद्धता के
कारण ही इसका उपयोग व्रत के भोजन मे होता है ।
ऐतिहासिक रूप से पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज
पत्थर के नमक को 'सेंधा नमक' या 'सैन्धव नमक' कहा जाता है
जिसका मतलब है 'सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ'।
अक्सर यह नमक इसी खान से आया करता था। सेंधे नमक
को 'लाहौरी नमक' भी कहा जाता है क्योंकि यह
व्यापारिक रूप से अक्सर लाहौर से होता हुआ पूरे उत्तर भारत में
बेचा जाता था।
भारत मे 1930 से पहले कोई भी समुद्री नमक
नहीं खाता था विदेशी कंपनीया भारत मे नमक के व्यापार मे
आज़ादी के पहले से उतरी हुई है ,उनके कहने पर ही भारत के
अँग्रेजी प्रशासन द्वारा भारत
की भोली भली जनता को आयोडिन मिलाकर समुद्री नमक
खिलाया जा रहा है सिर्फ आयोडीन के चक्कर में
ज्यादा नमक खाना समझदारी नहीं है,
क्योंकि आयोडीन हमें आलू, अरवी के साथ-साथ
हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।
यह सफ़ेद और लाल रंग मे पाया जाता है । सफ़ेद रंग वाला नमक
उत्तम होता है। यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और
पाचन मे मददरूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात
ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं।
रक्त विकार आदि के रोग जिसमे नमक खाने को मना हो उसमे
भी इसका उपयोग किया जा सकता है। यह पित्त नाशक और
आंखों के लिये हितकारी है । दस्त, कृमिजन्य रोगो और
रह्युमेटिज्म मे काफ़ी उपयोगी होता है ।

सरदर्द का उपाय.....

सरदर्द के लिए अचूक "प्राकृतिक चिकित्सा "मात्र पांच
मिनट में सरदर्द "गायब"
नाक के दो हिस्से हैं दायाँ स्वर और बायां स्वर जिससे हम
सांस लेते और छोड़ते हैं ,पर यह बिलकुल अलग - अलग असर डालते हैं
और आप फर्क महसूस कर सकते हैं |
दाहिना नासिका छिद्र "सूर्य" और
बायां नासिका छिद्र "चन्द्र" के लक्षण को दर्शाता है
या प्रतिनिधित्व करता है |
सरदर्द के दौरान, दाहिने नासिका छिद्र को बंद करें और
बाएं से सांस लें |
और बस ! पांच मिनट में आपका सरदर्द "गायब" है ना आसान ??
और यकीन मानिए यह उतना ही प्रभावकारी भी है..
===========================
अगर आप थकान महसूस कर रहे हैं तो बस इसका उल्टा करें...
यानि बायीं नासिका छिद्र को बंद करें और दायें से सांस
लें ,और बस ! थोड़ी ही देर में "तरोताजा" महसूस करें |
===========================
दाहिना नासिका छिद्र "गर्म प्रकृति" रखता है और
बायां "ठंडी प्रकृति"
अधिकांश महिलाएं बाएं और पुरुष दाहिने नासिका छिद्र से
सांस लेते हैं और तदनरूप क्रमशः ठन्डे और गर्म प्रकृति के होते हैं सूर्य
और चन्द्रमा की तरह |
================
प्रातः काल में उठते समय अगर आप बायीं नासिका छिद्र से
सांस लेने में बेहतर महसूस कर रहे हैं तो आपको थकान जैसा महसूस
होगा ,तो बस बायीं नासिका छिद्र को बंद करें, दायीं से
सांस लेने का प्रयास करें और तरोताजा हो जाएँ |
================
अगर आप प्रायः सरदर्द से परेशान रहते हैं तो इसे
आजमायें ,दाहिने को बंद कर बायीं नासिका छिद्र से सांस
लें
बस इसे नियमित रूप से एक महिना करें और स्वास्थ्य लाभ लें |
==============
तो बस इन्हें आजमाइए और बिना दवाओं के स्वस्थ महसूस करें |

मनुष्य का सौभाग्य और दुर्भाग्य

आयुर्वेद जैसा अत्यधिक उपयोगी शास्त्र संसार में दूसरा कोई
नहीं है । ऐसे अद्भुत, अद्वितीय, अमूल्य और दिव्य शास्त्र
का उपयोग करके मनुष्य को अपने स्वास्थ्य
की रक्षा तथा सौभाग्य की वृद्धि करनी चाहिए । मनुष्य
का यह परम सौभाग्य है
कि परमपिता परमात्मा द्वारा प्रदत्त ज्ञान वेदों का उपवेद
आयुर्वेद जैसा परम कल्याणकारी, अत्यधिक
उपयोगी तथा अथाह ज्ञान का भंडार इसे उपलब्ध है । इस
शास्त्र को योगी, तपस्वी और दिव्य ज्ञानी ऋषि-
मुनियों ने निस्वार्थ भावना तथा जगत कल्याण
की कामना से अपने अनुभव के आधार पर युक्ति और
प्रमाणों सहित प्रस्तुत किया था ।
यदि मनुष्य आयुर्वेद जैसे उपयोगी और महान शास्त्र के होते हुए
भी इससे लाभ न उठाए तथा इसके अनुसार व्यवहार न करे,
तो दुखी और रोगी नहीं होगा तो क्या होगा ? आयुर्वेद के
ज्ञान से वंचित रहना मनुष्य का दुुर्भाग्य है । ज्ञान हो परन्तु
उसके अनुसार आचरण न हो, तो यह परम दुर्भाग्य है । आयुर्वेद में इसे
प्रज्ञापराध कहा गया है कि जानबूझकर भी गलत आहार-
विहार तथा आचरण किया जाए। प्रज्ञापराध ही सब
रोगों का मूल कारण है । सोए हुए
को तो जगाया जा सकता है । परन्तु जागता हुआ
व्यक्ति यदि सोने का नाटक कर रहा हो,
तो उसका क्या किया जा सकता है !

आयुर्वेद Ayurveda

शरीर, इन्द्रीय और आत्मा के संयोग का नाम आयु है। नित्य
प्रति चलने से कभी भी एक क्षण न रूकने से इसे आयु कहते हैं। आयु
का ज्ञान जिस विद्या से प्राप्त किया जाता है वह
आयुर्वेद है। ज्ञान का प्रारम्भ सृष्टि से पूर्व हुआ यह सुश्रुत
संहिता कहती है। अतः पहले आयुर्वेद उत्पन्न हुआ उसके बाद
प्रजा उत्पन्न हुई।
जीवन के लिए क्या उपयोगी है क्या अनुपयोगी यह ज्ञान
जो शास्त्र दे वही आयुर्वेद है। इसी कारण आयु
सम्बन्धी ज्ञान शाश्वत है। केवल इसका बोध और उपदेश मात्र
ही ग्रन्थों में कहा गया है।
वेद शब्द का अर्थ ज्ञान है विद् ज्ञाने। यह आयुर्वेद अथर्ववेद
का जिसका कि सम्बन्ध मानव जीवन के साथ अधिक है।
इसमें ज्ञान, कर्म, उपासना तीनो का समावेश है। इसी लिए
आयुर्वेद को वेद का उपांग माना गया है। आयु का पर्याय
चेतना अनुबन्ध, जीवितानुबन्ध है।
आयु का सम्बन्ध केवल शरीर से नहीं है और इसका ज्ञान
भी आयुर्वेद नहीं है। शरीर, इन्द्रिय, मन और आत्मा इन
चारों का ज्ञान आयुर्वेद है।
शरीर आत्मा का भोगायतन पंच महाभूत विकारात्मक है।
इन्द्रियाँ भोग का साधन है, मन अन्तः करण है, आत्मा मोक्ष
या ज्ञान प्राप्त करने वाला; इन चारों का अदृष्ट-कर्मवश
जो संयोग होता है वही आयु है। इसी आयु के हित-अहित, सुख-
दुख का ज्ञान तथा आयु का मान जहाँ कहीं हो उसे आयुर्वेद
कहते हैं। वेदों में भी इसी का ज्ञान है।
इसीलिए महर्षि काश्यप का कथन है कि जिस प्रकार से
हाथ में चार अँगुली और पाँचवा अँगूठा है वह एक ही हाथ में
रहता हुआ भी नाम और रूप से भिन्न है और सब अँगुलियों पर
अँगूठा शासन करता है उसी प्रकार चारों वेद के साथ
रहता हुआ भी पाँचवा आयुर्वेद इन सबमें मुख्य है। इसी से
कवि कालीदास ने कहा है धर्म का मुख्य साधन शरीर है।
आयुर्वेद ग्रन्थों में संसार में रोग नही थे। सभी प्राणी रोग
रहित आनन्द पूर्वक रहते थे। आयुर्वेद ग्रन्थों में रोग के जगत में
प्रारम्भ होने के कारण भी दिये हैं। सती के शरीर के दक्ष यज्ञ
में अबग्न में प्रज्ज्वलित होने के बाद शिव के क्रुद्ध होने के
कारण ज्वर की उत्पत्ति हुई उससे पहले पृथ्वी पर ज्वर (बुखार)
रोग ही नहीं था।
वेदों में रोग के तीन कारण बतलाये गये हैं -
1. शरीर अर्गृगत विष – जिसके लिए यक्ष्म शब्द आता है।
2. रोगों का कारण कृमि – अथर्ववेद 5/29-9-7 में अन्न, जल
आदि पदार्थों में प्रवेश करके कृमि शरीर में प्रवेश करते हैं तब वह
व्यक्ति को रोगी कर देते हैं। यजुर्वेद 46/6 में लिखा है जल
आदि के द्वारा जूठे पात्रों में कृमि लगे रहते हैं । इन पात्रों में
भोजन करने वाले के शरीर में यह कृमि पहुँचते हैं और रोग फैलाते
हैं।
3. वात, पित्त, कफ तीसरा कारण इन तीनों का विकृत
हो जाना है।
वेदों में कहीं-कहीं पर कृमियों को ही राक्षस कहा गया है
वही इनके रूप और कार्य को बतलाया गया है। वेदों में 100 से
अधिक प्रकार के कृमियों का नाम पं॰ रामगोपाल
शास्त्री जी ने वेदों में से एकत्र करके बतलाया है।
आयुर्वेद अनुसार रोग के दो अधिष्ठान है- मन और शरीर। मन के
दो दोष हैं- रज और तम। गईं बार शरीर स्वस्थ दीखता है परन्तु
मन अस्वस्थ रहता है और वही मानसिक रोग के लक्षण शरीर में
प्रकट होकर मनौदैहिक रोग कहलाते हैं।
मन की महत्वता यजुर्वेद में निम्न प्रकार से बतायी गयी है- मन
प्राणियों के अन्दर अमृत रूप है, मन के बिना कोई भी कर्म
किया नहीं जा सकता। यह शरीर रूपी रथ को मन
रूपी सारथी ही चलाता है। मन के बल से बहुत से रोग नष्ट होते
हैं।
यजुर्वेद में औषधियों के लिए बहुत से मन्त्र आये हैं वही मन्त्र
औषधियों के स्वरूप, महत्त्व और गुण को प्रकट करते हैं।
यजुर्वेद में कहा गया है- जो वृक्ष फूल, पत्ते और फलों के बोझ
को उठाये हुए धूप की तपन और शीत की पीड़ा को सहन
करता है तथा दूसरों के सुख के लिए अपना शरीर अर्पित कर
देता है उस वंदनीय श्रेष्ठ तरू के लिए नमस्कार है।
आयुर्वेद का मूल आधार त्रिदोष वात, पित्त, कफ है। यह
त्रिदोष मूल रूप से त्रिगुणात्मक प्रकृति पर आधारित है।
शरीर में दोषों की व्यापकता दूध के अन्दर व्याप्त
घी की भांति है शरीर के प्रत्येक धातु में, प्रत्येक कण में ये
तीनो दोष रहते हैं। शरीर के जिस भाग में जो दोष अधिक
परिमाण में रहता है, उसे सामान्य भाषा में उस दोष
का स्थान कहते हैं। इस दृष्टि से नाभि से नीचे का स्थान वायु
का, नाभि से ऊपर गले तक पित्त का स्थान है तथा गले से सिर
तक में कफ का स्थान है। सामान्यतः सत्व को पित्त, रज
को वायु और कफ को तमो कारक माना है। शरीर में वात-
पित्त-कफ का वही स्थान है जो प्रकृति में सत्व, रज, तम का है।

सर्दी का तोहफा..


सर्दी का तोहफा..
500 ग्राम शुद्ध दूध लीजिए.
इसको किसी बर्तन मे डाल कर उबालने क लिए रख दीजिए.
और इसमें 4 खजूर (बीज निकल कर) डाल दीजिए.
1 चम्मच अश्वगंधा की जड़ का पाउडर डाल दीजिए.
अब इसको पकाइए. जब दूध की मात्रा 250 से 300 ग्राम बच
जाए तो उतार लीजिए.
इसे गर्म या गुनगुना रात्रि में पीना है. एवं खजूर
को खा लीजिए.. जो बिल्कुल नर्म हो चुके होंगे
या अधिकतर घुल चुके होंगे.
इसके नियमित सेवन से शरीर से चुस्ती रहेगी. शरीर सर्द हवाओं से
लड़ने मे सक्षम हो जाएगा. रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़
जाएगी. शुक्राणु भी बढ़ जाएँगे. पाचन तंत्र भी सही रहेगा.
थकावट नही होगी. और भी काफ़ी लाभ हैं जो आपको स्वयं
पता लग जाएँगे.
अश्वगंधा की जड़ किसी भी पंसारी से आसानी से मिल
जाती है.
खजूर की संख्या कम से कम 2 एवं अधिकतम 4 है. जो शरीर
की क्षमता के अनुसार कम ज़्यादा की जा सकती है.
मधुमेह वाले ना लें एवं यह प्रयोग सिर्फ़ सर्दियों के लिए है

आयुर्वेद में नयी खोजें


आयुर्वेद लगभग, 5000 वर्ष पुराना चिकित्सा विज्ञान है। इसे
भारतवर्ष के विद्वानों नें भारत की जलवायु, भौगालिक
परिस्थितियों, भारतीय दर्शन, भारतीय ज्ञान-विज्ञान के
द्ष्टकोण को ध्यान में रखते हुये विकसित किया है। वतर्मान में
स्वतंत्रता के पश्चात आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान ने बहुत
प्रगति की है। भारत सरकार द्वारा स्थापित संस्था ‘’केन्द्रीय
आयुर्वेद एवं सिद्ध अनुसंधान परिषद’’ (Central council for
research in Ayurveda and Siddha, CCRAS) नई दिल्ली, भारत,
आयुर्वेद में किये जा रहे अनुसन्धान कार्यों को समस्त देश में फैले
हुये शोध सन्स्थानों में सम्पन्न कराता है। बहुत से एन0जी0ओ0
और प्राइवेट सन्स्थान तथा अस्पताल और व्यतिगत आयुर्वेदिक
चिकित्सक शोध कार्यों में लगे हुये है। इनमें से प्रमुख शोध
त्रिफला , अश्वगंधा आदि औषधियों, इलेक्ट्रानिक
उपकरणों द्वारा आयुर्वेदिक ढंग से रोगों की पहचान और
निदान में सहायता से संबंधित हैं।
जड़ी बूटियों पर खोज
आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर विश्व के कई
वैज्ञानिक संस्थाओं में शोध कार्य किये गये हैं।
भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर , ट्राम्बे , गुरू नानक देव
विश्वविद्यालय, अमृतसर और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय
में त्रिफला पर रिसर्च करने के पश्चात यह निष्कर्ष
निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेलों को बढ़ने से
रोकता है। ब्रिटेन के चिकित्सा विज्ञानियों ने जानवरों पर
भारतीय जड़ी-बूटी अश्वगंधा का अध्ययन करने के पश्चात यह
निष्कर्ष निकाला है कि अश्वगंधा से अल्झाइमर रोग पर
नियंत्रण होता है। क्षार सूत्र चिकित्साको बवासीर और
भगन्दर में उपयोगी पाया गया है। शास्त्रोक्त क्षार सूत्र
चिकित्सा से बवासीर और भगन्दर जैसे रोग जड़ से आरोग्य होते
हैं, इस तथ्य की सत्यता पर
अमेरिकी चिकित्सा विज्ञानियो ने मुहर लगा दी है।
स्वचालित मशीनों पर शोध
आयुर्वेद के पंचकर्म में प्रयोग करने के लिए मशीनों का निर्माण
करते हुए आई0आई0टी0 (Indian Institute of Technology IIT),
नयी दिल्ली और के0आ0सि0अ0प0 (CCRAS), नई दिल्ली ने
संयुक्त प्रयास करके चिकित्सा को आधुनिक रूप देनें के लिये एक
आटोमेटिक मशीन का निर्माण किया है। यह मशीन केन्द्रीय
आयुर्वेद अनुसन्धान संस्थान, रोड नम्बर 66, पंजाबी बाग –वेस्ट-,
नई दिल्ली, भारत मे प्रयोग की जा रही है।
नई आयुर्वेदिक औषधियों का विकास
एक आयुर्वेदिक चिकित्सक ने मरीजों के रक्त से आयुर्वेदिक
औषधि निदान करनें की विधि विकसित की है। इसे ‘’ब्लड
सिरम फ्लाकुलेशन टेस्ट’’[Blood serum flocculation test]
का नाम दिया गया है। बीमार व्यक्तियों का रक्त लेकर
आयुर्वेदिक दवाओं का निदान करने की एक विधि केन्द्रीय
आयुर्वेद अनुसन्धान संस्थान Central Research Institute of
Ayurveda-CRIA, नई दिल्ली में विकसित की गयी है, इस
विधि पर परीक्षण कार्य किये जा रहे हैं।
शंखद्राव आधारित औषधियां
आयुर्वेद के ग्रंथ ‘’रसतरंगिणी’’ मे वर्णित शंखद्राव
औषधि को आधार बनाकर आयुर्वेद के एक चिकित्सक नें धातुओं
और जडी-बूटिओं और जीव जन्तुओं के सार भाग से फास्फेट,
सल्फेट, म्यूरियेट, नाइट्रेट, नाइट्रोम्यूरियेट तैयार किये हैं।
‘ ’शंखद्राव आधारित आयुर्वेदिक औषधियां’’ इस शोध कार्य
की सराहना नेशनल इनोवेशन फाउन्डेशन, अहमदाबाद, भारत
द्वारा की जा चुकी है। इस विधि से सर्पगन्धा नाइट्रेट,
सर्पगन्धा म्यूरियेट, सर्पगन्धा सल्फेट, सर्पगन्धा फास्फेट,
सर्पगन्धा नाइट्रोम्यूरियेट के अलावा लगभग 70 से अधिक
औषधियो का र्निमाण तथा परीक्षण किये जा चुके हैं।
विदेशों में आयुर्वेद पर शोध कार्य
भारत के अलावा अन्य देशों में यथा अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी,
जापान, नेपाल, म्यानमार, श्री लंका आदि देशों में आयुर्वेद
की औषधियों पर शोध कार्य किये जा रहे हैं।
इलेक्ट्रोत्रिदोषग्राम (ई.टी.जी.)
इलेक्ट्रोत्रिदोषग्राम (ई.टी.जी.) नाडी-विज्ञान
का आधुनिक स्वरूप है जिसके द्वारा आयुर्वेद के
सिद्धान्तों की साक्ष्य आधारित प्रस्तुति की जाती है।
सम्पूर्ण आयुर्वेद त्रिदोष के सिद्धान्तों पर आधरित है। त्रिदोष
सिद़धान्त यथा वात , पित्त , कफ तीन दोष शरीर में रोग
पैदा करते हैं। इन दोषों का ज्ञान करनें का एकमात्र उपाय
नाडी परीक्षण है, जिसे प्राप्त करना बहुत आसान कार्य
नही है / नाडी परीक्षण के
परिणामों को देखा नहीं जा सकता है कि शरीर में प्रत्येक दोष
का कितना असर है और ये दोष कितनीं मात्रा मे उपस्थित हैं।
केवल मात्र नाडी परीक्षण अनुमान पर आधारित है। वात,
पित्त, कफ दोष का ‘’स्टेटस क्वान्टीफाइ’’ करना कठिन काम
अवश्य है। इससे अधिक कठिन काम वातादि दोषों के पांच पांच
यानी पंद्रह भेंदों को इनकी उपस्थिति के अनुसार ज्ञान कर
लेना। इसके पश्चात ‘’सप्त धातुओं’’ का उपस्थिति आंकलन
करना भी आसान काम नहीं है। तीन प्रकार के मल, ओज, सम्पूर्ण
ओज का आंकलन करना दुरूह कार्य अवश्य है।
एक भारतीय, कानपुर शहर, उत्तर प्रदेश राज्य निवासी,
आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ॰ देश बन्धु बाजपेयी ने ऐसी तकनीक
का विकास किया है, जिससे आयुर्वेद के मौलिक
सिद़धांतों का शरीर में कितना प्रभाव और असर है, यह सब
ज्ञात किया जा सकता है। इस तकनीक को ‘’इलेक्ट्रो-
त्रिदोष-ग्राम/ग्राफ/ग्राफी’’ अथवा संक्षिप्त में
‘’ई0टी0जी0’’ के नाम से जाना जाता है।
ई0टी0जी0 तकनीक से आयुर्वेद के निदानात्मक
दृष्टिकोणों को निम्न स्वरूपों में प्राप्त करते हैं।
(1) त्रिदोष यथा वात , पित्त , कफ का ज्ञान
(2) त्रिदोष के प्रत्येक के पांच भेद का ज्ञान,
(3) सप्त धातु का आंकलन, दोष आधारित सप्त धातु
(4) मल का आंकलन यथा पुरीष , मूत्र , स्वेद
(5) अग्नि बल, ओज , सम्पूर्ण ओज आदि का आंकलन
इन मौलिक सिद्धान्तों के अलावा ई0 टी0 जी0 तकनीक से
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के नैदानिक द्रष्टिकोण
को ध्यान में रखते हुये शरीर में व्याप्त बीमारियों का निदान
सटीक तरीके से किया जा सकता है। चूंकि इस विधि से
सम्पूर्ण शरीर का परीक्षण करते हैं अत: सम्पूर्ण शरीर के
समान्य अथवा असामान्य कार्य करनें वाले
अंगों या हिस्सों का पता लग जाता है। जिससे इलाज करने मे
आसानी हो जाती है !
ई0टी0जी0 मशीन की सहायता से सम्पूर्ण शरीर के 21
हिस्सों से ट्रेस रिकार्ड करते हैं। यह ट्रेस रिकार्ड ई0टी0जी0
मशीन द्वारा एक कागज की पटटी पर रिकार्ड करते हैं, कम्प्यूटर
साफ़टवेयर की मदद से आयुर्वेद के मौलिक
सिदधान्तों का आंकलन करते हैं। इस तकनीक की मदद लेकर
आयुर्वेद के विकास की असीम सम्भावनायें हैं।
वर्तमान में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के द्वारा प्राय:
शरीर की जांच के लिये सभी परीक्षण किये जा रहे हैं ! आयुर्वेद
के 5000 साल के इतिहास में यह पहली साक्ष्य आधारित
अकेली परीक्षण विधि का आविष्कार वर्तमान काल मे हुआ है।
सन २००४ से लेकर सन २००७ तक आयुष विभाग, स्वास्थय एवं
परिवार कल्याण मन्त्रालय, भारत सरकार और केन्द्रीय आयुर्वेद
एवं सिद्ध अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली द्वारा ई०टी०जी०
तकनीक का बहुत कड़ाई के साथ परीक्षण करने के पश्चात इसे
मान्यता दे दी गयी है।

आयुर्वेद प्राचीन भारतीय पद्धती

आयुर्वेद प्राचीन भारतीय पद्धती की प्राकृतिक और संपूर्ण
औषधि है| जब आयुर्वेद का संस्कृत से अनुवाद करें तो उसका अर्थ
होता है "जीवन का विज्ञान" (संस्कृत में मूल शब्द आयुर
का अर्थ होता है "दीर्घ आयु" या आयु और वेद का अर्थ होता है
"विज्ञान"|
एलोपैथी औषधि (विषम चिकित्सा) रोग के प्रबंधन पर केंद्रित
होती है, जबकि आयुर्वेद रोग की रोकथाम, और यदि रोग
उत्पन्न हुआ तो कैसे उसके मूल कारण को निष्काषित
किया जाये, उसका ज्ञान प्रदान करती है|
मूल सिद्धांत
आयुर्वद का ज्ञान भारत के ऋषि मुनियों के वंशो से मौखिक
रूप से आगे बढ़ता गया जब तक उसे पांच हजार वर्ष पूर्व एकत्रित
करके उसका लेखन किया गया| आयुर्वेद पर सबसे पुराने ग्रन्थ चरक
संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय हैं| यह ग्रंथ अंतरिक्ष
तंत्र में पाये जाने वाले पाँच तत्व-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और
आकाश, जो हमारे व्यतिगत तंत्र पर प्रभाव डालते हैं उसके बारे में
बताते हैं| यह स्वस्थ और आनंदमय जीवन के लिए इन पाँच
तत्वों को संतुलित रखने के महत्व को समझते हैं|
आयुर्वेद के अनुसार हर व्यक्ति दूसरों के तुलना में कुछ तत्वों से
अधिक प्रभावित होता है| यह उनकी प्रकृति या प्राकृतिक
संरचना के कारण होता है| आयुर्वेद विभिन्न शारीरिक
संरचनाओं को तीन विभिन्न दोषों में सुनिश्चित करता है|
. वात दोष, जिसमे वायु और आकाश तत्व प्रबल होते हैं|
. पित्त दोष, जिसमे अग्नि दोष प्रबल होता है|
. कफ दोष, जिसमे पृथ्वी और जल तत्व प्रबल होते हैं|
दोष सिर्फ किसी के शरीर के स्वरुप पर ही प्रभाव
नहीं डालता परंतु वह शारीरिक प्रवृतियाँ (जैसे भोजन
का चुनाव और पाचन) और किसी के मन का स्वभाव और
उसकी भावनाओं पर भी प्रभाव डालता है| उदहारण के लिए
जिन लोगो मे पृथ्वी तत्व और कफ दोष होने से उनका शरीर
मजबूत और हट्टा कट्टा होता है| उनमे धीरे धीरे से पाचन होने
की प्रवृति, गहन स्मरण शक्ति और भावनात्मक
स्थिरता होती है| अधिकांश लोगों में प्रकृति दो दोषों के
मिश्रण से बनी हुई होती है| उदहारण के लिए जिन लोगों में
पित्त कफ दोष होता है, उनमें पित्त दोष और कफ दोष
दोनों की ही प्रवृत्तियाँ होती हैं परन्तु पित्त दोष प्रबल
होता है| हमारे प्राकृतिक संरचना के गुण की समझ होने से हम
वो सब अच्छे से कर सकते हैं जिससे हम अपने आप को संतुलित रख
सकें|
आयुर्वेदिक जीवन शैली
आयुर्वेद किसी के पथ्य या जीवन शैली (भोजन की आदतें और
दैनिक जीवनचर्या) पर विशेष महत्त्व देता है| मौसम में बदलाव के
आधार पर जीवनशैली को कैसे अनुकूल बनाया जाये इस पर
भी आयुर्वेद मार्गदर्शन देता है|

क्या है थायराइड की वजह ....?


* थायराइड मानव शरीर मे पाए जाने वाले एंडोक्राइन ग्लैंड में से
एक है। थायरायड ग्रंथि गर्दन में श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यन्त्र
के दोनों ओर दो भागों में बनी होती है। इसका आकार
तितली जैसा होता है। यह थाइराक्सिन नामक हार्मोन
बनाती है जिससे शरीर के ऊर्जा क्षय, प्रोटीन उत्पादन एवं अन्य
हार्मोन के प्रति होने वाली संवेदनशीलता नियंत्रित होती है।
यह ग्रंथि शरीर के मेटाबॉल्जिम को नियंत्रण करती है
यानि जो भोजन हम खाते हैं यह उसे उर्जा में बदलने का काम
करती है।
* इसके अलावा यह हृदय, मांसपेशियों, हड्डियों व कोलेस्ट्रोल
को भी प्रभावित करती है।
*आमतौर पर शुरुआती दौर में थायराइड के किसी भी लक्षण
का पता आसानी से नहीं चल पाता, क्योंकि गर्दन में
छोटी सी गांठ सामान्य ही मान ली जाती है। और जब तक इसे
गंभीरता से लिया जाता है, तब तक यह भयानक रूप ले लेता है।
*आखिर क्या कारण हो सकते है जिनसे थायराइड होता है।
* थायरायडिस- यह सिर्फ एक बढ़ा हुआ थायराइड ग्रंथि (घेंघा)
है, जिसमें थायराइड हार्मोन बनाने की क्षमता कम हो जाती है।
* इसोफ्लावोन गहन सोया प्रोटीन, कैप्सूल, और पाउडर के रूप में
सोया उत्पादों का जरूरत से ज्यादा प्रयोग भी थायराइड होने
के कारण हो सकते है।
* कई बार कुछ दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव भी थायराइड की वजह
होते हैं।
* थायराइट की समस्या पिट्यूटरी ग्रंथि के कारण भी होती है
क्यों कि यह थायरायड ग्रंथि हार्मोन को उत्पादन करने के संकेत
नहीं दे पाती।
* भोजन में आयोडीन की कमी या ज्यादा इस्तेमाल
भी थायराइड की समस्या पैदा करता है।
* सिर, गर्दन और चेस्ट की विकिरण थैरेपी के कारण या टोंसिल्स,
लिम्फ नोड्स, थाइमस ग्रंथि की समस्या या मुंहासे के लिए
विकिरण उपचार के कारण।
* जब तनाव का स्तर बढ़ता है तो इसका सबसे ज्यादा असर
हमारी थायरायड ग्रंथि पर पड़ता है। यह ग्रंथि हार्मोन के स्राव
को बढ़ा देती है।
* यदि आप के परिवार में किसी को थायराइड की समस्या है
तो आपको थायराइड होने की संभावना ज्यादा रहती है। यह
थायराइड का सबसे अहम कारण है।
* ग्रेव्स रोग थायराइड का सबसे बड़ा कारण है। इसमें थायरायड
ग्रंथि से थायरायड हार्मोन का स्राव बहुत अधिक बढ़ जाता है।
ग्रेव्स रोग ज्यादातर 20और 40 की उम्र के बीच की महिलाओं
को प्रभावित करता है, क्योंकि ग्रेव्स रोग आनुवंशिक कारकों से
संबंधित वंशानुगत विकार है, इसलिए थाइराइड रोग एक
ही परिवार में कई लोगों को प्रभावित कर सकता है।
* थायराइड का अगला कारण है गर्भावस्था, जिसमें प्रसवोत्तर
अवधि भी शामिल है। गर्भावस्था एक स्त्री के जीवन में
ऐसा समय होता है जब उसके पूरे शरीर में बड़े पैमाने पर परिवर्तन
होता है, और वह तनाव ग्रस्त रहती है।
* रजोनिवृत्ति भी थायराइड का कारण है
क्योंकि रजोनिवृत्ति के समय एक महिला में कई प्रकार के
हार्मोनल परिवर्तन होते है। जो कई बार थायराइड की वजह
बनती है।
*थायराइड के लक्षण:--
कब्ज- थाइराइड होने पर कब्ज की समस्या शुरू हो जाती है।
खाना पचाने में दिक्कत होती है। साथ ही खाना आसानी से गले
से नीचे नहीं उतरता। शरीर के वजन पर भी असर पड़ता है।
हाथ-पैर ठंडे रहना- थाइराइड होने पर आदमी के हाथ पैर हमेशा ठंडे
रहते है। मानव शरीर का तापमान सामान्य यानी 98.4
डिग्री फॉरनहाइट (37 डिग्री सेल्सियस) होता है, लेकिन फिर
भी उसका शरीर और हाथ-पैर ठंडे रहते हैं।
प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना- थाइराइड होने पर शरीर
की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम़जोर हो जाती है। इम्यून सिस्टम
कमजोर होने के चलते उसे कई बीमारियां लगी रहती हैं।
थकान– थाइराइड की समस्या से ग्रस्त आदमी को जल्द थकान
होने लगती है। उसका शरीर सुस्त रहता है। वह आलसी हो जाता है
और शरीर की ऊर्जा समाप्त होने लगती है।
त्वचा का सूखना या ड्राई होना– थाइराइड से ग्रस्त
व्यक्ति की त्वचा सूखने लगती है। त्वचा में रूखापन आ जाता है।
त्वचा के ऊपरी हिस्से के सेल्स की क्षति होने लगती है
जिसकी वजह से त्वचा रूखी-रूखी हो जाती है।
जुकाम होना– थाइराइड होने पर आदमी को जुकाम होने
लगता है। यह नार्मल जुकाम से अलग होता है और ठीक
नहीं होता है।
डिप्रेशन- थाइराइड की समस्या होने पर आदमी हमेशा डिप्रेशन
में रहने लगता है। उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता है,
दिमाग की सोचने और समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है।
याद्दाश्त भी कमजोर हो जाती है।
बाल झड़ना- थाइराइड होने पर आदमी के बाल झड़ने लगते हैं
तथा गंजापन होने लगता है। साथ ही साथ उसके भौहों के बाल
भी झड़ने लगते है।
मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द- मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द
और साथ ही साथ कमजोरी का होना भी थायराइड
की समस्या के लक्षण हो सकते है।
शारीरिक व मानसिक विकास- थाइराइड की समस्या होने पर
शारीरिक व मानसिक विकास धीमा हो जाता है।
अगर आपको ऐसे कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरन्त अपने डाक्टर
से संपर्क करें आपको थाइराइड समस्या हो सकती है।
साथ ही आप ALOEVERA GEL (जूस) का सेवन करें….साथ
ही तुलसी व गिलोय को खली पेट लेना शुरू करे लाभ होगा..

रविवार, 21 दिसंबर 2014

मूंगफली का विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

गर्भस्थ शिशुवर्द्धक (गर्भ के अन्दर शिशु का विकास):
गर्भावस्था के दौरान यदि स्त्रियां 60 ग्राम
मूंगफली रोजाना खायें तो गर्भस्थ शिशु के विकास में लाभ
होता है।
स्त्रियों की दुग्धवृद्धि:
रोजाना कच्ची मूंगफली खाने से बच्चों को दूध पिलाने
वाली स्त्रियों को दूध बढ़ जाता है। मुट्टी भर हुई मूंगफलियां सेवन
करना लाभकारी है।
खुश्की, सूखापन:
थोड़ा-सा मूंगफली का तेल, दूध और गुलाब जल को मिलाकर
त्वचा पर मालिश करें। मालिश करने के 20 मिनट के बाद स्नान कर
लेने से त्वचा के रूखापन में लाभ होता है।
मोटापा बढ़ाने के लिए:
थोड़ी सी मात्रा में मूंगफली रोजाना खाने से चर्बी आने
लगती है।
त्वचा के रोग:
दाद, खाज और खुजली में मूंगफली का असली तेल लगाने से आराम
आता है।
होठों का फटना:
नहाने से पहले हथेली में चौथाई चम्मच मूंगफली का तेल लेकर
उंगुली से हथेली में रगड़ लें और फिर होठों पर इस तेल से मालिश करें।
ऐसा करने से होठों का फटना दूर हो जाता है

**काली मिर्च **

**काली मिर्च **
✏- खांसी होने पर आधा चम्मच काली मिर्च का चूर्ण और
आधा चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार चाटें। खांसी दूर
हो जाएगी।
✏- गैस की शिकायत होने पर एक कप पानी में आधे नीबू का रस
डालकर आधा चम्मच काली मिर्च का चूर्ण व आधा चम्मच
काला नमक मिलाकर नियमित कुछ दिनों तक सेवन करने से गैस
की शिकायत दूर हो जाती है।
✏गला बैठना : काली मिर्च को घी और मिश्री के साथ
मिलाकर चाटने से बंद गला खुल जाता है और आवाज़
सुरीली हो जाती है। आठ-दस काली मिर्च पानी में उबालकर
इस पानी से गरारे करें, इससे गले का संक्रमण खत्म हो जाएगा।
✏त्वचा रोग : काली मिर्च को घी में बारीक पीसकर लेप करने
से दाद-फोड़ा, फुंसी आदि रोग दूर हो जाते हैं।

अनिद्रा के रोग में बहुत लाभकारी घरेलु नुस्खा

अनिद्रा या नींद ना आने की समस्या होने पर आप रात
को सोने से आधा घंटे पहले गर्म दूध में एक छोटा चम्मच पीसी हुई
हल्दी का पी लेने पर इस समस्या में बहुत लाभ होता है! दूध
बिना शक्कर या शक्कर का जैसा भी आपको लेने
की सुविधा हो ले सकते है ।

गैस व् बदहजमी दूर करने के लिए

१. भोजन हमेशा समय पर करें.
२. प्रतिदिन सुबह देसी शहद में निम्बू रस मिलाकर चाट लें.
३. हींग, लहसुन, चद गुप्पा ये तीनो बूटियाँ पीसकर
गोली बनाकर छाँव में सुखा लें, व् प्रतिदिन एक गोली खाएं.
४. भोजन के समय सादे पानी के बजाये अजवायन
का उबला पानी प्रयोग करें.
५. लहसुन, जीरा १० ग्राम घी में भुनकर भोजन से पहले खाएं.
६. सौंठ पावडर शहद ये गर्म पानी से खाएं.
७. लौंग का उबला पानी रोजाना पियें.
८. जीरा, सौंफ, अजवायन इनको सुखाकर पावडर बना लें,शहद
के साथ भोजन से पहले प्रयोग करें.

यूरिक एसिड बढ़ने पर आजमाए .....!

*यूरिक एसिड, प्यूरिन के टूटने से बनता है जो खून के माध्यम से
बहता हुआ किडनी तक पहुंचता है। यूरिक एसिड, शरीर से बाहर,
पेशाब के रूप में निकल जाता है। लेकिन, कभी - कभार यूरीक
एसिड शरीर में ही रह जाता है और इसकी मात्रा बढ़ने लगती है।
ऐसा होना शरीर के लिए घातक होता है।
यूरिक एसिड के असंतुलन से ही गठिया जैसी समस्याएं
हो जाती है। उच्च यूरिक एसिड की मात्रा को नियंत्रित
करना अति आवश्यक होता है। नियंत्रण के लिए यूरिक एसिड़
बढ़ने के कारण को जानना आवश्यक है। अगर आपको यह
समस्या आनुवांशिक है तो इसे बैलेंस किया जा सकता है लेकिन
अगर शरीर में किसी प्रकार की दिक्कत है जैसे -
किडनी का सही तरीके से काम न
करना आदि तो डॉक्टरी सलाह लें और दवाईयों का सेवन करें।
शरीर में हाई यूरिक एसिड का अर्थ होता है कि आप
जो भी भोजन ग्रहण करते है उसमें प्यूरिन की मात्रा में कमी है
जो शरीर में प्यूरिन की बॉन्डिंग को तोड़ देती है और यूरिक
एसिड बढ़ जाता है। यूरिक एसिड को नियंत्रित करने के कुछ
टिप्स निम्म प्रकार हैं...
*अगर शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा लगातार बढ़ती है
तो आपको भरपूर फाइबर वाले फूड खाने चाहिए। दलिया,
पालक, ब्रोकली आदि के सेवन से शरीर में यूरिक एसिड
की मात्रा नियंत्रित हो जाती है..
*जैतून के तेल में बना हुआ भोजन, शरीर के लिए लाभदायक
होता है। इसमें विटामिन ई भरपूर मात्रा में होता है जो खाने
को पोषक तत्वों से भरपूर बनाता है और यूरिक एसिड को कम
करता है। आश्चर्य की बात है, लेकिन यह सच है।
*बेकरी के फूड स्वाद में लाजबाव होते है लेकिन इसमें सुगर
की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। इसके अलावा, इनके सेवन से
शरीर में यूरिक एसिड़ भी बढ़ जाता है। अगर यूरिक एसिड कम
करना है तो पेस्ट्री और केक खाना बंद कर दें।
*पानी की भरपूर मात्रा से शरीर के कई विकार आसानी से दूर
हो जाते है। दिन में कम से कम दो से तीन लीटर पानी का सेवन
करें। पानी की पर्याप्त मात्रा से शरीर का यूरिक एसिड
पेशाब के रास्ते से बाहर निकल जाएगा। थोड़ी - थोड़ी देर में
पानी को जरूर पीते रहें।
*चेरी में एंटी - इंफ्लामेट्री प्रॉपर्टी होती है जो यूरिक
एसिड को मात्रा को बॉडी में नियंत्रित करती है। हर दिन
10 से 40 चेरी का सेवन करने से शरीर में उच्च यूरिक एसिड
की मात्रा नियंत्रित रहती है, लेकिन एक साथ सभी चेरी न
खाएं बल्कि थोड़ी - थोड़ी देर में खाएं।
*हर दिन ली जाने खुराक में कम से कम 500 ग्राम विटामिन
सी जरूर लें। विटामिन सी, हाई यूरिक एसिड को कम करने में
सहायक होता है और यूरिक एसिड को पेशाब के रास्ते निकलने
में भी मदद करता है। यकृत की शुद्धि के लिए नींबू अक्सीर है।
नींबू का साईट्रिक ऐसिड भी यूरिक एसिड का नाश
करता है।
*शरीर में uric acid की मात्रा बढने पर इसे कम करना आसान
नहीं होता । लेकिन शतावर (asparagus) की जड़ का चूर्ण 2-3
ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन दूध या पानी के साथ
लिया जाए , तो uric acid घटना प्रारम्भ हो जाता है और
शरीर की कमजोरी भी दूर होती है ।
*गाजर और चुकन्दर का जूस भी पीते रहें इससे और भी जल्दी लाभ
होगा ।

आलू के असरकारी नुस्खे

रक्तपित्त बीमारी में कच्चा आलू बहुत फायदा करता है।
कभी-कभी चोट लगने पर नील पड़ जाती है। नील पड़ी जगह पर
कच्चा आलू पीसकर लगाएँ ।
शरीर पर कहीं जल गया हो, तेज धूप से त्वचा झुलस गई हो,
त्वचा पर झुर्रियाँ हों या कोई त्वचा रोग हो तो कच्चे आलू
का रस निकालकर लगाने से फायदा होता है।
भुना हुआ आलू पुरानी कब्ज और अंतड़ियों की सड़ांध दूर
करता है। आलू में पोटेशियम साल्ट होता है जो अम्लपित्त
को रोकता है।
चार आलू सेंक लें और फिर उनका छिलका उतार कर नमक, मिर्च
डालकर नित्य खाएँ। इससे गठिया ठीक हो जाता है।
गुर्दे की पथरी में केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है।
पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक
पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियाँ और रेत आसानी से
निकल जाती हैं।
उच्च रक्तचाप के रोगी भी आलू खाएँ तो रक्तचाप
को सामान्य बनाने में लाभ करता है।
आलू को पीसकर त्वचा पर मलें। रंग गोरा हो जाएगा।
कच्चा आलू पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम काजल की तरह लगाने से
5 से 6 वर्ष पुराना जाला और 4 वर्ष तक का फूला 3 मास में
साफ हो जाता है।
आलू का रस दूध पीते बच्चों और बड़े बच्चों को पिलाने से वे
मोटे-ताजे हो जाते हैं। आलू के रस में शहद मिलाकर
भी पिला सकते हैं।
आलुओं में मुर्गी के चूजों जितना प्रोटीन होता है, सूखे आलू में
8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है। आलू का प्रोटीन बूढ़ों के लिए
बहुत ही शक्ति देने वाला और बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने
वाला होता है।

6 तरीकों से ठंड में खाएं तिल, इन बीमारियों की हो जाएगी छुट्टी -----

तिल का सेवन हमारे शरीर के लिए बहुत लाभदायक होता है।
सर्दियों में तिल व उसके तेल दोनों का ही सेवन
करना चाहिए। भारत में तो सर्दियों में तिल को ठंड में खाने
की परंपरा बहुत प्राचीन है क्योंकि सर्दियों में इसे खाने से न
केवल पेट के रोग बल्कि अन्य कई रोग भी दूर होते हैं। तिल में
कैल्शियम, आयरन, ऑक्जेलिक एसिड, अमीनो एसिड, प्रोटीन,
विटामिन बी, सी तथा ई की प्रचुर मात्रा होता है। काले
तिल व सफेद तिल दोनों का ही उपयोग औषधीय रूप में
भी किया जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं ठंड में तिल
के उपयोग व इसे खाने से होने वाले फायदों के बारे में....
- ठंड में तिल गुड़ दोनो समान मात्रा में लेकर मिला लें।उसके
लड्डू बना ले। प्रतिदिन 2 बार 1-1 लड्डू दूध के साथ खाने से
मानसिक दुर्बलता एंव तनाव दूर होते है। शक्ति मिलती है।
कठिन शारीरिक श्रम करने पर सांस
फूलना जल्दी बुढ़ापा आना बन्द हो जाता है। तिल व तिल के
तेल के सेवन से व सिर में इसकी मालिश करने से न केवल बाल घने और
चमकदार होते हैं बल्कि बालों का गिरना भी कम
हो जाता है।
- प्रतिदिन दो चम्मच काले तिल को चबाकर खाइए और उसके
बाद ठंडा पानी पीजिए। इसका नियमित सेवन करने से
पुराना बवासीर भी ठीक हो जाता है। बच्चा सोते समय
पेशाब करता हो़ तो भुने काले तिलों को गुड़ के साथ
मिलाकर उसका लड्डू बना लीजिए। बच्चे को यह लड्डू हर रोज
रात में सोने से पहले खिलाइए, बच्चा सोते वक्त पेशाब
नही करेगा।
- तिल का तेल एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। वाइरस, एजिंग
और बैक्टीरिया से शरीर की रक्षा करता है। इसीलिए ठंड में
तिल का सेवन जरूर करना चाहिए। यदि सर्दी के कारण
सूखी खांसी हो तो 4-5 चम्मच मिश्री एंव इतने ही तिल
मिश्रित कर ले। इन्हे एक गिलास मे आधा पानी रहने तक उबाले।
इसे दिनभर में तीन बार लें।एक स्टडी के मुताबिक ठंड में तिल व
तिल के तेल का सेवन डायबिटीज के पेशेन्ट्स के लिए
दवा का काम करता है।
- पेट दर्द- 20-25 ग्राम साफ चबाकर उपर से गर्म पानी पिलाने
से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।कब्ज होने पर 50 ग्राम तिल
भूनकर उसे कूट लीजिए, इसमें चीनी मिलाकर खाइए। इससे कब्ज
दूर हो जाती है। खांसी आने पर तिल का सेवन कीजिए
खांसी ठीक हो जाएगी। तिल व मिश्री को पानी में
उबाल कर पीने से सूखी खांसी भी दूर हो जाती है।
- रोज सुबह अच्छे से चबा चबाकर काले तिल खाने से दांत और
मसुड़े स्वस्थ रहते हैं। तिल खांसी से भी निजात दिलाता है।
अदरक वाली चाय में दो ग्राम तिल मिलाकर कुछ देर उबालें।
इस चाय के सेवन से खांसी ठीक हो जाती है।
- तिल, सोंठ, मेथी, अश्वगंधा सभी बराबर मात्रा में मिलाकर
चूर्ण बना लें। रोज सुबह इस चूर्ण के सेवन से आर्थराइटिस
की समस्या ठीक हो जाती है। ठंड में तिल के सेवन से कफ व सूजन
से भी राहत मिलती है।

शिरीष या सिरस --------------

- इस पेड़ के पत्ते इमली की तरह पर कुछ बड़े होते है. बारिश के
दिनों में इस पर सुन्दर सफ़ेद , लाल या पीले फूल लगते है. फिर
सर्दियों में इसकी फलियाँ बन जाती है. यह बागीचे
की सुन्दरताको तो बढाता है ही , साथ ही यह औषधि भी है.
- यह त्रिदोषशामक है.
- पीले सिरस के पत्तों को घी में भूनकर दिन में 3 बार लेने से
खांसी खत्म होती है।
- प्रतिदिन सिरस के फूलों को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे में
निखार आता है। इससे चेहरे के दाग, धब्बे, मुंहासे आदि खत्म होते हैं।
इसका इस्तेमाल कम से कम 1 महीने तक करें।
-
आंखों के विकार - सिरस के पत्तों का रस काजल की तरह
आंखों में लगाने से आंखों का दर्द समाप्त होता है।
सिरस के पत्तों के रस में कपड़े को भिगोकर सुखा लें और फिर कपड़े
को पत्तों के रस में भिगोकर सुखा लें। इस तरह इसे 3 बार भिगोएं
और फिर इस कपड़े की बत्ती बनाकर चमेली के तेल में जलाकर
काजल बना लें। इस काजल को प्रतिदिन आंखों में लगाने से
आंखों के सब रोग दूर होते हैं।
सिरस के बीजों की मींगी तथा खिरनी के बीज का कुछ भाग
लेकर पीसकर लें और इसे पानी मे उबालकर सिरस के पत्तों के रस के
साथ घोट लें। इसके बाद इसकी गोलियां बनाकर छाया में
सुखा लें। इन गोलियों को स्त्री के दूध में घिसकर आंखों में लगाने
से आंखों का फूला व माण्डा दूर होता है।
- त्वचा विकार - सिरस की छाल को पानी में पीसकर दाद,
खाज, खुजली पर प्रतिदिन सुबह-शाम लेप करने से खुजली व दाद
ठीक होता है।
सिरस के फूलों को पीसकर किसी भी शर्बत में एक चम्मच
मिलाकर पीने से खून साफ होता है और त्वचा के सभी रोग ठीक
होते हैं।
सिरस के बीज को पीसकर चंदन की तरह लगाने से खाज-खुजली दूर
होती है।
सफेद सिरस की छाल को पानी के साथ पीसकर जख्म, खुजली व
दाद पर लगाने से सभी प्रकार के त्वचा रोग ठीक होते हैं।
सिरस के पत्तों की पोटली बनाकर फोड़े-फुन्सियों व सूजन के
ऊपर बांधने से लाभ मिलाता है।
गर्मी के फोड़े-फुन्सी व पित्त की सूजन पर सिरस के
फूलों का पीसकर लेप करें। इससे सूजन दूर होती है और फोड़े-
फुन्सी ठीक होती है।
सिरस के बीज का उपयोग करने से त्वचा के अर्बुद और गांठ समाप्त
होती है।
- कुष्ठ रोग -15 ग्राम सिरस के पत्ते और 2 ग्राम कालीमिर्च
को पीसकर 40 दिन तक सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग नष्ट
होता है।
सिरस के बीजों का तेल निकालकर प्रतिदिन रोगग्रस्त स्थान पर
लगाने से कुष्ठ ठीक होता है। इससे कुष्ठ के कीड़े व अन्य त्वचा रोग
भी समाप्त होता है।
- सिरस की जड़ का काढ़ा बनाकर गरारे करने से तथा सिरस
की जड़ का चूर्ण बनाकर मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं। इससे
मसूढ़ों के सभी रोग दूर होता है। सिरस की छाल
का काढ़ा बनाकर बार-बार कुल्ला करने से पायरिया रोग ठीक
होता है। इससे मसूढ़ों से खून आना बंद होता है।
- जलोदर रोग से पीड़ित रोगी को सिरस की छाल
का काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए। इससे पेट का पानी पेशाब
के रास्ते से बाहर निकल जाता है।
- सिरस के पत्तों का रस गर्म करके उसके अंदर थोड़ी सी हींग
मिलाकर कान में डालने से कान का दर्द दूर होता है।
- सिर दर्द में सिरस के ताजे 5 फूल गीले रूमाल में लपेटकर या इसके
बीजों का चूर्ण सूंघना चाहिए। इससे सिर का दर्द ठीक होता है।
- शीतपित्ती के दाने निकलने पर सिरस के फूलों का पानी के
साथ पीसकर लेप करें और इसके फूलों को पीसकर 1 चम्मच
की मात्रा में 1 चम्मच शहद के साथ सेवन करें। इससे दाने नष्ट होते हैं
और शीतपित्त ठीक होता है।
- सिरस के बीजों का चूर्ण 10 ग्राम, 5 ग्राम हरड़ का चूर्ण और 2
चुटकी सेंधा नमक। इन सभी को पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 1
चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन रात को खाना खाने के बाद सेवन
करें। इससे कब्ज दूर होती है।
- कीट दंश -सिरस के फूलों को पीसकर जहरीले कीड़ों के डंक पर
लेप करने से विष उतर जाता है।
सिरस के बीजों को थूहर के दूध में पीसकर लेप करने से
किसी भी जहरीले कीड़े का विष समाप्त होता है।
- पेट के कीड़े- 10 ग्राम सिरस की छाल को लगभग 500
मिलीलीटर पानी में अच्छी तरह पका लें और जब पानी केवल 100
मिलीलीटर बाकी रह जाए तो छानकर पीएं। इससे दस्त के साथ
कीड़े निकल जाते हैं।
- 10 ग्राम सिरस के पत्तों को पानी में घोटकर मिश्री मिलाकर
सुबह-शाम पीने से पेशाब की जलन समाप्त होती है।
- 1 से 3 ग्राम सिरस की छाल का चूर्ण घी के साथ मिलाकर
प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से शारीरिक शक्ति बढ़ती है और शरीर
का खून साफ होता है।

*गिलोय- अमृत बेल (Tinospora cordifolia) *


*गिलोय- अमृत बेल (Tinospora cordifolia) *
गिलोय को अमृता भी कहा जाता है .
*यह एक झाडीदार लता है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के
बराबर होती है इसी को सुखाकर चूर्ण के रूप में दवा के तौर पर
प्रयोग करते हैं। बेल को हलके नाखूनों से छीलकर देखिये
नीचे आपको हरा,मांसल भाग दिखाई देगा ।
इसका काढा बनाकर पीजिये ।
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विभिन्न रोगों और मौसम के अनुसार गिलोय के अनुप्रयोग: ---
विभिन्न रोगों और मौसम के अनुसार गिलोय के अनुप्रयोग: ---
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अगर platelets बहुत कम हो गए हैं , तो चिंता की बात नहीं , aloe
vera और गिलोय मिलाकर सेवन करने से एकदम platelets बढ़ते हैं .
कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें इसमें wheat
grass का जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर
सबको कूटकर काढ़ा बना लें . इसका सेवन खाली पेट करने से
aplastic anaemia भी ठीक होता है .
गिलोए रस १०-२० मिलीग्राम, गेहूँ का जवारा १०-२०
मिलीग्राम , तुलसी ७ पत्ते, नीम २ पत्ते, सुबह शाम खली पेट सेवन
करने से कैंसर से लेकर सभी असाध्य रोगों में लाभ होता है यह
पंचामृत शरीर की शुद्धि व् रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए अत्यंत
लाभकारी है...
इसे रसायन के रूप में शुक्रहीनता दौर्बल्य में भी प्रयोग करते हैं व
ऐसा कहा जाता है कि यह शुक्राणुओं के बनने की उनके सक्रिय
होने की प्रक्रिया को बढ़ाती है । इस प्रकार यह औषधि एक
समग्र कायाकल्प योग है-शोधक भी तथा शक्तिवर्धक भी ।
निर्धारणानुसार प्रयोग-जीर्ण ज्वर या ६ दिन से भी अधिक समय
से चले आ रहे न टूटने वाले ज्वरों में गिलोय चालीस ग्राम
अच्छी तरह कुचल कर मिट्टी के बर्तन में पाव भर पानी में मिलाकर
रात भर ढक कर रखते हैं व प्रातः मसल कर छान लेते हैं । ८० ग्राम
की मात्रा दिन में तीन बार पीने से जीर्ण ज्वर नष्ट हो जाता है
। ऐसे असाध्य ज्वरों में, जिसके कारण का पता सारे प्रयोग
परीक्षणों के बाद भी नहीं चल पाता (पायरेक्सिया ऑफ अननोन
ऑरीजन) समूल नष्ट करने का बीड़ा गिलोय ही उठाती है । एक
पाव गिलोय ८ सेर जल में पकाकर आधा अवशेष जल देने से पर ज्वर दूर
होता है व जीवनशक्ति बढ़ती है ।
पंचामृत - गिलोय-रस 10 से 20 मिलीग्राम, घृतकुमारी रस 10 से
20 मिलीग्राम, गेहूं का ज्वारा 10 से 20 मिलीग्राम, तुलसी-7
पत्ते, सुबह शाम खाली पेट सेवन करने से कैंसर से लेकर सभी असाध्य
रोगों में अत्यन्त लाभ होता है। यह पंचामृत शरीर की शुद्धि व रोग
प्रतिरोधक क्षमता के लिए अत्यन्त लाभकारी है। गिलोय -
सर्दी जुकाम, बुखार आदि में एक अंगुल मोटी व 4 से 6
लम्बी गिलोय लेकर 400 ग्राम पानी में उबालें, 100 ग्राम रहने पर
पीयें। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता/इम्यून सिस्टम को मजबूत कर
त्रिदोषों का शमन करती है व सभी रोगों, बार बार होने वाले
सर्दी, जुकाम बुखार आदि को ठीक करती है। घृतकुमारी -
ताजा पत्ता लेकर छिलका उतारकर अन्दर के गूदेदार भाग या रस
निकालकर 20 से 40 मिली ग्राम सेवन करें। यह सभी वात-रोग,
जोड़ों का दर्द, उदर रोग, अम्लपित्त, मधुमेह इत्यादि में लाभप्रद
है। तुलसी - प्रातः काल खाली पेट 5 से 10 ताजा तुलसी के पत्ते
पानी के साथ लें।
इसका काढ़ा यूं भी स्वादिष्ट लगता है
नहीं तो थोड़ी चीनी या शहद भी मिलाकर ले सकते हैं .
इसकी डंडी गन्ने की तरह खडी करके बोई जाती है .
इसकी लता अगर नीम के पेड़ पर फैली हो तो सोने में सुहागा है .
अन्यथा इसे अपने गमले में उगाकर रस्सी पर चढ़ा दीजिए . देखिए
कितनी अधिक फैलती है यह बेल . और जब थोड़ी मोटी हो जाए
तो पत्ते तोडकर डंडी का काढ़ा बनाइये या शरबत .
दोनों ही लाभकारी हैं . यह त्रिदोशघ्न है अर्थात
किसी भी प्रकृति के लोग इसे ले सकते हैं . गिलोय
का लिसलिसा पदार्थ सूखा हुआ भी मिलता है . इसे गिलोय सत
कहते हैं . इसका आरिष्ट भी मिलता है जिसे अमृतारिष्ट कहते हैं .
अगर ताज़ी गिलोय न मिले तो इन्हें भी ले सकते हैं .
यदि गिलोय को घी के साथ दिया जाए तो इसका विशेष लाभ
होता है, शहद के साथ प्रयोग से कफ की समस्याओं से
छुटकारा मिलता है। प्रमेह के रोगियों को भी यह स्वस्थ करने में
सहायक है। ज्वर के बाद इसका उपयोग टॉनिक के रूप में
किया जाता है। यह शरीर के त्रिदोषों (कफ ,वात और पित्)
को संतुलित करती है और शरीर का कायाकल्प करने
की क्षमता रखती है। गिलोय का उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया,
धातू विकार, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, चर्म
रोग, झाइयां, झुर्रियां, कमजोरी, गले के संक्रमण, खाँसी, छींक,
विषम ज्वर नाशक, सुअर फ्लू, बर्ड फ्लू, टाइफायड, मलेरिया,
कालाजार, डेंगू, पेट कृमि, पेट के रोग, सीने में जकड़न, शरीर
का टूटना या दर्द, जोडों में दर्द, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप,
हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), लीवर, किडनी, मूत्र रोग, मधुमेह,
रक्तशोधक, रोग पतिरोधक, गैस, बुढापा रोकने वाली,
खांसी मिटाने वाली, भूख बढ़ाने वाली पाकृतिक औषधि के रूप
में खूब प्रयोग होता है। गिलोय भूख बढ़ाती है, शरीर में इंसुलिन
उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। अमृता एक बहुत
अच्छी उपयोगी मूत्रवर्धक एजेंट है जो कि गुर्दे की पथरी को दूर
करने में मदद करता है और रक्त से रक्त यूरिया कम करता है। गिलोय
रक्त शोधन करके शारीरिक दुर्बलता को भी दूर करती है। यह कफ
को छांटता है। धातु को पुष्ट करता है। ह्रदय को मजबूत करती है।
इसे चूर्ण, छाल, रस और काढ़े के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और
इसके तने को कच्चा भी चबाया जा सकता है।
गिलोय के कुछ अन्य अनुप्रयोग :
गिलोय एक रसायन है, यह रक्तशोधक, ओजवर्धक, ह्रुदयरोग
नाशक ,शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। यह पीलिया और
जीर्ण ज्वर का नाश करती है अग्नि को तीव्र करती है, वातरक्त
और आमवात के लिये तो यह महा विनाशक है।
गिलोय के 6″ तने को लेकर कुचल ले उसमे 4 -5
पत्तियां तुलसी की मिला ले इसको एक गिलास पानी में
मिला कर उबालकर इसका काढा बनाकर पीजिये। और इसके साथ
ही तीन चम्मच एलोवेरा का गुदा पानी में मिला कर नियमित रूप
से सेवन करते रहने से जिन्दगी भर कोई भी बीमारी नहीं आती। और
इसमें पपीता के 3-4 पत्तो का रस मिला कर लेने दिन में तीन चार
लेने से रोगी को प्लेटलेट की मात्रा में तेजी से इजाफा होता है
प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढ़िया कोई इलाज नहीं है यह चिकन
गुनियां डेंगू स्वायन फ्लू और बर्ड फ्लू में रामबाण होता है।
गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात
असंतुलित होने का लक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण
को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है ।
गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ
आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है।
गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से
बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं।
गिलोय का रस और गेहूं के जवारे का रस लेकर
थोड़ा सा पानी मिलाकर इस की एक कप की मात्रा खाली पेट
सेवन करने से रक्त कैंसर में फायदा होगा।
गिलोय और गेहूं के ज्वारे का रस तुलसी और नीम के 5 – 7 पत्ते
पीस कर सेवन करने से कैंसर में भी लाभ होता है।
क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन
को शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में
मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।
एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त
की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है।
गिलोय रस में खाण्ड डालकर पीने से पित्त का बुखार ठीक
होता है। और गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन करने से पित्त
का बढ़ना रुकता है।
प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़
या मिश्री के साथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर में
खून की कमी दूर होती है।
गिलोय ज्वर पीडि़तों के लिए अमृत है, गिलोय का सेवन ज्वर के
बाद टॉनिक का काम करता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक
क्षमता को बढ़ाता है। शरीर में खून की कमी (एनीमिया) को दूर
करता है।
फटी त्वचा के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करके
ठंडा करें। इस तेल को फटी त्वचा पर लगाए वातरक्त दोष दूर होकर
त्वचा कोमल और साफ होती है।
सुबह शाम गिलोय का दो तीन टेबल स्पून शर्बत पानी में मिलाकर
पीने से पसीने से आ रही बदबू का आना बंद हो जाता है।
गिलोय के काढ़े को ब्राह्मी के साथ सेवन से दिल मजबूत होता है,
उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है, गिलोय याददाश्त
को भी बढाती है।
गिलोय का रस को नीम के पत्ते एवं आंवला के साथ मिलाकर
काढ़ा बना लें। प्रतिदिन 2 से 3 बार सेवन करे इससे हाथ पैरों और
शरीर की जलन दूर हो जाती है।
मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के
फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर
हो जाती है।
गिलोय, धनिया, नीम की छाल, पद्याख और लाल चंदन इन सब
को समान मात्रा में मिलाकर काढ़ा बना लें। इस को सुबह शाम
सेवन करने से सब प्रकार का ज्वर ठीक होता है।
गिलोय, पीपल की जड़, नीम की छाल, सफेद चंदन, पीपल,
बड़ी हरड़, लौंग, सौंफ, कुटकी और चिरायता को बराबर मात्रा में
लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण के एक चम्मच
को रोगी को तथा आधा चम्मच छोटे बच्चे को पानी के साथ
सेवन करने से ज्वर में लाभ मिलता है।
गिलोय, सोंठ, धनियां, चिरायता और मिश्री को सम अनुपात में
मिलाकर पीसकर चूर्ण बना कर रोजाना दिन में तीन बार एक
चम्मच भर लेने से बुखार में आराम मिलता है।
गिलोय, कटेरी, सोंठ और अरण्ड की जड़ को समान मात्रा में लेकर
काढ़ा बनाकर पीने से वात के ज्वर (बुखार) में लाभ पहुंचाता है।
गिलोय के रस में शहद मिलाकर चाटने से पुराना बुखार ठीक
हो जाता है। और गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर सुबह और शाम
सेवन करें इससे बारम्बार होने वाला बुखार ठीक होता है।गिलोय
के रस में पीपल का चूर्ण और शहद को मिलाकर लेने से जीर्ण-ज्वर
तथा खांसी ठीक हो जाती है।
गिलोय, सोंठ, कटेरी, पोहकरमूल और चिरायता को बराबर
मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह और शाम सेवन करने से वात
का ज्वर ठीक हो जाता है।
गिलोय और काली मिर्च का चूर्ण सम मात्रा में मिलाकर गुनगुने
पानी से सेवन करने से हृदयशूल में लाभ मिलता है। गिलोय के रस
का सेवन करने से दिल की कमजोरी दूर होती है और दिल के रोग
ठीक होते हैं।
गिलोय और त्रिफला चूर्ण को सुबह और शाम शहद के साथ चाटने
से मोटापा कम होता है और गिलोय, हरड़, बहेड़ा, और
आंवला मिला कर काढ़ा बनाइये और इसमें शिलाजीत मिलाकर
और पकाइए इस का नियमित सेवन से मोटापा रुक जाता है।
गिलोय और नागरमोथा, हरड को सम मात्रा में मिलाकर चूर्ण
बना कर चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 – 3 बार सेवन करने से
मोटापा घटने लगता है।
बराबर मात्रा में गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला लेकर कूट-
पीसकर चूर्ण बना लें। इसका एक चम्मच चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और
घी के साथ सेवन करने से संभोग शक्ति मजबूत होती है।
अलसी और वशंलोचन समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, और इसे
गिलोय के रस तथा शहद के साथ हफ्ते – दस दिन तक सेवन करे इससे
वीर्य गाढ़ा हो जाता है।
लगभग 10 ग्राम गिलोय के रस में शहद और सेंधानमक (एक-एक
ग्राम) मिलाकर, इसे खूब उबाले फिर इसे ठण्डा करके आंखो में
लगाएं इससे नेत्र विकार ठीक हो जाते हैं।
गिलोय का रस आंवले के रस के साथ लेने से नेत्र रोगों में आराम
मिलता है।
गिलोय के रस में त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसमें
पीपल का चूर्ण और शहद मिलकर सुबह-शाम सेवन करने से आंखों के
रोग दूर हो जाते हैं और आँखों की ज्योति बढ़ जाती हैं।
गिलोय के पत्तों को हल्दी के साथ पीसकर खुजली वाले स्थान
पर लगाइए और सुबह-शाम गिलोय का रस शहद के साथ मिलाकर
पीने से रक्त विकार दूर होकर खुजली से छुटकारा मिलता है।
गिलोय के साथ अरण्डी के तेल का उपयोग करने से पेट की गैस
ठीक होती है।
श्वेत प्रदर के लिए गिलोय तथा शतावरी का काढ़ा बनाकर पीने
से लाभ होता है।गिलोय के रस में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने
से प्रमेह के रोग में लाभ मिलता है।
गिलोय के रस में मिश्री मिलाकर दिन में दो बार पीने से गर्मी के
कारण से आ रही उल्टी रूक जाती है। गिलोय के रस में शहद
मिलाकर दिन में दो तीन बार सेवन करने से उल्टी बंद हो जाती है।
गिलोय के तने का काढ़ा बनाकर ठण्डा करके पीने से उल्टी बंद
हो जाती है।
6 इंच गिलोय का तना लेकर कुट कर काढ़ा बनाकर इसमे
काली मिर्च का चुर्ण डालकर गरम गरम पीने से साधारण जुकाम
ठीक होगा।
पित्त ज्वर के लिए गिलोय, धनियां, नीम की छाल, चंदन,
कुटकी क्वाथ का सेवन लाभकारी है, यह कफ के लिए
भी फायदेमंद है।
नजला, जुकाम खांसी, बुखार के लिए गिलोय के पत्तों का रस
शहद मे मिलाकर दो तीन बार सेवन करने से लाभ होगा।
1 लीटर उबलते हुये पानी मे एक कप गिलोय का रस और 2 चम्मच
अनन्तमूल का चूर्ण मिलाकर ठंडा होने पर छान लें। इसका एक कप
प्रतिदिन दिन में तीन बार सेवन करें इससे खून साफ होता हैं और
कोढ़ ठीक होने लगता है।
गिलोय का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार
प्रसूता स्त्री को पिलाने से स्तनों में दूध की कमी होने
की शिकायत दूर होती है और बच्चे को स्वस्थ दूध मिलता है।
एक टेबल स्पून गिलोय का काढ़ा प्रतिदिन पीने से घाव भी ठीक
होते है।गिलोय के काढ़े में अरण्डी का तेल मिलाकर पीने से चरम
रोगों में लाभ मिलता है खून साफ होता है और गठिया रोग
भी ठीक हो जाता है।
गिलोय का चूर्ण, दूध के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से
गठिया ठीक हो जाता है।
गिलोय और सोंठ सामान मात्रा में लेकर इसका काढ़ा बनाकर
पीने से पुराने गठिया रोगों में लाभ मिलता है।
या गिलोय का रस तथा त्रिफला आधा कप पानी में मिलाकर
सुबह-शाम भोजन के बाद पीने से घुटने के दर्द में लाभ होता है।
गिलोय का रास शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने
से पेट का दर्द ठीक होता है।
मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में
लाभ होता है।गिलोय के रस को सफेद दाग पर दिन में 2-3 बार
लगाइए एक-डेढ़ माह बाद असर दिखाई देने लगेगा ।
गिलोय का एक चम्मच चूर्ण या काली मिर्च
अथवा त्रिफला का एक चम्मच चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से
पीलिया रोग में लाभ होता है।
गिलोय की बेल गले में लपेटने से भी पीलिया में लाभ होता है।
गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से
पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
गिलोय के पत्तों को पीसकर एक गिलास मट्ठा में मिलाकर सुबह
सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।
गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानो में
दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है। और गिलोय
के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में डालने से कान
का दर्द ठीक होता है।
गिलोय का रस पीने से या गिलोय का रस शहद में मिलाकर सेवन
करने से प्रदर रोग खत्म हो जाता है। या गिलोय और
शतावरी को साथ साथ कूट लें फिर एक गिलास पानी में डालकर
इसे पकाएं जब काढ़ा आधा रह जाये इसे सुबह-शाम पीयें प्रदर रोग
ठीक हो जाता है।
गिलोय के रस में रोगी बच्चे का कमीज रंगकर सुखा लें और यह
कुर्त्ता सूखा रोग से पीड़ित बच्चे को पहनाकर रखें। इससे बच्चे
का सूखिया रोग जल्द ठीक होगा।
मात्रा : गिलोय को चूर्ण के रूप में 5-6 ग्राम, सत् के रूप में 2 ग्राम
तक क्वाथ के रूप में 50 से 100 मि. ली.की मात्रा

चाय से नूकशान.....


सिर्फ दो सौ वर्ष पहले तक भारतीय घर में चाय नहीं होती थी.
आज कोई भी घर आये अतिथि को पहले चाय पूछता है. ये बदलाव
अंग्रेजों की देन है. कई लोग ऑफिस में दिन भर चाय लेते रहते है.
यहाँ तक की उपवास में भी चाय लेते है! किसी भी डॉक्टर के पास
जायेंगे तो वो शराब - सिगरेट - तम्बाखू छोड़ने को कहेगा , पर
चाय नहीं. क्योंकि यह उसे पढ़ाया नहीं गया और वह खुद
इसका गुलाम है. पर किसी अच्छे वैद्य के पास जाओगे तो वह पहले
सलाह देगा चाय ना पियें . चाय की हरी पत्ती पानी में उबाल
कर पिने में कोई बुराई नहीं पर जहां यह फर्मेंट हो कर काली हुई
सारी बुराइयां उसमे आ जाती है. आइये जानते है कैसे ..... अंत में
विकल्प ज़रूर पढ़ लें.
- हमारे गर्म देश में चाय और गर्मी बढ़ाती है. पित्त बढ़ाती है.
- चाय के सेवन करने से शरीर में उपलब्ध विटामिन्स नष्ट होते हैं।
- इसके सेवन से स्मरण शक्ति में दुर्बलता आती है।
- चाय का सेवन लिवर पर बुरा प्रभाव डालता है।
- चाय का सेवन रक्त आदि की वास्तविक उष्मा को नष्ट करने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- दूध से बनी चाय का सेवन आमाशय पर बुरा प्रभाव डालता है और
पाचन क्रिया को क्षति पहुंचाता है।
- चाय में उपलब्ध कैफीन हृदय पर बुरा प्रभाव डालती है, अत: चाय
का अधिक सेवन प्राय: हृदय के रोग को उत्पन्न करने में सहायक
होता है।
- चाय में कैफीन तत्व छ: प्रतिशत मात्रा में होता है जो रक्त
को दूषित करने के साथ शरीर के अवयवों को कमजोर भी करता है।
- चाय पीने से खून गन्दा हो जाता है और चेहरे पर लाल
फुंसियां निकल आती है.
- जो लोग चाय बहुत पीते है उनकी आंतें जवाब दे जाती है. कब्ज घर
कर जाती है और मल निष्कासन में कठिनाई आती है.
- चाय पीने से कैंसर तक होने की संभावना भी रहती है।
- चाय से स्नायविक गड़बडियां होती हैं, कमजोरी और पेट में गैस
भी।
- चाय पीने से अनिद्रा की शिकायत भी बढ़ती जाती है।
- चाय से न्यूरोलाजिकल गड़बड़ियां आ जाती है.
- चाय में उपलब्ध यूरिक एसिड से मूत्राशय या मूत्र नलिकायें
निर्बल हो जाती हैं, जिसके परिणाम स्वरूप चाय का सेवन करने
वाले व्यक्ति को बार-बार मूत्र आने की समस्या उत्पन्न
हो जाती है।
- इससे दांत खराब होते है.
- रेलवे स्टेशनों या टी स्टालों पर बिकने वाली चाय का सेवन
यदि न करें तो बेहतर होगा क्योंकि ये बरतन को साफ किये
बिना कई बार इसी में चाय बनाते रहते हैं जिस कारण कई बार चाय
विषैली हो जाती है। चाय को कभी भी दोबारा गर्म करके न
पिएं तो बेहतर होगा।
- बाज़ार की चाय अक्सर अल्युमीनियम के भगोने में खदका कर
बनाई जाती है। चाय के अलावा यह अल्युमीनियम भी घुल कर पेट
की प्रणाली को बार्बाद करने में कम भूमिका नहीं निभाता है।
- कई बार हम लोग बची हुई चाय को थरमस में डालकर रख देते हैं
इसलिए भूलकर भी ज्यादा देर तक थरमस में रखी चाय का सेवन न
करें। जितना हो सके चायपत्ती को कम उबालें तथा एक बार चाय
बन जाने पर इस्तेमाल की गई चायपत्ती को फेंक दें।
- शरीर में आयरन अवशोषित ना हो पाने से
एनीमिया हो जाता है.
- इसमें मौजूद कैफीन लत लगा देता है. लत हमेशा बुरी ही होती है.
- ज़्यादा चाय पिने से खुश्की आ जाती है.आंतों के स्नायु
भी कठोर बन जाते हैं।
- चाय के हर कप के साथ एक या अधिक चम्मच शकर ली जाती है
जो वजन बढाती है.
- अक्सर लोग चाय के साथ नमकीन , खारे बिस्कुट ,
पकौड़ी आदि लेते है. यह विरुद्ध आहार है. इससे त्वचा रोग होते है.
- चाय से भूख मर जाती है, दिमाग सूखने लगता है, गुदा और
वीर्याशय ढीले पड़ जाते हैं। डायबिटीज़ जैसे रोग होते हैं। दिमाग
सूखने से उड़ जाने वाली नींद के कारण आभासित कृत्रिम
स्फूर्ति को स्फूर्ति मान लेना, यह बड़ी गलती है।
- चाय-कॉफी के विनाशकारी व्यसन में फँसे हुए लोग
स्फूर्ति का बहाना बनाकर हारे हुए जुआरी की तरह व्यसन में
अधिकाधिक गहरे डूबते जाते हैं वे लोग शरीर, मन, दिमाग और
पसीने की कमाई को व्यर्थ गँवा देते हैं और भयंकर व्याधियों के
शिकार बन जाते हैं।
विकल्प --
- पहले तो संकल्प कर लें की चाय नहीं पियेंगे. दो दिन से एक हफ्ते
तक याद आएगी ; फिर सोचोगे अच्छा हुआ छोड़ दी.एक दो दिन
सिर दर्द हो सकता है.अनुलोम -विलोम करें.
- सुबह ताजगी के लिए गर्म पानी ले. चाहे तो उसमे आंवले के टुकड़े
मिला दे. थोड़ा एलो वेरा मिला दे.
- सुबह गर्म पानी में शहद निम्बू डाल के पी सकते है.
- गर्म पानी में तरह तरह
की पत्तियाँ या फूलों की पंखुड़ियां दाल कर पी सकते है.
जापान में लोग ऐसी ही चाय पिते है और स्वस्थ और दीर्घायु होते
है.
- कभी पानी में मधुमालती की पंखुड़ियां , कभी मोगरे की ,
कभी जासवंद , कभी पारिजात आदि डाल कर पियें.
- गर्म पानी में तुलसी , लेमन ग्रास , तेजपत्ता ,
पारिजात ,आदि के पत्ते या अर्जुन की छाल या इलायची ,
दालचीनी इनमे से एक कुछ डाल कर पियें .
- दिन में अतिथि या स्वयं के लिए घर में बना शरबत , लस्सी ,
छाछ , ज्यूस , दूध या खीर आदि बना सकते है.
- दोपहर चार बजे के बाद ठन्डे पेय ना ले कर गर्म पेय ले.
- एक रूचिकर और लाभप्रद एक पेय (क्वाथ) बनाने की विधि इस
प्रकार हैः
आयुर्वेदिक चाय
सामग्रीः गुलबनप्शा 25 ग्राम। छाया में सुखाये हुए तुलसी के पत्ते
25 ग्राम। तज 25 ग्राम। छोटी इलायची 12 ग्राम। सौंफ 12
ग्राम। ब्राह्मी के सूखे पत्ते 12 ग्राम। जेठी मध छिली हुई 12
ग्राम।
विधिः उपरोक्त प्रत्येक वस्तु को अलग-अलग कूटकर चूर्ण करके
मिश्रण कर लें। जब चाय-कॉफी पीने की आवश्यकता महसूस
हो तब मिश्रण में से 5-6 ग्राम चूर्ण लेकर 400 ग्राम पानी में
उबालें। जब आधा पानी बाकी रहे तब नीचे उतारकर छान लें। उसमें
दूध-खांड मिलाकर धीरे-धीर पियें।
लाभः इस पेय को लेने से मस्तिष्क में शक्ति आती है। शरीर में
स्फूर्ति आती है। भूख बढ़ती है। पाचनक्रिया वेगवती बनती है।
सर्दी, बलगम, खाँसी, दमा, श्वास, कफजन्य ज्वर और
न्यूमोनिया जैसे रोग होने से रुकते हैं।

पत्तागोभी से लाभ.....

आपको पत्ता गोभी कैसे पसंद है ? सलाद में ,
सूप में या सब्जी में ? आइये जानते है इसके
बारे में ......
- पत्तागोभी को कही बंद
गोभी कहा जाता है,
कहीं करमल्ला कहा जाता है।
इसकी प्रकृति ठंडी होती है.
- पत्ता गोभी में दूध के बराबर कैल्शियम
पाया जाता है जो हड्डियों को मजबूत
करता है। गोभी का बीच उत्तेजक, पाचन
शक्ति को बढ़ाने वाला और पेट के
कीड़ों को नष्ट करने वाला है।
- पेट दर्द के लिए गोभी बहुत फायदेमंद है।
पेट दर्द होने पर गोभी की जड़, पत्ती,
तना फल और फूल को चावल के पानी में
पकाकर सुबह-शाम लेने से पेट का दर्द ठीक
हो जाता है।
- गोभी खाने से खून साफ होता है।
- गोभी का रस पीने से खून की खराबी दूर
होती है और खून साफ होता है।
- हड्डियों का दर्द दूर करने के लिए
गोभी के रस को गाजर के रस में बराबर
मात्रा में मिलाकर पीने से
हड्डियों का दर्द दूर होता है।
- पीलिया के लिए भी गोभी का रस बहुत
फायदेमंद है। गाजर और गोभी का रस
मिलाकर पीने से पीलिया ठीक होता है।
- बवासीर होने पर जंगली गोभी का रस
निकालकर, उसमें काली मिर्च और
मिश्री मिलाकर पीने से बवासीर के
मस्सों से खून निकलना बंद हो जाता है।
- खून की उल्टी होने पर गोभी का सेवन
करने से फायदा होता है।
गोभी की सब्जी या कच्ची गोभी खाने से
खून की उल्टियां होना बंद हो जाती हैं।
- पेशाब में जलन होने पर
गोभी का काढ़ा बनाकर
रोगी को पिलाइए। इससे तुरंत आराम
मिलता है।
- गले में सूजन होने पर गोभी के
पत्तों का रस निकालकर दो चम्मच
पानी मिलाकर खाने से फायदा होता है।
- पायरिया : पत्तागोभी के कच्चे पत्ते 50
ग्राम नित्य खाने से पायरिया व दाँतों के
अन्य रोगों में लाभ होता है।
- पत्तागोभी में सेल्युलोस नामक तत्व
मौजूद होता है, जो हमें स्वस्थ रखने में
सहायक है। यह तत्व शरीर से कोलेस्ट्रोल
की मात्रा को दूर करता है। इसे मधुमेह के
रोगियों के लिए विशेष
लाभकारी माना जाता है। यह खांसी,
पित्त व रक्त विकार में भी लाभकारी है।
बाल गिरना : पत्तागोभी के 50 ग्राम
पत्ते प्रतिदिन खाने से गिरे हुए बाल उग
आते हैं।
- घाव : इसका रस पीने से घाव ठीक होते
हैं। इसके रस का आधा गिलास 5 बार
पानी मिलाकर पीना चाहिए। घाव पर
इसके रस की पट्टी बाँधें।
- बंदगोभी में ऐसे तत्व होते है जो कैंसर
की रोकथाम करने और उसे होने से बचाने में
मदद करता है। इसमें डिनडॉलीमेथेन
( डीआईएम ), सिनीग्रिन, ल्यूपेल, सल्फोरेन
और इंडोल - 3 - कार्बीनॉल ( 13 सी) जैसे
लाभदायक तत्व होते है। ये सभी कैंसर से
बचाव करने में सहायक होते है।सुबह
खाली पेट पत्तागोभी का कम से कम
आधा कप रस रोजाना पीने से आरम्भिक
अवस्था में कैंसर, बड़ी आंत का प्रवाह
(बहना) ठीक हो जाता है।
- पत्ता गोभी, शरीर में इम्यूनिटी सिस्टम
को स्ट्रांग बनाती है। इसमें विटामिन
सी भरपूर मात्रा में होता है जिससे
बॉडी का इम्यूनिटी सिस्टम काफी मजबूत
हो जाता है।
- यह अमीनो एसिड में सबसे समृद्ध होता है
जो सूजन आदि को कम करता है।
- पत्ता गोभी के सेवन से मोतियाबिंद
का खतरा कम होता है। इसके लगातार सेवन
से बॉडी में बीटा केराटिन बढ़ जाता है
जिससे आंखे सही रहती है।
- हाल ही में हुए शोध से पता चला है
कि पत्ता गोभी के सेवन से अल्माइजर
जैसी समस्याएं दूर हो जाती है। इसमें
विटामिन के भरपूर मात्रा में
पाया जाता है जिससे अल्माइजर
की समस्या दूर हो जाती है।
- पत्ता गोभी, पेप्टिक अल्सर के इलाज में
सहायक होती है। इस रोग से पीडित
व्यक्ति अगर वंदगोभी का नियमित सेवन
करें तो उसे आराम मिल सकता है
क्योंकि इसमें ग्लूटामाइन होता है
जो अल्सर विरोधी होता है।
- इसके सेवन से वजन को भी कम
किया जा सकता है। एक कप पकाई
वंदगोभी में सिर्फ 33 कैलोरी होती है
जो वजन नहीं बढ़ने देती। वंदगोभी का सूप
शरीर को ऊर्जा देता है लेकिन
वसा की मात्रा का घटा देता है।
- पत्ता गोभी में काफी ज्यादा मात्रा में
एंटी - ऑक्सीडेंट होते है जो स्कीन
की सही देखभाल करने के लिए पर्याप्त
होते है।
- पत्ता गोभी में लैक्टिक एसिड
काफी मात्रा में होती है
जो मांसपेशियों के चोटिल होने और उसे
रिकवर करने में काफी सहायक होती है।
- इसमे बहुत ज्यादा रेशा होता है
जिसकी वजह से पाचन क्रिया अच्छे से
होती है और पेट दरुस्त रहता है। इस वजह से
कब्ज की समस्या कभी नहीं हो पाती।
- नींद की कमी, पथरी और मूत्र की रुकावट
में पत्तागोभी लाभदायक है,
इसकी सब्जी घी से छौंक लगाकर
बनानी चाहिए।
- अनिद्रा में
पत्तागोभी की सब्जी तथा रात को सोने
से एक घंटा पहले 5 चम्मच रस पीने से खूब
नींद आती है।
- सल्फर, क्लोरीन तथा आयोडीन साथ में
मिल कर आँतों और आमाशय की म्यूकस परत
को साफ करने में मदद करते हैं। इसके लिए
कच्चे पत्तागोभी को नमक लगा कर
खाना चाहिए।
- छाले, घाव, फोड़े-
फुंसी तथा चकत्तों जैसी परेशानियों में
पत्तागोभी के पत्तों की पट्टी लगाने से
बहुत आराम मिलता है। इस काम के लिए
पत्तागोभी की बाहरी मोटी पत्तियाँ बेह
रहती हैं। पूरी साबुत
पत्तियों को ही पट्टी की तरह काम में
लेना चाहिए। इसकी पट्टी बनाने के लिए
पत्तियों को गरम पानी से बहुत
अच्छी तरह धोकर तौलिये से अच्छी तरह
सुखा कर बेलन से बेलते हुए नरम कर
लेना चाहिए। इसकी मोटी, उभरी हुई
नसों को निकाल कर बेलने से यह नरम
हो जाएगा। फिर इसे गरम करके घाव पर
समान रूप से लगाना चाहिए। इन
पत्तियों को सूती कपड़े में या मुलायम
ऊनी कपड़े में डाल कर काम में ले सकते हैं।
इससे पूरे दिन भर के लिए या रात भर
सिकाई कर सकते हैं। जले हुए
पत्तागोभी की राख भी त्वचा की बहुत
सी बीमारियों में आराम पहुँचाता है।
- पत्तागोभी का रस पेट में गैस कर सकता है
जिसके कारण बदहजमी हो सकती है।
इसलिए सलाह दी जाती है
कि पत्तागोभी के रस में थोड़ी सी गाजर
का रस मिला कर पीना चाहिए। इससे पेट
में गैस या अन्य समस्याएँ नहीं होंगी।
पका हुआ
पत्तागोभी या पत्तागोभी की सब्जी खाने
से भी यदि तकलीफ हो तो इसमे थोड़ी हींग
मिला कर पकाएँ। कच्चा खाने से यह
जल्दी हजम होती है।
- जर्मन पद्धति के अनुसार
पत्तागोभी को काटकर उसमें नमक लगाकर
उसे खट्टा होने के लिए रख दिया जाता है।
इस विधि से तैयार पत्तागोभी को 'सोर
क्राउट' के नाम से जाना जाता है। 'सोर
क्राउट' में प्रचुर मात्रा में विटामिन
पाए जाते है। हृदय रोगों को दूर करने के
लिए सोर क्राउट का प्रयोग
काफी लाभदायक है।

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

शंख से बीमारियो का उपचार

शंख दो प्रकार के होते हैं – दक्षिणावर्त एवं वामावर्त।
दक्षिणावर्त शंख पुण्य योग से मिलता है। यह जिसके यहाँ होता है
उसके यहाँ लक्ष्मी जी निवास करती हैं। यह त्रिदोषशामक, शुद्ध
एवं नवनिधियों में से एक निधि है तथा ग्रह एवं गरीबी की पीड़ा,
क्षय, विष, कृशता एवं नेत्ररोग का नाश करता है। जो शंख सफेद
चन्द्रकान्तमणि जैसा होता है वह उत्तम माना जाता है। अशुद्ध
शंख गुणकारी नहीं होते, उन्हें शुद्ध करके ही दवा के रूप में प्रयोग में
लाया जाता है।
भारत के महान वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु ने सिद्ध करके
बताया है कि शंख को बजाने पर जहाँ तक
उसकी ध्वनि पहुँचती वहाँ तक रोग उत्पन्न करने वाले कई प्रकार के
हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए अनादिकाल से
प्रातःकाल एवं संध्या के समय मंदिरों में शंख बजाने का रिवाज
चला आ रहा है।
संध्या के समय हानिकारक जंतु प्रकट होकर रोग उत्पन्न करते हैं,
अतः उस समय शंख बजाना आरोग्य के लिए लाभदायक हैं और इससे
भूत-प्रेत, राक्षस आदि भाग जाते हैं।
औषधि-प्रयोगः
मात्राः अधोलिखित प्रत्येक रोग में 50 से 250 मि.ग्रा. शंखभस्म
ले सकते हैं।
गूँगापनः गूँगे व्यक्ति के द्वारा प्रतिदिन 2-3 घंटे तक शंख बजवायें।
एक बड़े शंख में 24 घंटे तक रखा हुआ पानी उसे प्रतिदिन पिलायें,
छोटे शंखों की माला बनाकर उसके गले में पहनायें तथा 50 से 250
मि.ग्रा. शंखभस्म सुबह शाम शहद साथ चटायें। इससे गूँगापन में
आराम होता है।
तुतलापनः 1 से 2 ग्राम आँवले के चूर्ण में 50 से 250 मि.ग्रा.
शंखभस्म मिलाकर सुबह शाम गाय के घी के साथ देने से तुतलेपन में
लाभ होता है।
तेजपात (तमालपत्र) को जीभ के नीचे रखने से रूक रूककर बोलने
अर्थात् तुतलेपन में लाभ होता है।
सोते समय दाल के दाने के बराबर फिटकरी का टुकड़ा मुँह में रखकर
सोयें। ऐसा नित्य करने से तुतलापन ठीक हो जाता है।
दालचीनी चबाने व चूसने से भी तुतलापन में लाभ होता है।
दो बार बादाम प्रतिदिन रात को भिगोकर सुबह छील लो। उसमें
2 काली मिर्च, 1 इलायची मिलाकर, पीसकर 10 ग्राम मक्खन में
मिलाकर लें। यह उपाय कुछ माह तक निरंतर करने से काफी लाभ
होता है।
मुख की कांति के लिएः शंख को पानी में घिसकर उस लेप को मुख
पर लगाने से मुख कांतिवान बनता है।
बल-पुष्टि-वीर्यवर्धकः शंखभस्म को मलाई अथवा गाय के दूध के
साथ लेने से बल-वीर्य में वृद्धि होती है।
पाचन, भूख बढ़ाने हेतुः लेंडीपीपर का 1 ग्राम चूर्ण एवं शंखभस्म
सुबह शाम शहद के साथ भोजन के पूर्व लेने से पाचनशक्ति बढ़ती है
एवं भूख खुलकर लगती है।
श्वास-कास-जीर्णज्वरः 10 मि.ली. अदरक के रस के साथ
शंखभस्म सुबह शाम लेने से उक्त रोगों में लाभ होता है।
उदरशूलः 5 ग्राम गाय के घी में 1.5 ग्राम भुनी हुई हींग एवं शंखभस्म
लेने से उदरशूल मिटता है।
अजीर्णः नींबू के रस में मिश्री एवं शंखभस्म डालकर लेने से अजीर्ण
दूर होता है।
खाँसीः नागरबेल के पत्तों (पान) के साथ शंखभस्म लेने से
खाँसी ठीक होती है।
आमातिसारः (Diarhoea) 1.5 ग्राम जायफल का चूर्ण, 1 ग्राम
घी एवं शंखभस्म एक एक घण्टे के अंतर पर देने से मरीज को आराम
होता है।
आँख की फूलीः शहद में शंखभस्म को मिलाकर आँखों में आँजने से
लाभ होता है।
परिणामशूल (भोजन के बाद का पेट दर्द)- गरम पानी के साथ
शंखभस्म देने से भोजन के बाद का पेटदर्द दूर होता है।
प्लीहा में वृद्धिः (Enlarged Spleen) अच्छे पके हुए नींबू के 10
मि.ली. रस में शंखभस्म डालकर पीने से कछुए जैसी बढ़ी हुई
प्लीहा भी पूर्ववत् होने लगती है।
सन्निपात-संग्रहणीः (Sprue) शंखभस्म को 3 ग्राम सैंधव नमक के
साथ दिन में तीन बार (भोजन के बाद) देने से कठिन संग्रहणी में
भी आराम होता है।
हिचकी ()- मोरपंख के 50 मि.ग्रा. भस्म में शंखभस्म मिलाकर
शहद के साथ डेढ़-डेढ़ घंटे के अंतर पर चाटने से लाभ होता है। —