बुधवार, 11 मार्च 2015

गिलोय है दर्जन भर बड़े रोगों की रामबाण दवा....

गिलोय (MIRACULOUS PLANT) एक बहुत ही उपयोगी आयुर्वेदिक
औषधि है। यह दिव्य औषधि जिसे संस्कृत में गडूची और अम्रतवल्ली,
अमृता,मराठी में गुडवेल, गुजराती में गिलो के नामो से जाने जाने
वाली वर्षो तक जीवित रहने वाली यह बेल या लता अन्य
वृक्षों के सहारे चढ़ती है। नीम के वृक्ष के सहारे चडऩे
वाली गिलोय औषधि उपयोग के लिए सर्वश्रेष्ट होती है,
इसी कारण इसे नीम-गिलोय भी कहा जाता है। फू ल लाल
झुमकों में लगता है। अंगूठें जैसा मोटा तना प्रारम्भ में हरा, पकने पर
धूसर रंग का हो जाता है,यही तना औषधि के काम आता है।
- वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार इसमें एल्केलाइड गिलोइन
नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा, अल्कोहल, ग्लिस्टरोल, अम्ल व
उडऩशील तेल होते हैं। इसकी पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन,
फॉस्फोरस और तने में स्टार्च पाया जाता है। वायरसों की दुश्मन
गिलोय रोग संक्रमण रोकने में सक्षम होती है। यह एक श्रेष्ठ
एंटीबयोटिक है।
-टाइफायड, मलेरिया, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी,
बेहोशी, कफ, पीलिया, तिल्ली बढऩा, सिफलिस, एलर्जी सहित
अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय
का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन
उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। गिलोय बीमारियों से लडऩे, उन्हें
मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट
भूमिका निभाती है।
- इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, खून
की कमी, निम्न रक्तचाप, दिल की कमजोरी, टीबी, मूत्र रोग,
एलर्जी, पेट के रोग, मधुमेह, चर्म रोग आदि अनेक बीमारियों से
बचाता है। गिलोय भूख भी बढ़ाती है। एक बार में गिलोय
की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है।
- दीर्घायु प्रदान करने वाली अमृत तुल्य गिलोय और गेहूं के ज्वारे
के रस के साथ तुलसी के 7 पत्ते तथा नीम के पत्ते खाने से कैंसर जैसे
रोग में भी लाभ होता है। गिलोय और पुनर्नवा मिर्गी में लाभप्रद
होती है। इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों के साथ
दिया जाता है। अनेक रोगों में इसे पशुओं के रोगों में
भी दिया जाता है।
- बुखार को ठीक करने का इसमें अद्भुत गुण है। यह मलेरिया पर
अधिक प्रभावी नहीं है लेकिन शरीर की समस्त मेटाबोलिक
क्रियाओं को व्यवस्थित करने के साथ सिनकोना चूर्ण
या कुनाईनं (कोई भी एंटी मलेरियल) औषधि के साथ देने पर उसके
घातक प्रभावों को रोक कर शीघ्र लाभ देती हे।
- गिलोय की जड़ें शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है। यह कैंसर
की रोकथाम और उपचार में प्रयोग की जाती है।
- गिलोय उच्च कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए,
शर्करा का स्तर बनाए रखने में मदद करता है। यह शरीर को दिल से
संबंधित बीमारियों से बचाए रखता है।
कैंसर के इलाज में गिलोय के चमत्कार
गिलोय का वैज्ञानिक नाम है--
तिनोस्पोरा कार्डीफोलिया । इसे अंग्रेजी में गुलंच कहते हैं।
कन्नड़ में अमरदवल्ली , गुजराती में गालो , मराठी में गुलबेल , तेलगू
में गोधुची ,तिप्प्तिगा , फारसी में गिलाई,तमिल में
शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय में
ग्लुकोसाइन ,गिलो इन , गिलोइनिन , गिलोस्तेराल
तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं। अगर आपके घर के
आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं । नीम
पर चढी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है ,इस कारण
आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर
चढी हुई हो. गिलोय हमारे यहां लगभग सभी जगह पायी जाती है।
गिलोय को अमृता भी कहा जाता है .यह स्वयं भी नहीं मरती है
और उसे भी मरने से बचाती है , जो इसका प्रयोग करे .
कहा जाता है की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें
जहाँ जहाँ पडी , वहां वहां गिलोय उग गई . यह मैदानों, सड़कों के
किनारे, जंगल, पार्क, बाग-बगीचों, पेड़ों-झाड़ियों और
दीवारों पर लिपटी हुई दिख जाती है। इसकी बेल बड़ी तेजी से
बढ़ती है। इसके पत्ते पान की तरह बड़े आकार के हरे रंग के होते हैं।
गर्मी के मौसम में आने वाले इसके फूल छोटे गुच्छों में होते हैं और
इसके फल मटर जैसे अण्डाकार, चिकने गुच्छों में लगते हैं जो बाद में
पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। गिलोय के बीज सफेद रेग के होते हैं।
जमीन या गमले में इसकी बेल का एक छोटा सा टुकड़ा लगाने पर
भी यह उग जाती है और बड़ी तेज गति से स्वछन्द रूप से
बढ़ती जाती है और जल्दी ही बहुत लम्बी हो जाती है।
गिलोय को अमृता, गड़ूची, मधुपर्जी आदि अनेक नामों से
भी जाना जाता है। कुछ तीखे कड़वे स्वाद वाली गिलोय देशभर
में पायी जाती है। आयुर्वेद में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य
चरक ने गिलोय को वात दोष हरने वाली श्रेष्ठ औषधि माना है।
वैसे इसका त्रिदोष हरने वाली, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ाने वाली, ज्वर नाशक, खांसी मिटाने
वाली प्राकृतिक औषधि के रूप में खूब उपयोग किया जाता है। यह
एक झाडीदार लता है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर
होती है इसी को सुखाकर चूर्ण के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते
हैं। टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम
ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातु विकार, यकृत
निष्क्रियता, तिल्ली बढ़ना, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य
त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन
आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन
क्षमता बढ़ाती है। रोगों से लड़ने, उन्हें मिटाने और रोगी में
शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है।
सचमुच यह प्राकृतिक ‘कुनैन’ है। इसका नियमित प्रयोग
सभी प्रकार के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, रक्त विकार, निम्न
रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), मूत्र रोग, एलर्जी, उदर रोग,
मधुमेह, चर्म रोग आदि अनेक व्याधियों से बचाता है। गिलोय भूख
भी बढ़ाती है। इसकी तासीर गर्म होती है। एक बार में गिलोय
की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है। गिलोय की बेल
को हलके नाखूनों से छीलकर देखिये नीचे आपको हरा,मांसल भाग
दिखाई देगा । इसका काढा बनाकर पीजिये । यह शरीर के
त्रिदोषों को नष्ट कर देगा । आज के प्रदूषणयुक्त वातावरण में
जीने वाले हम लोग हमेशा त्रिदोषों से ग्रसित रहते हैं।
हमारा शरीर कफ ,वात और पित्त द्वारा संचालित होता है ।
पित्त का संतुलन गडबडाने पर पीलिया, पेट के रोग जैसी कई
परेशानियां सामने आती हैं । कफ का संतुलन बिगडे तो सीने में
जकड़न, बुखार आदि दिक्कते पेश आती हैं । वात [वायु] अगर
असंतुलित हो गई तो गैस ,जोडों में दर्द ,शरीर का टूटना ,असमय
बुढापा जैसी चीजें झेलनी पड़ती हैं । अगर आप वातज विकारों से
ग्रसित हैं तो गिलोय का पाँच ग्राम चूर्ण घी के साथ लीजिये ।
पित्त की बिमारियों में गिलोय का चार ग्राम चूर्ण
चीनी या गुड के साथ खालें तथा अगर आप कफ से संचालित
किसी बीमारी से परेशान हो गए है तो इसे छः ग्राम कि मात्र में
शहद के साथ खाएं । गिलोय एक रसायन एवं शोधक के रूप में
जानी जाती है जो बुढापे को कभी आपके नजदीक नहीं आने
देती है । यह शरीर का कायाकल्प कर देने की क्षमता रखती है।
किसी ही प्रकार के रोगाणुओं ,जीवाणुओं आदि से पैदा होने
वाली बिमारियों, खून के प्रदूषित होने बहुत पुराने बुखार एवं यकृत
की कमजोरी जैसी बिमारियों के लिए यह रामबाण की तरह
काम करती है । मलेरिया बुखार से तो इसे जातीय दुश्मनी है। पुराने
टायफाइड ,क्षय रोग, कालाजार ,पुराणी खांसी , मधुमेह
[शुगर ] ,कुष्ठ रोग तथा पीलिया में इसके प्रयोग से तुंरत लाभ
पहुंचता है । बाँझ नर या नारी को गिलोय और अश्वगंधा को दूध में
पकाकर खिलाने से वे बाँझपन से मुक्ति पा जाते हैं। इसे सोंठ के
साथ खाने से आमवात-जनित बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं ।
गिलोय तथा ब्राह्मी का मिश्रण सेवन करने से दिल की धड़कन
को काबू में लाया जा सकता है। इसमें प्रचुर मात्रा में
एन्टी आक्सीडेन्ट होते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर
सर्दी, जुकाम, बुखार से लेकर कैंसर तक में लाभकारी है। स्वस्थवृत्त
सूत्र - मित-भुक्, हित-भुक्, ऋत-भुक् सूत्र का पालन करें, स्वास्थ्य
के लिए हितकारी भोजन का सेवन करें, मौसम के अनुसार खायें,
भूख से कम भोजन करें। यह सभी तरह के व्यक्ति बड़े आराम से ले सकते
हैं . ये हर तरह के दोष का नाश करती है .
दीर्घायु प्रदान करने वाली अमृत तुल्य गिलोय और गेहूं के ज्वारे के
रस के साथ तुलसी के 7 पत्ते तथा नीम के पत्ते खाने से कैंसर जैसे रोग
में भी लाभ होता है। गिलोय और पुनर्नवा मिर्गी में लाभप्रद
होती है। इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों के साथ
दिया जाता है। अनेक रोगों में इसे पशुओं के रोगों में
भी दिया जाता है।इसको लगाना बेहद आसान है और इसके लिए
खास देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती। इस उपयोगी बेल को हर घर में
लगाया जाना चाहिए। इसकी डंडी का ही प्रयोग करते हैं ;
पत्तों का नहीं . उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई
होता है .डंडी को ऐसे भी चूस सकते है . चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें
पानी मिलाकर छान लें . हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी .
इसे लेते रहने से रक्त संबंधी विकार नहीं होते . toxins खत्म हो जाते
हैं , और बुखार तो बिलकुल नहीं आता . पुराने से पुराना बुखार खत्म
हो जाता है . इससे पेट की बीमारी , दस्त ,पेचिश, आंव ,
त्वचा की बीमारी , liver की बीमारी , tumor , diabetes ,
बढ़ा हुआ E S R , टी बी , white discharge ,
हिचकी की बीमारी आदि ढेरों बीमारियाँ ठीक होती हैं .
अगर पीलिया है तो इसकी डंडी के साथ ; पुनर्नवा (साठी;
जिसका गाँवों में साग भी खाते हैं) की जड़ भी कूटकर
काढ़ा बनायें और पीयें . kidney के लिए भी यह बहुत बढ़िया है .
गिलोय के नित्य प्रयोग से शरीर में कान्ति रहती है और असमय
ही झुर्रियां नहीं पड़ती .
शरीर में गर्मी अधिक है तो इसे कूटकर रात को भिगो दें और सवेरे
मसलकर शहद या मिश्री मिलाकर पी लें .
अगर platelets बहुत कम हो गए हैं , तो चिंता की बात नहीं , aloe
vera और गिलोय मिलाकर सेवन करने से एकदम platelets बढ़ते हैं .
कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें इसमें wheat
grass का जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर
सबको कूटकर काढ़ा बना लें . इसका सेवन खाली पेट करने से
aplastic anaemia भी ठीक होता है ।

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