विदेशी फलों की भरमार से तमाम देशी और मौसमी फल बाजार
से गायब होते जा रहे हैं। बाजारों में न्यूजीलैंड, अमेरिका,
आस्ट्रेलिया, इटली आदि देशों के फल धड़ल्ले से बिक रहे हैं, लेकिन
वनों में सहज पैदा होने वाले मौसमी फल तेन्दू, अचार,
खिरनी या खिन्नी, शहतूत, कसेरू, कबीट, लाल इमली छोटे
शहरों के बाजारों में भी ढूंढे नहीं मिलते हैं। जिन लोगों को इन
फलों के बारे में पता है और जिन्होंने इन फलों को खाने
का मजा लिया है, आज वे केवल इनके नाम को ही याद रखे हुए हैं।
लोगों की स्मृतियों से जुड़े पारम्परिक फलों के लुप्त होने
की वजह अलग-अलग हैं। पहली तो यह कि शहर के
चौतरफा विस्तार से पारम्परिक फलों के वृक्ष खत्म हो गए।
दूसरी यह है कि बच्चों और बड़ों में नए प्रकार के फलों का आकर्षण
बढ़ गया। जंगली क्षेत्र में पारम्परिक फलों का वनोपज मानते हुए
वन विभाग के अमले ने इसे तोड़ने पर बंदिश लगा दी। हरी इमली और
चिट्टेदार इमली भी सड़कों पर बिकती नजर नहीं आती। इसी तरह
जंगल जलेबी के नाम से मशहूर है, अब गायब हो गई है। तीनों प्रकार
की इमली का जायका नए जमाने के कई लोगों ने
लिया भी नहीं होगा, हालांकि कबीट बाजारों में नजर आ
रहा है। इसकी बिक्री में कोई कमी नहीं आई है। ताल में होने वाले
सिंघाड़े भी गायब हो गए हैं। बड़े होटलों में कबीट
की चटनी का चलन बढ़ने से विक्रेताओं को ग्राहकों की फ्रिक
नहीं है।
शहतूत की मिठास और खट्टे मीठे कमरख का जायका बीते जमाने
की बात हो गई है। अचार, कसेरू, जंगल जलेबी के नाम से मशहूर
इमली का भी यही हाल है। बाजार में ढूंढने पर भी यह फल दिखाई
नहीं देते। इनकी जगह विदेशों से आयात हो रहे फलों ने ले ली है। अब
लोग बाबू कोशा, कीवी और अमेरिका तथा न्यूजीलैंड से आ रहे
सेवों का स्वाद चखना चाहते हैं। स्कूल के सामने सार्वजनिक
स्थानों पर किसी जमाने में हाथ ठेलों पर तेंदू, अचार, खिन्नी,
करोंदे, शहतूत, कसेरू, कबीट, इमली आदि बिका करते थे। इन ठेलों पर
हर उम्र के लोग फलों का लुप्त लेते नजर आते थे। इसी तरह कबीट जैसे
दिखने वाला भील फल भी गायब हो गया है।
आयुर्वेद में कबीट को पेट रोगों का विशेषज्ञ माना गया है।
इसका जहाँ शरबत इस्तेमाल किया जाता है, वहीं चटनी भी खूब
पसंद की जाती है।
आयुर्वेदिक चिकित्सक कबीट के गूदे को तरोताजगी प्रदान करने
वाला मानते हैं। कच्चे कबीट में एस्ट्रीजेंट्स होते हैं जो मानव शरीर
के लिए बहुत फायदेमंद साबित होते हैं। यह डायरिया और
डीसेंट्री के मरीजों के इलाज में मुफीद माना जाता है।
मसूड़ों तथा गले के रोग भी इससे ठीक होते हैं। बारिश के मौसम के
बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल
की गोंद के समकक्ष होती है।
कबीट के गूदे से बहुत ही उम्दा किस्म की जैली बनाई जाती है
जो दिखने के साथ ही गुणवत्ता में ब्लैक करंट या एप्पल
जैली की तरह होती है। छोटे कबीट की खट्टी तासीर
को चटनी बनाकर उपयोगी बना लिया जाता है। इसमें गुड़
या शकर के साथ जीरा मिर्च और काला नमक भी पीस
लिया जाता है। यह अम्ल पित्त में औषधि का काम करती है।
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