गोमाता एवं बछड़ों को मारकर उनकी आंत की परतों के बीच
चांदी के टुकड़ों को रखकर कूटा जाता है तब चांदी की पतली से
पतली परत तैयार होती है , जिसे चांदी का वर्ख कहा जाता है .
और हम इस वर्ख को भोग में चढाने वाली मिठाई , पान -
सुपारी इत्यादि में करते है और भगवान
की मूर्ती को चोला चढाने में भी ये इस्तेमाल किया जाता है .
चांदी महँगी होती है इसलिए ज़्यादातर एल्युमिनियम इस काम में
इस्तेमाल होता है .एल्युमिनियम सेहत के लिए बहुत ही घातक
होता है . यहाँ तक के केंसर भी पैदा करता है .
वर्ख चांदी का है या नहीं ये पता करने के लिए कांच के एक बाउल
में पानी भर ले ; उसमे सोडियम हायड्रॉक्साईड की एक
टिकिया घोल ले . अब उसमे वर्ख का एक टुकडा डाले . अगर
वो पूरी तरह घुल गया तो वो एल्युमिनियम है .
उबलते पानी या चूने के पानी में वर्ख डालने पर अगर उसका रंग बदल
जाए तो ऐसा वर्ख उपयोग करना सही नहीं .
सीधे मेटल खाने से किडनी खराब हो सकती है . आयुर्वेद में
भी धातुओं की भस्म इस्तेमाल होती है धातु सीधे नहीं .
इसलिए अगर वर्ख वाली मिठाई घर आ भी जाए तो उसे चाक़ू से
हटा ले और तभी उसका सेवन करे .
शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015
चांदी का वर्ख....
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