रविवार, 22 फ़रवरी 2015

गेहूँ का ज्वारा...


गेहूँ का ज्वारा अर्थात गेहूँ के छोटे-छोटे पौधों की हरी-
हरी पत्ती, जिसमे है शुद्ध रक्त बनाने की अद्भुत शक्ति.
तभी तो इन ज्वारो के रस को "ग्रीन ब्लड" कहा गया है. इसे ग्रीन
ब्लड कहने का एक कारणयह भी है कि रासायनिक संरचना पर
ध्यानाकर्षण किया जाए तो गेहूँ के ज्वारे के रस और मानव मानव
रुधिर दोनों का ही पी.एच. फैक्टर 7.4 ही है जिसके कारण इसके
रस का सेवन करने से इसका रक्त में अभिशोषण शीघ्र हो जाता है,
जिससे रक्ताल्पता(एनीमिया) और पीलिया(जांडिस)रोगी के
लिए यह ईश्वर प्रदत्त अमृत हो जाता है. गेहूँ के ज्वारे के रस
का नियमित सेवन और नाड़ी शोधन प्रणायाम से मानव शारीर के
समस्त नाड़ियों का शोधन होकर मनुष्य समस्त प्रकार के
रक्तविकारों से मुक्त हो जाता है. गेहूँ के ज्वारे में पर्याप्त
मात्रा में क्लोरोफिल पाया जाता है जो तेजी से रक्त बनता है
इसीलिए तो इसे प्राकृतिक परमाणु की संज्ञा भी दी गयी है.
गेहूँ के पत्तियों के रस में विटामिन बी.सी. और ई प्रचुर मात्रा में
पाया जाता है.
गेहूँ घास के सेवन से कोष्ठबद्धता, एसिडिटी , गठिया, भगंदर,
मधुमेह, बवासीर, खासी, दमा, नेत्ररोग,म्यूकस, उच्चरक्तचाप, वायु
विकार इत्यादि में भी अप्रत्याशित लाभ होता है. इसके रस के
सेवन से अपार शारीरिक शक्ति कि वृद्धि होती है तथा मूत्राशय
कि पथरी के लिए तो यह रामबाण है. गेहूँ के ज्वारे से रस निकालते
समय यह ध्यान रहे कि पत्तियों में से जड़ वाला सफेद हिस्सा काट
कर फेंक दे. केवल हरे हिस्से का ही रस सेवन कर लेना ही विशेष
लाभकारी होता है. रस निकालने के पहले ज्वारे
को धो भी लेना चाहिए. यह ध्यान रहे कि जिस ज्वारे से रस
निकाला जाय उसकी ऊंचाई अधिकतम पांच से छः इंच ही हो.
आप १५ छोटे छोटे गमले लेकर प्रतिदिन एक-एक गमलो में
भरी गयी मिटटी में ५० ग्राम गेहू क्रमशः गेहू चिटक दे, जिस दिन
आप १५ गमले में गेहू डालें उस दिन पहले दिन वाला गेहू
का ज्वारा रस निकलने लायक हो जायेगा. यह ध्यान रहे
की जवारे की जड़ वाला हिस्सा काटकर फेक देंगे पहले दिन वाले
गमले से जो गेहू उखाड़ा उसी दिन उसमे दूसरा पुनः गेहू बो देंगे.यह
क्रिया हर गमले के साथ होगी ताकि आपको नियमित
ज्वारा मिलता रहे.

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